कुपोषण भारत की गम्भीर समस्या ! प्रसिद्ध यादव।

 


 आखिर भारत में विकास किसका हो रहा है?चंद पूंजीपतियों की। बाकी  आधे आबादी को हाशिये पर रह जाना को  कल्याणकारी लोकतांत्रिक व्यवस्था नही कह सकते हैं।हालांकि कुपोषण से निपटने के लिए सरकार द्वारा अनेक योजनाएं जैसे आंगनबाड़ी ,विद्यालय में पोषाहार चल रहे हैं लेकिन इसका भी अधिकांश हिस्सा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई है।

भारत में हालात और भी बदतर हैं जहां करीब 50 फीसदी बच्चे कुपोषण का शिकार हैं । जिसका परिणाम ने केवल उनके बचपन पर पड़ रहा है बल्कि उनका भविष्य भी अंधकारमय हो रहा है । हाल ही में पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया, आईसीएमआर और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रेशन द्वारा भारत के सभी राज्यों में कुपोषण की स्थिति पर एक रिपोर्ट जारी की थी । जिसके अनुसार वर्ष 2017 में देश में कम वजन वाले बच्चों के जन्म की दर 21.4 फीसदी रही। जबकि जिन बच्चों का विकास नहीं हो रहा है, उनकी संख्या 39.3 फीसदी, जल्दी थक जाने वाले बच्चों की संख्या 15.7 फीसदी, कम वजनी बच्चों की संख्या 32.7 फीसदी, अनीमिया पीड़ित बच्चों की संख्या 59.7 फीसदी और अपनी आयु से अधिक वजनी बच्चों की संख्या 11.5 फीसदी पाई गई थी। हालांकि पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौत के कुल मामलों में 1990 के मुकाबले 2017 में कमी आई है। 1990 में यह दर 2336 प्रति एक लाख थी, जो 2017 में 801 पर पहुंच गई है, लेकिन कुपोषण से होने वाली मौतों के मामले में मामूली सा अंतर आया है।  1990 में यह दर 70.4 फीसदी थी, 2017 में जो 68.2 फीसदी ही पहुंच पाई। यह एक प्रमुख चिंता का विषय है, क्योंकि इससे पता चलता है कि कुपोषण का खतरा कम नहीं हुआ है।

स्पष्ट है कि हम इस समस्या को जितना समझ रहे है, यह उससे कई गुना बड़ी है । आज हमारी वरीयता सिर्फ बच्चों का पेट भरना न होकर उन्हें एक संतुलित और पोषित आहार देने की होनी चाहिए । जो न केवल राष्ट की जिम्मेदारी है बल्कि परिवार को भी इसमें अपनी भूमिका समझनी होगी ।


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