फैलती खर्च की चादर में बढ़ती महंगाई ! प्रो प्रसिद्ध कुमार
बढ़ती महंगाई और बढ़ते खर्च की चक्की में आम आदमी पिसा रहा है। क्या खाये और क्या छोड़े चुनना पड़ रहा है।
बाजार में जरूरत के हिसाब से नहीं मूल्य के हिसाब से कटौती कर खरीदारी की जा रही है। बढ़ती चिकित्सीय खर्च ,शिक्षा खर्च से लोगों का हालात खस्ता है। 80 करोड़ लोगों को 5 किलो मुफ्त की राशन देना मानव संसाधन का समाधान नहीं है।चीन अपने मानव संसाधन का उपयोग कैसे करता है सीखने की जरूरत है। अमेरिका ,ब्रिटेन,रूस अपने संसाधनों का समुचित उपयोग कर आज शीर्ष देशों में है।
महंगाई गंभीर समस्या बनती जा रही है और बाजार में उतार-चढ़ाव के तौर पर देखी जाने वाली स्थितियां अब आम रहने लगी हैं। एक दौर था, जब लोग कुछ समय तक महंगाई की चुनौतियों का सामना कर लेते थे। अब महंगाई में निरंतरता बनी हुई है, खर्च की चादर फैलती जा रही है। ठंड के मौसम में हरी सब्जियां बाजार में दिखती हैं और अमूमन उनकी कीमत ऐसी रहती है कि लोग खर्च कर सकें, लेकिन इस साल ऐसा नहीं है। गोभी, पालक, भिंडी, टमाटर, प्याज, लहसुन, मटर जैसी सब्जियों के दाम ज्यादा होने से आम लोगों का बजट प्रभावित हो रहा है।
सब्जी विक्रेताओं के मुताबिक, बड़े कारोबारियों की जमाखोरी के कारण महंगाई की नौबत आई है। विवाह आयोजनों के लिए खरीद हो रही है और छोटे विक्रेताओं तक आवक कम हो रही है। इस बार हरी सब्जियों की पैदावार भी कम हुई है। हकीकत यह है कि पिछले कुछ वर्षों से रोजी-रोजगार की फिक्र में लोग यह भी भूलते जा रहे हैं कि उनकी थाली में न्यूनतम चीजें क्या-क्या होनी चाहिए।
यह नौबत आ गई है कि अर्थव्यवस्था के चमकते आंकड़ों की चकाचौंध के बीच बहुत सारे लोगों को खाने-पीने की चीजों में भी कटौती करनी पड़ रही है। यह सोचने की जरूरत है कि आर्थिक विकास के दावों के दायरे में कौन है। क्यों थाली महंगी हो रही है।
जरूरी सामानों के साथ ही खाद्य पदार्थों की बढ़ी हुई कीमतों ने पहले ही आम लोगों की रोजमर्रा की जरूरतों को प्रभावित करना शुरू कर दिया था। मुश्किल सिर्फ सब्जियों तक नहीं सिमटी है। इसका असर दूसरे खाद्य पदार्थों पर भी पड़ा है और खरीदारी के वक्त भी लोगों को अब थोड़ा रुक कर सोचना पड़ रहा है।
यह दुखद स्थिति है कि आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर कदम बढ़ाने का दावा करने के क्रम में इस पक्ष की अनदेखी की जा रही है कि लोग जीने के लिए जो भोजन कर रहे हैं, उसके लिए उन्हें कितना सोचना पड़ रहा है। देश की गरीब आबादी के सामने किस तरह की चुनौतियां खड़ी हैं, यह समझना बहुत मुश्किल नहीं है।
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