राबड़ी देवी बनी विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष! समझें वोट की ताकत! / प्रसिद्ध यादव।
राजनीति में गद्दारों की कमी नहीं है। राबड़ी देवी पूर्व में उक्त सदन में नेता प्रतिपक्ष थीं, लेकिन राजद के 5 एमएलसी के गद्दारी के कारण यह सीट खत्म हो गई थी, लेकिन इस बार राजद के जीत से यह सीट हासिल हुआ। राजद नेता बधाई देने के लिए राबड़ी देवी के पास पहुंच रहे हैं।पूर्व मंत्री और राजद के कद्दावर नेता श्याम रजक पुष्पगुच्छ भेंट कर बधाई दी। लोग अक्सर यह कहते सुने जा सकते हैं कि एक वोट से क्या होगा। हमारे एक मित्र निरंजन कुशवाहा पप्पू को राजद से एमएलसी का टिकट मिला। विधायकों को चुनना था।जीत से अधिक 4 वोट था, लेकिन राजद के चार कोइरी विधायक शकुनि चौधरी सहित वोट देने में गद्दारी कर दिया और 1 वोट से हार गए और आज तक एमएलसी नहीं बन पाए। लेकिन इतिहास खंगालने पर एक वोट की ताकत क्या होती है यह पता चलता है। देश और दुनिया का इतिहास गवाह है कि एक वोट की ताकत कभी कम नहीं रही। एक वोट ने सरकार तक को गिरा दिया तो किसी के मुख्यमंत्री बनने के सपने पर पानी फेर दिया। कहीं एक वोट हिम्मत, साहस और मजबूत इरादे के प्रतीक के तौर पर सामने आया। आप देखेंगे कि एक वोट ने कितना बड़ा खेल कर दिया ताकि एक वोट को कमतर करके न आंका जाए।
अप्रैल, 1999 भारतीय इतिहास में एक अहम घटना के लिए दर्ज है। इसी दिन 13 महीने पुरानी अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया था। अविश्वास प्रस्ताव सिर्फ एक वोट से पास हुआ था। प्रस्ताव के पक्ष में 270 वोट पड़े थे और खिलाफ 269 वोट। इसके नतीजे में वाजपेयी सरकार गिर गई।
2008 के राजस्थान विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस के सीनियर लीडर सी.पी.जोशी सिर्फ एक वोट से हार गए थे। उनके प्रतिद्वंद्वी बीजेपी के कल्याण सिंह चौहान को 62,216 वोट पड़े थे जबकि उनको 62,215। वह उस समय मुख्यमंत्री पद के मजबूत उम्मीदवार थे लेकिन एक वोट ने उनकी सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया।
कर्नाटक विधानसभा के 2004 के चुनाव में ए.आर.कृष्णमूर्ति जनता दल सेक्युलर के टिकट पर लड़े थे। उनके प्रतिद्वंद्वी ध्रुवनारायण को 40752 वोट मिले जबकि उनको 40751। वह विधानसभा चुनाव में एक वोट से हारने वाले पहले शख्स बन गए थे।
2017 में गुजरात की तीन राज्यसभा सीटों के लिए चुनाव हुआ था। एक सीट पर कांग्रेस की ओर से अहमद पटेल लड़ रहे थे। कांग्रेस के ही दो विधायकों ने क्रॉस वोटिंग कर दी थी जिससे अहमद पटेल की जीत मुश्किल हो गई थी। क्रॉस वोटिंग करने वाले दो एमएलए यह भूल गए थे कि वे वोट करते वक्त भी कांग्रेस के सदस्य थे और वे पोलिंग बूथ पर खड़े होकर अपनी बदली हुई वफादारी का सार्वजनिक प्रदर्शन नहीं कर सकते। इससे उनके वोट रद्द हो गए जिससे जीतने के लिए वोटों की संख्या 43.5 हो गई। अहमद पटेल को 44 वोट मिले थे, इस तरह वह आधे वोट से जीत गए।
1876 में अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में रदरफॉर्ड बी.हेज और टिलडन के बीच मुकाबला था। टिल्डन 2,50,000 के अंतर से पॉप्युलर वोट जीत गए थे। लेकिन जब इलेक्टोरल वोट की बारी आई तो उनको सिर्फ 184 वोट मिले थे जबकि रदरफॉर्ड 185 वोट जिससे उनकी जीत सुनिश्चित हुई।
एक वोट ने इंग्लैंड की प्रधानमंत्री रहीं मारग्रेट थैचर की जिंदगी में अहम भूमिका निभाई। साल 1979 की बात है। उन दिनों थैचर विपक्ष की नेता थीं। लेबर पार्टी सत्ता में थी और प्रधानमंत्री जेम्स कैलहैन थे। थैचर ने पीएम जेम्स कैलहैन के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया। प्रस्ताव के पक्ष में 311 और खिलाफ 310 वोट पड़े। यानी एक वोट से प्रस्ताव पास हुआ। उसके बाद चुनाव में जीत के साथ मारग्रेट थैचर मजबूत नेता के तौर पर उभरीं।
1919 में नाजी पार्टी की स्थापना हुई थी। 1921 में हिटलर ने नाजी पार्टी की कमान संभाली थी। नाजी पार्टी की कमान संभालने से पहले पार्टी के कई सदस्य हिटलर के खिलाफ थे। उनका मानना था कि वह बहुत महत्वाकांक्षी है और इस वजह से उनलोगों ने हिटलर की शक्तियों को सीमित करने की कोशिश की। इससे नाराज होकर हिटलर पार्टी छोड़कर चला गया। फिर उनलोगों को अहसास हुआ कि हिटलर जैसे प्रभावशाली इंसान के जाने से पार्टी पर असर पड़ेगा। इसके नतीजे में हिटलर पार्टी में लौटा तो सही लेकिन अपनी शर्तों पर। 29 जुलाई को हिटलर को पार्टी का चेयरमैन चुनने के लिए वोटिंग हुई। कुल 554 सदस्यों में से सिर्फ एक सदस्य ने हिटलर के खिलाफ वोट दिया। ऐसे समय में जब सारे सदस्य हिटलर के साथ खड़े थे, एक का उसके खिलाफ जाना वाकई में ऐताहिसक और साहसिक कदम था।
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