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Showing posts from November, 2021
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        फिसड्डी और बेमिसाल बिहार  ! प्रसिद्ध यादव अगर किसी राज्य के बारे में नीति आयोग सभी मोर्चे पर फिसड्डी  साबित कर दे और वहां की सरकार अपने 16 साल की शासन को बेमिसाल बताये तब इससे बड़ा उपहास और क्या हो सकता है? बिहार की स्थिति यही है। सरकार को पिछड़ने के कारणों को पता करना चाहिए, न कि झूठे गाल बजाना चाहिए। केरल से सीख लेने की जरूरत है। स्वच्छता में भोपाल से सीखना चाहिए, तब कल्याण होगा न कि झूठे दलील देने से।नीति आयोग के सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) भारत सूचकांक  2020-21 में केरल ने एक बार फिर शीर्ष स्थान बरकरार रखा है, जबकि इसमें बिहार का प्रदर्शन सबसे खराब रहा है. सतत विकास लक्ष्यों के इस सूचकांक (एसडीजी) में सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय मापदंडों पर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की प्रगति का मूल्यांकन किया जाता है. देश के स्तर पर एसडीजी स्कोर 2020-21 में छह अंकों के सुधार के साथ 60 से बढ़कर 66 अंक रहा है. नीति आयोग ने एक बयान में कहा कि देश भर में मुख्य रूप से स्वच्छ जल एवं स्वच्छता और सस्ती एवं स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में अनु...

साहित्यकार भारत यायावर को सूत्रधार ने याद किया- प्रसिद्ध यादव।

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    नाटकों पर एक नज़र। सूत्रधार कालिदास रंगालय के शकुंतला प्रेक्षागृह में तीन दिवसीय नाटक मंचन किया इसमें साहित्यकार मन्नु भंडारी, भारत यायावर और नाटककार तरुण मुखर्जी को समर्पित कार्यक्रम था। तीनों मूर्धन्यों को अतिथियों ने तैल चित्रों पर पुष्पांजलि अर्पित किये थे। सूत्रधार साहित्यकार, समाजसेवी को भी याद करती है।इसके लिये पूरे टीम और विशेषकर नवाब आलम, निदेशक नीरज कुमार धन्यवाद के पात्र हैं,  जो अपने धरोहरों, विरासतों को जेहन में बसाये हुए हैं। नाटक मंडली के टीम  प्रांगण पटना के "अतीत के वातायन " लेखक अरुण सिन्हा, निदेशक अभय सिन्हा , मंडल सांस्कृतिक संघ, पूर्व मध्य रेल ,दानापुर की " ढक निया पोखर " के लेखक नरेन निदेशक अरुण सिंह पिंटू  एकजुट खगोल की नाटक " पागल " निदेशक अमन कुमार , सूत्रधार खगोल की प्रस्तुति नाटक " अनाथ " लेखक रविन्द्र नाथ टैगोर निदेशक नीरज कुमार के नाटको के सफल मंचन किया गया। इस अवसर पर अनेक विद्वानों ,साहित्यकारों, राजनीतिज्ञों का आगमन हुआ, दर्शन हुए और उनके विचारों को सुनकर दर्शक  बहुत कुछ समझा। ऐसे तो सभी  नाटकों के प्रदर्शन अच...

पदमश्री श्याम शर्मा कलाकारों के प्रेरणा स्रोत- प्रसिद्ध यादव।

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         25 नवम्बर को कालिदास रंगालय के शकुंतला प्रेक्षागृह में सूत्रधार खगोल के  नाट्य उत्सव के समापन समारोह में श्री शर्मा जी की उपस्थिति से सुखद अनुभूति हुई। अंतराष्ट्रीय स्तर के ख्याति प्राप्त शख्सियत को अपने बीच में पाना और एक मंच पर साथ साथ स्मारिका का विवेचन करना हम सभी को रोमांचित करने वाले क्षण थे। इनके ओजस्वी व्यक्तित्व को मैं बहुत करीब से निहार रहा था। इनकी वाणी में ओज थी।   देश के जाने-माने छापा कलाकार और कला गुरु श्याम शर्मा किसी परिचय के मोहताज नहीं है। बिहार के वरिष्ठ कलाकारों में से एक, सबसे ज्यादा सक्रिय कलाकार के तौर पर उन्हें जाना जाता है। हाल ही में उन्हें पद्म पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है। श्याम शर्मा बिहार के कला जगत के लिए अभिभावक की तरह रहे हैं और बिहार की आधुनिक कला यात्रा के दशकों से साक्षी हैं, उसे बेहद करीब से देखा है। इसलिए वो इस बात को शिद्दत से महसूस करते हैं कि जिस जगह, राज्य से निकलकर एक कलाकार राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय कला की क्षितिज पर छा जाता है या अनेक कलाकार अपनी सशक्त पहचान बनाने में कामयाब होते हैं, वह...

कालिदास रंगालय में सुनहरे यादगार के साथ समापन हुआ सूत्रधार का नाट्योत्सव- प्रसिद्ध यादव

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      साहित्यकारों, रंगकर्मियों ,विद्वानों, राजनीतिज्ञयों ,समाजसेवियों का हुआ समागम। फ़िल्म अभिनेता पंकज त्रिपाठी भी खगोल के रंगमंच के उपज।विश्वविख्यात चित्रकार सुबोध गुप्ता खगोल में नाटकों के पोस्टर की करते थे चित्रकारी।होजियरी के लिये देश में लुधियाना तो नाटक के लिए खगोल- डॉ ध्रुव।  पदमश्री श्याम शर्मा जी को नवाब आलम और रीतलाल यादव जी को अंगवस्त्र और प्रतीक चिन्ह भेंट किया साथ में मो सादिक ,असितानंद भी थे। द्वारा आयोजित त्रिदिवसीय खगौल विरासत नाट्य महोत्सव 2021 का आज समापन हो गया. आरंभ में अतिथियों का स्वागत संस्था के महासचिव नवाब आलम,अधिवक्ता ने किया. उन्होंने कहा कि खगौल सहित देश की सांस्कृतिक विरासत पर और परंपरा पर हमे गर्व है,लेकिन बाजारवाद और शहरीकरण ने हमारे रंगमंच को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है. इस अवसर पर सूत्रधार द्वारा प्रकाशित स्मारिका का विमोचन पद्मश्री श्याम शर्मा, रीतलाल राय विधायक, दानापुर, संजय उपाध्याय पूर्व निदेशक, मध्य प्रदेश स्कूल ऑफ ड्रामा, डॉ विनोद कुमार मंगलम, समाजसेवी संजीत कुमार, के करकमलों से हुआ. अतिथियों ने स्मारिका की प्रशंसा करत...

24 नवम्बर को सूत्रधार के नाट्योत्सव में दो नाटकों का हुआ मंचन- प्रसिद्ध यादव

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  सूत्रधार खगोल 42 वर्षों से विरासत नाट्योत्सव मना रहा है। इस बार पटना के कालिदास रंगालय में यह उत्सव हो रहा है। कार्यक्रम का आरम्भ अतिथियों के स्वागत और सम्मान से शुरू हुआ। सूत्रधार के महासचिव नवाब आलम  लेखक अवधेश प्रीत को अनिल कुमार डॉ ध्रुव कुमार को, मो सज्जाद दूरदर्शन के उद्घोषक सुमन कुमार को नीरज प्रमोद त्रिपाठी को , अस्तानन्द मिश्रा जी को अंगवस्त्र देकर सम्मानित किया।कल दो नाटक प्रबोध जोशी लिखित और खगोल के अमन कुमार द्वारा निर्देशित नाटक " पागल " का मंचन हुआ।इसे एकजुट संस्था खगोल द्वारा सफल मंचन किया गया।नाटक में बेनामी कलाकारों की पीड़ा को दिखाया गया है। दूसरा नाटक नरेन की मूल कहानी " ढकनिया पोखर " नाटक का निर्देशन अरुण कुमार सिंह पिंटू मंडल सांस्कृतिक संघ पूर्व मध्य रेल दानापुर की संस्था द्वारा सफल मंचन किया गया। इस नाटक में दिखाया गया कि कैसे भोले भाले लोगों को भटकाकर गलत रास्ते पर ले जाते हैं। भटकाने वाले नेता बन जाते हैं और भटकने वाले बेमौत मारे जाते हैं।चर्चित नाटककार , लेखक उदय कुमार  और पिंटू मुख्य भूमिका में थे।सभी कलाकार दानापुर रेलवे में कार्यरत हैं।...

सूत्रधार का तीन दिवसीय नाट्योत्सव हुआ आरम्भ- प्रसिद्ध यादव

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  पटना कालिदास रंगालय में शाम 6 बजे से 23 नवम्बर से 25 नवम्बर तक चार नाटकों का मंचन होना है।23 नवम्बर को कार्यक्रम के उद्घाटन बिहार हिंदी साहित्य के अध्यक्ष अनिल सुलभ, रंगालय के अध्यक्ष r n das, दानापुर नगर परिषद के अध्यक्ष डॉ अनु कुमारी ,सूत्रधार के महासचिव नवाब आलम ,अस्तानन्द और मैं द्वीप प्रज्जलित कर कार्यक्रम का उद्घाटन किया।अतिथियों को पुष्पगुच्छ और अंगवस्त्र देकर सम्मानित किया गया।सुलभ को नवाब आलम और नगर अध्यक्ष, दानपुर के डॉ अनु कुमारी को मैं अंगवस्त्र दिया। साहित्यकार मन्नु भंडारी, भारत यायावर और नाटककार तरुण मुखर्जी के तैल चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की गई। अरुण सिन्हा लिखित और अभय सिन्हा निर्देशित " अतीत का वातायन" नाटक बिहार के आजादी के जंग में लड़े बहादुरों की वीर गाथा है। संथाल विद्रोह, सिधू कान्हू,बिरसा मुंडा, पटना के पीर अली की फांसी,बाबू कुंवर सिंह की फिरंगियों से युद्ध, दानापुर में मंगल पांडेय का सिपाही विद्रोह, मुजफ्फरपुर में चाकी प्रफुल्ल की शहादत, खुदीराम बोस की फांसी, चंपारण में किसानों को फिरंगियों द्वारा जबरन निल की खेती, विदेशी कपड़ों की होली राजकुमार शुल...

हर चुनाव एक सबक है-, सनक नहीं - प्रसिद्ध यादव

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   जनता को ठेंगा दिखाहरने वाले को ही जनता ठेंगा काट दी है।यह सबक केवल पराजितों के लिए ही नहीं है, बल्कि जीतने वाले के लिए भी है। जीतते ही  कुछ लोगों के बोल बदल गये हैं। कुछ लोग जीत का श्रेय पैसों को दे रहे हैं तो कुछ लोग अपनी काबलियत की। एक आवेदन लिखने के लिए कह दें तब सब काबिलियत निकल जायेगी। मान सम्मान पैसों से नही मिलती है, व्यवहार से मिलता है। अगर सनकी रवैया रहा तब जनता तिरस्कार कर ही सकती है। इसे कौन रोक सकता है, दरवाजे पर एक कुत्ता भी नहीं जाएगा, न कोई दरवाजे पर बुलायेगा।तब कैसा लगेगा।जहाँ की जनता जागरूक है, उसके अधिकार का हनन कोई नही कर सकता, किसी जनप्रतिनिधियों में दम नही है। कुशल व्यवहार की बात मैं बराबर करता हूँ, लेकिन भैंस के आगे बीन बजाये, बैठी भैंस पघुराये वाली बात है। पराजित लोगों से पूछें कि वे कैसे पराजित हुए, इसका उत्तर उन्हें मालूम है, लेकिन नई नवेली अभी नखरे दिखा रहे हैं।बस एक रात की तो बात है, सारे नखरे खत्म हो जाएंगे। जीतने वाले न कोई तीसमारखाँ नही है और हारने वाले कोई मिट्टी में नही मिला है। कितने जीतने वाले और गाड़ी में बोर्ड लगाकर घूमने वाले को पैदल...

मन्नू भंडारी हिंदी साहित्य की स्तम्भ थी-प्रसिद्ध यादव

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             मैं हँस पत्रिका में लिखी इनकी कहानियों से काफी सीखा।इनकी रचना और शैली के कायल थे हम।मेरी साहित्य में रुचि इनकी कहानियां पढ़कर हुई। महान लेखक राजेंद्र यादव की जीवनसाथी के साथ लेखनी की भी साथी थी।राजेंद्र यादव के मृत्यु के बाद मन्नू भंडारी ही लोकप्रिय पत्रिका हँस की संपादन कुशलता पूर्ण की थी।इनकी कहानियों समाज को नई दिशा देने वाली थी। 1950 में भारत को आज़ादी मिले कुछ ही साल हुए थे, और उस समय भारत सामाजिक बदलाव जैसी समस्याओ से जूझ रहा था। इसीलिए इसी समय लोग नयी कहानी अभियान के चलते अपनी-अपनी राय देने लगे थे, जिनमे भंडारी भी शामिल थी। उनके लेख हमेशा लैंगिक असमानता और वर्गीय असमानता और आर्थिक असमानता पर आधारित होते थे। मन्नू भंडारी एक भारतीय लेखक...

दहेज दानव ने मार दिया अपनी जीवन संगनी को😢- प्रसिद्ध यादव।

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 आंसूओं से लिखी गई मेरी संवेदना है। अग्नि के साक्षी मानकर अपने जीवन संगनी बनाने वाले टीचर दूसरे के इश्क में पड़कर धर्मपत्नी को तड़पा कर मार दिया। पंकज यादव युवा होनहार छात्र है और इनसे मेरी दोस्ती फब से हुई। ये शेरघाटी गया के रहने वाले हैं, इनकी बहन की हत्या हुई है। घटना के दिन मुझे फोन किया।लोग केस नहीं करने के लिए दबाव बना रहे थे।मुझे यह वाकया  सुनाया। मैं तुरंत dgp बिहार और dm गया का no सेंड किया और बोला कि आपकी बात न सुने तब मुझे बतायें। मैं बात करूंगा, लेकिन काम हो गया। पंकज के फब पर दर्दभरी पोस्ट देखकर हर कोई के आंखों में आंसू आ गए।" मेरी दीदी को ससुराल वाले मार दिया। भगवान इनकी आत्मा को शांति दें!" यही पोस्ट था पंकज का बहन की तसवीर के साथ और साथ में था हत्या के आरोपी पति की तसवीर! आदमी के शक्ल में दहेज दानव और चरित्रहीन कैसे क्रुरता का हद पार कर दिया। कितनी तड़पकर जान गई होगी? किसको चीख पुकार करती होगी।मां, पिता, भाई बहन रिश्तेदारों को याद करती होगी।इस तड़प चीख की सजा मौत भी कम होगी। कुछ समाज और जाति के ठेकेदार छोटे बच्चों के हवाला देकर आरोपी को बचाने का कुचक्र रचते हैं, घ...

जनता दुर्गति कर दी निवर्तमानों को- प्रसिद्ध यादव

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   मैनपुर अंदा पंचायत में सबसे ज्यादा एक को छोड़कर सभी को दुर्गति कर दी है। दो बार  से  मुखिया रहे को 7 वां पायदान पर धकेल दिया। निवर्तमान सरपंच मुखिया में थे तीसरे पायदान पर रहे बाकी कोई 8 वें 6 ठे पायदान पर जा अटके।  इनकी बुरी दशा पर मैं चुनाव में लिखना बन्द कर दिया, क्योंकि कभी ये लोग  अच्छे मित्र थे।मुझे हार पर अफसोस भी हुआ केवल घमण्ड में सब चूर हुआ। निवर्तमान जिला पार्षद इसी पंचायत के थे 5 वें पायदान पर अटक गए। यहां के अनेक पूर्व प्रतिनिधि और उनके परिजनों को भी जनता जमकर बदला लिया। कोई परिणाम को समीक्षा नही करता, लेकिन मेरी कोशिश है कि वास्तविकता को जानें। समाजवादी लोग पैसे देकर वोट नहीं लेते थे, लेकिन अब नवधनाढ्य हो गए और पैसा ले वोट दे करने लगे। हार से ज्यादा सदमा पैसा गलने से है। समय गया, पैसा गया और मिला ठनठन गोपाल! पैसा बांटने वाले पराजित हुआ , अच्छा नही हुआ, रहम होना चाहिए था। अब पैसा लेने वाले को गाली देकर अपनी आह मिटा रहे हैं। मेरे पंचायत में जो भोले भाले थे उनकी प्रैक्टिस अच्छी रही, औसतन 25 हजार का शुद्ध मुनाफा कमाया और मुर्गा .. बोनस में। एक स...

किसानों की तपस्या बलिदान सरकार की चूल हिला दी- प्रसिद्ध यादव

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         किसानों की संघर्ष, आंदोलन, बलिदान और तपस्या को पीएम अपनी तपस्या में कमी बता रहे हैं।किसानों के राहों में कील कांटे बिछाने वाली सरकार, सड़को पर कुचलने वाले कि कैसी तपस्या थी,हास्यास्पद से ज्यादा कुछ नही है। पवित्र हृदय से क्षमा याचना कर रहे हैं, लेकिन सैंकड़ों किसानों के बलिदान पर संवेदना का एक शब्द नही निकलना निष्ठुरता की पराकाष्ठा है। अगर यूपी , उत्तराखंड, पंजाब में चुनाव नही होने वाली होती तो यह सरकार बिल वापसी की घोषणा कभी नहीं करती।किसानों के आंदोलन से सरकार पूरी तरह से डर गई थी।. एक साल से अधिक समय से टिकरी सिंधु बॉर पर चल रहे किसान आंदोलन के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों कृषि कानून बिल को वापस लेने का ऐलान किया है। पंजाव व यूपी के आगामी विधानसभा चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी के फैसले को अलग-अलग नजरिए से देखा जा रहा है। प्रधानमंत्री ने तीनों बिल को वापस लेने का ऐलान किया है। बिल वापस होने से भले ही किसान खुश नजर आ रहे हों लेकिन किसान आंदोलन में बड़ा नुकसान हुआ है। संयुक्त किसान मोर्चा के अनुसार किसान आंदोलन के दौरान 605 से अधिक किसानों की मृत्य...

चुनावी फीवर- रुदाली से कुदाली की चलती -प्रसिद्ध यादव

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      फुलवारी में चुनाव परिणाम आ गया।कई लोग वायरल बुखार की तरह चुनावी बुखार से तप रहे हैं।उनके प्रति मेरी हमदर्दी है अपने ब्लॉग से सांत्वना दे रहा हूँ।एक भाई गुस्से में पूछ दिया आपके सांत्वना से 20 लाख वापस आ जायेगा।नहीं।मैंने कहा माथा पटकने से वापस आने की संभावना है तब पटकिये। नवयुवक एक टीम बना रखा है जिस किसी को नामांकन में जितना जन चाहिए, ये लोग मामूली रेट करीब 1000 पर हेड में  मुहैया करवाते हैं।अब दानापुर प्रखंड में इनकी एक दिन में चार चार बुकिंग है।प्रत्याशी के नाम भूल जा रहे हैं। नामांकन किसी और का जयकारे किसी और के।प्रत्याशी बिदक गए सर्विसेज ठीक नहीं है, अब नामांकन पर्ची देखकर बोल रहे हैं। मैं बोला अब से पहले चरण से विज्ञापन निकाल दो, जैसे mp छत्तीसगढ़ में किसी के मृत्य पर रोने के लिये बुलाया जाता है।युवा ने पूछा इसे कौन नाम से पुकारते हैं लोग। रुदाली मेरा जवाब था।युवा बोले कोई मेरा भी इसी टाइप के नाम रख दीजिए। कुदाली कैसा रहेगा? युवा बोला शानदार, लेकिन इसका मतलब क्या होता है। कुदाल । जहां लगो खोद दो।अब ये कुदाली दानापुर में अपनी सेवा  ईमानदारी से दे ...

आंध्रप्रदेश के कड़प्पा में बाढ़ से त्राहिमाम।प्रसिद्ध यादव

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  मैं भारी बारिश में कडप्पा जिले के नंदलूरु से पटना के लिए निकला था, लेकिन इसके तीन चार दिन बाद और बारिश तूफान से जल जीवन अस्त व्यस्त हो गया। रेल की पटरियों कबर गयी।रेल यातायात ठप्प हो गया है।मेरा पुत्र नंदलूरु में लोको पायलट है जनजीवन ठप्प है।आंध्र प्रदेश के कडप्पा,अनंतपुर समेत तटीय जिलों में शुक्रवार को अचानक आई बाढ़ में 3 लोगों की मौत हो गई। बाढ़ के पानी में कई लोगों के बहने की खबर है। बारिश का पानी तिरुपति के प्रसिद्ध मंदिर में भी घुस गया है। कडप्पा जिले के अधिकारियों ने बताया कि चेयेरू छोटी नदी में अचानक बाढ़ आने से तट पर बसे कुछ गांवों में पानी भर गया। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर शिव मंदिर में पूजा कर रहे श्रद्धालुओं का एक समूह अचानक बाढ़ में फंस गया और कुछ लोग राजमपेट क्षेत्र में बाढ़ के पानी में बह गए। नन्दलुरु के पास तीन शव बरामद किए गए हैं। कुछ लोगों की तलाश की जा रही है।  उधर, अनंतपुर जिले की चित्रावदी नदी में 11 लोग भारी बारिश और नदी में उफान के कारण फंस गए। सूचना मिलते ही जिला प्रशासन और अन्य अधिकारियों ने रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू कराया। जेसीबी के जरिये कार को निकाला ग...

किसानों के आगे झुकी सरकार।प्रसिद्ध यादव।

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       केंद्र सरकार कृषि बिल वापस लेकर डैमेज  कंट्रोल में जुट गई है। एक साल से अधिक किसान इस बिल के खिलाफ आंदोलन चला रहे थे, सरकार सुन नही रही थी।अबतक कफीब 700 किसान अपने प्राणों की आहुति दे चुके हैं, लेकिन अन्तोगत्वा किसानों की जीत हुई।यह आंदोलन यह साबित किया कि लाख बहुमत की सरकार हो, लेकिन जनता चाह ले तो सरकार को झुकनी पड़ेगी।जनता से बड़ा न कोई। बीजेपी को 2019 में चुनाव जीतने के बाद पहली बार इस तरह के विरोध प्रदर्शन का सामना करना पड़ा और उसे अपने क़दम पीछे खींचने पड़े हैं. किसान संगठनों और सरकार के बीच कई चरणों की बात हुई थी लेकिन सरकार क़ानून वापस लेने को तैयार नहीं थी. कई विशेषज्ञों का मानना है कि मोदी सरकार का यह राजनीतिक क़दम है क्योंकि उसे उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में किसानों की नाराज़गी से चुनावी नुक़सान की आशंका थी. ऐसे में चुनाव से पहले यह क़दम उठाया गया है. ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने भी तीनों कृषि क़ानूनों को वापस लेने पर तंज़ करते हुए पीएम मोदी को निशाने पर लिया है. ओ...

जनता के मान सम्मान करें। प्रतिशोध अहंकार का करें त्याग- प्रसिद्ध यादव।

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  चुनाव में पराजित होने और जीतने वाले दोनों जनता को खयाल रखें। पराजित होने वाले धन लुटाने की खीज जनता पर उतार रहे हैं, जैसे मानो लगता है कि अब जनता से भविष्य में काम नहीं है। जीतने वाले जीत का सेहरा अपने पैसों को दे रहे हैं और बेशर्म की तरह कटु वचन बोलकर जनता से दूरी बना रहे हैं। इतना जल्दी गिरगिट भी रंग नही बदलती है। जनता भी कम नही है वोट बेचने की दुकान लगा रखी थी। इन झंझावातों के बीच हर जगह समाजसेवी और राजनीतिज्ञ होते हैं, जो किसी के  एहसानमन्द नहीं होते हैं और अन्तोगत्वा जनता की रक्षा यही करते हैं। अगर जीतने के बाद समझता है कि तीसमारखाँ बन गए हैं तब यह सोच पागलपन से ज्यादा कुछ नही है।ऐसे लोगों पर सख़्त नजर रखने की जरूरत है और नकेल कसने की भी। कुछ अंधे समर्थक समझते हैं कि जनप्रतिनिधि को रबर स्टाम्प बनाकर मनमर्जी से काम करवायें, जो असम्भव है।चुनाव लड़ने वाले या जीतने वाले इतने बुद्धू नही है की किसी के पॉकेट मनी बनकर रह जाये। ये सारी विकृतियां अशिक्षा के कारण है। शिक्षित और सभ्य समाज किसी के चाकरी और दरबारी न कर के स्वाभिमान से रहते हैं और इनसे लोगों को सीख लेनी चाहिए।

पैसों के केंद्र में राजनीति! अनीति ही अनीति - प्रसिद्ध यादव

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 मूर्खों की सवारी करते हैं अनारी! अब चुनाव सिर्फ पैसों का खेल रह गया है। आदमी की पहचान, रुतबा, सम्मान पैसों से होने लगा है। पंचायत चुनाव में जब से विकास के लिए फंड आना शुरू हुआ है तब से वोटों का पैसों से व्यपार हो गया है। येन केन प्रकरेण  पैसे कमाने वालों की पूछ हो गई है। समाजसेवी, राजनीतिज्ञ हाशिये पर जा रहे हैं। पंचायत चुनाव में भले ही लोगों के सर पर ताज मिल रहा है, लेकिन उनके दिल में ये कसक जरूर होगी कि यह ताज जनमत नहीं, पैसों से मोल भाव कर के खरीदा गया है, कुछ अपवादों को छोड़कर। जो पैसा से वोट खरीदा है, क्या वैसे जनप्रतिनिधि अपनी लागत सूद सहित वसूल नही करेंगे?  अगर वसूल करेंगे, तब इसको मोनेटरिंग करने वाले कहाँ रहते हैं। क्षेत्र के तथाकथित नेता चुनाव बाद सो जाते हैं और भ्रष्टाचार फलने फूलने लगता है। इस पर अंकुश लगाने वाले वही सामाजिक कार्यकर्ता जूझते हैं। ऐसे लोग निस्वार्थ समाज की सेवा करते रहते हैं, लेकिन पैसों की दुनिया में  इनके मूल्यांकन, पद प्रतिष्ठा नही मिलना चिंताजनक है। समाज  भावनात्मक लगाव, अपनापन,संवेदना, भाईचारे से चलता है न कि सिर्फ पैसों से। पैसा ...

राजनीति से सीख! राजनेताओं को भी सिखायें सबक - प्रसिद्ध यादव

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   हर चुनाव एक सबक और सीख होती है। ऐसे अच्छे लोगों को राजनीति से सन्यास लेना ज्यादा अक्लमंदी है। अब राजनीति करना साख पर बट्टा लगना है और बिना पैसों की राजनीति की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। स्थानीय राजनीति से आपसी मतभेद बढ़ते जाते हैं। हर सीट पर जीत एक कि होती है और दावेदार औसतन 8 लोग होते हैं। 7 लोगों की पराजय निश्चित है।सभी प्रत्याशी जान पहचान के, रिश्तेदार, मित्र, शुभचिंतक होते हैं। ऐसे में एक पद के 7 लोगों से बैर भाव हो जाता है अगर 5 ही पदों को लें तब एक चुनाव में 35 लोग खफा हो जाते हैं। अगर पंचायत के 5 चुनाव में किसी की सक्रियता रही हो तब  करीब 175 लोग न केवल खिलाफ हो जायेंगे, बल्कि आपकी राजनीति डेथ हो जाती है, क्योंकि लोग इतने परिपक्व नही हैं कि इसे खेल समझे। बाकी आपकी ऊर्जा स्थानीय विधायक और सांसद खत्म कर देंगे।मेरा मानना है कि साधारण लोगों को राजनीति से अलविदा कर अपने परिवार के भविष्य पर ध्यान देना चाहिए।  आपकी एहसान और मदद को कोई याद करने वाले नहीं है। लोग बिल्कुल प्रोफेशनल हो गए हैं तब आप भी प्रोफेसनल बन जाएं। जितना लोग आपको याद करते हैं, चाहते हैं, उतना ह...