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Showing posts from December, 2025

प्रेस क्लब ऑफ इंडिया की पहली महिला अध्यक्ष: संगीता बरुआ पिशारोती की प्रेरणादायक कहानी।

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    ​प्रेस क्लब ऑफ इंडिया (PCI) के 86 साल के इतिहास में रविवार, 14 दिसंबर, 2025 का दिन एक मील का पत्थर बन गया। यह वह दिन था जब अनुभवी पत्रकार संगीता बरुआ पिशारोती को PCI की पहली महिला अध्यक्ष के रूप में चुना गया। यह जीत सिर्फ एक चुनावी सफलता नहीं है, बल्कि देश की पत्रकारिता बिरादरी में महिलाओं के लिए एक नया अध्याय खोलने वाली एक महत्वपूर्ण घटना है। ​ एक ऐतिहासिक जीत के आंकड़े ​संगीता बरुआ पिशारोती ने अपने प्रतिद्वंदियों को भारी अंतर से हराकर यह पद हासिल किया। उन्हें कुल 1,019 वोट मिले, जो पत्रकार समुदाय के बीच उनके व्यापक समर्थन और विश्वसनीयता को दर्शाता है। उनके प्रतिद्वंदी अतुल मिश्रा और शर्मा अरुण को क्रमशः 129 और 89 वोट प्राप्त हुए। यह प्रचंड बहुमत न केवल उनकी व्यक्तिगत क्षमता में विश्वास दिखाता है, बल्कि भारतीय पत्रकारिता में लैंगिक समानता की बढ़ती स्वीकार्यता का भी प्रतीक है। ​ पत्रकारिता के क्षेत्र में एक लंबा सफर ​संगीता बरुआ पिशारोती की पहचान सिर्फ PCI की अध्यक्ष के तौर पर नहीं है, बल्कि एक गंभीर, जमीनी और प्रतिबद्ध पत्रकार के रूप में है, जिन्होंने तीन दशकों से अधिक सम...

संवाद: जड़ता तोड़ने वाला और साझा समझ बनाने वाला सेतु !

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    ​विमर्श की सुंदरता: जब संवाद विचारों के विवाद को पीछे छोड़ देता है ! आज के समय में, जब समाज और राजनीति में संवाद के स्थान पर विचारधारागत विवाद ने अपनी पैठ बना ली है, तब यह आवश्यक हो जाता है कि हम संवाद के महत्व को पुनः स्थापित करें। ​संवाद केवल बात करना नहीं है; यह समझने की कला है। यह किसी विषय पर भिन्न मतों, भावनाओं और दृष्टिकोणों के बीच एक रचनात्मक पुल बनाने का कार्य करता है। ​संवाद की महत्ता को निम्नलिखित बिंदुओं से समझा जा सकता है: ​जड़ता का भंजन: संवाद रूढ़िवादिता और स्थापित, अपरिवर्तनीय सोच की जड़ता को तोड़ता है। जब लोग अपने विचारों को खुलकर साझा करते हैं और दूसरों के विचारों को सुनते हैं, तो नई संभावनाओं और समाधानों के लिए रास्ता खुलता है। ​समस्या को 'साझा सरोकार' बनाना: विवाद किसी समस्या को 'मेरा बनाम तुम्हारा' बना देता है, जबकि संवाद इसे 'हमारा सरोकार' बनाता है। यह लोगों को समाधान की दिशा में एक साझा स्वामित्व और जिम्मेदारी का अहसास कराता है। ​सहानुभूति का विकास: एक अच्छा संवाद वक्ता और श्रोता, दोनों को एक-दूसरे के जूते में खड़े होने का मौका देता है...

शिक्षा व्यवस्था में शिक्षक की केंद्रीय भूमिका।

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    ​1. ग्रामीण शिक्षा की दयनीय स्थिति:  एक अकेला शिक्षक कैसे विभिन्न कक्षाओं, विषयों और आयु समूहों को समान गुणवत्ता के साथ पढ़ा सकता है? यह स्थिति न केवल शिक्षक के लिए अमानवीय है, बल्कि यह सीधे तौर पर बच्चों के संवैधानिक शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन भी है। यह शिक्षकों की 'समर्पित शिक्षण सामर्थ्य' को कम करता है। ​2. प्रशासनिक बोझ: मूल कार्य से भटकाव ​  शिक्षकों को उनके मूल कार्य से भटकाकर सतत प्रशासनिक भार का साधन बनाया जाता रहेगा, तो शिक्षा व्यवस्था भी सही दिशा में आगे नहीं बढ़ पाएगी। शिक्षकों को जनगणना, चुनाव ड्यूटी, विभिन्न सरकारी योजनाओं का सर्वेक्षण और अन्य गैर-शैक्षणिक कार्य सौंपे जाते हैं। यह न केवल शिक्षण के समय को नष्ट करता है, बल्कि शिक्षक के मनोबल को भी तोड़ता है। शिक्षक एक प्रशासक या क्लर्क नहीं है; उनका प्राथमिक कार्य शिक्षण और छात्र विकास है। जब देश अपने सर्वश्रेष्ठ दिमागों को कागजी कार्रवाई में उलझाता है, तो गुणवत्ता-आधारित शिक्षा एक दूर का सपना बन जाती है। ​3. गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की आधारशिला: यदि किसी राष्ट्र को गुणवत्ता आधारित शिक्षा व्यवस्था स्थापित...

चीख़ती दीवारें: विकास की दौड़ में पिछड़ा इंसान !

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     यह हमारे तथाकथित 'विकसित' समाज के माथे पर लगा एक ऐसा अमिट कलंक है, जो बताता है कि गगनचुंबी इमारतों और द्रुतगामी रेलों के नीचे आज भी इंसानियत किस तरह कराह रही है। मुज़फ़्फ़रनगर (यादवपुर) से आई यह घटना, जहाँ एक पिता अपने पाँच बच्चों के साथ फाँसी के फंदे पर झूल गया, मात्र एक आत्महत्या नहीं है—यह एक ऐसी हृदय-विदारक चीख़ है जिसे सभ्य समाज ने सुनने से इंकार कर दिया। ​ग़रीबी का फंदा या सूदखोरी का शिकंजा?  40 वर्षीय अमरनाथ राम अपनी पत्नी और बच्चों के साथ उस अंतिम, भयानक निर्णय पर क्यों पहुँचे। कारण है - कर्ज और आर्थिक तंगी, जिसे आम बोलचाल में 'सूदखोर' के उत्पीड़न का नाम दिया जाता है। एक तरफ़ हम डिजिटल इंडिया, 5 ट्रिलियन इकोनॉमी की बात करते हैं, वहीं दूसरी तरफ़ समाज की अंतिम पंक्ति का एक मज़दूर चंद रुपयों के कर्ज़ के बोझ तले इतना दब जाता है कि उसे अपने मासूम बच्चों की जान लेने और ख़ुद मरने में ही मुक्ति नज़र आती है। ​आज भी अनुसूचित जाति/जनजाति के लोग जानवरों से बदतर जीवन जीने को मजबूर हैं। ​यह विस्मय की पराकाष्ठा है कि जिस देश में संविधान ने सबको समान अधिकार दिए हैं, वहा...

प्रख्यात लोक कलाकार रामदास 'राही' का निधन !😢 सूत्रधार ने गहरी संवेदना व्यक्त की है।

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रामदास राही भोजपुरी लोक कला और गायन के एक मजबूत स्तंभ थे.. नवाब आलम  राही जी सांस्कृतिक विरासत के संरक्षक थे.... प्रो प्रसिद्ध यादव  ​भिखारी ठाकुर की रंग परंपरा को जीवंत रखने और उसे आगे बढ़ाने में अपना पूरा जीवन समर्पित करने वाले प्रख्यात लोक कलाकार श्री रामदास 'राही' के निधन से कला जगत में गहरा शोक व्याप्त है। सूत्रधार ने उनके निधन पर गहरी संवेदना व्यक्त किया है। बिहार ठाकुर सम्मान से सम्मानित सूत्रधार के महासचिव नवाब आलम ने अपने शोक संदेश में कहा है कि ​ रामदास 'राही' भोजपुरी लोक कला और गायन के एक मजबूत स्तंभ थे, जिन्होंने भिखारी ठाकुर की नाट्य और गायन शैली को न केवल संरक्षित किया, बल्कि अपनी जीवंत प्रस्तुतियों से उसे नई पीढ़ियों तक पहुँचाया। ​रामदास 'राही' जी ने जीवन पर्यंत लोक कला के माध्यम से सामाजिक चेतना फैलाने का कार्य किया। उनकी रंग परम्परा के प्रति लगन अद्वितीय थी। वे अपनी प्रस्तुतियों में भिखारी ठाकुर की रचनाओं के मूलभाव और अंदाज़ को यथावत बनाए रखने के लिए जाने जाते थे। संस्था के कार्यक्रमों में राही जी का योगदान अविस्मरणीय रहा है। ​नवाब आलम, महासचिव,...

पक्षी: मौसम का संकेत और प्राचीन ज्ञान की धरोहर

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    ​मौसम के संकेतक: मनुष्य सदियों से पक्षियों के व्यवहार को आने वाले मौसमों के संकेत के रूप में इस्तेमाल करता रहा है। ​अध्याय के अंत और नए अध्याय की शुरुआत का संकेत: पक्षियों की बढ़ती या घटती गतिविधि एक युग (अध्याय) के समापन और नए युग की शुरुआत का संकेत देती है। ​रंग और उत्साह: लंबी और नीरस अवधि (जैसे सर्दियाँ) के बाद, पक्षी अपनी उपस्थिति और रंग से प्रकृति में रंग-बिरंगा रंग और उत्साह भर देते हैं। ​सामूहिक व्यवहार और मौसम परिवर्तन की उम्मीद: जब पक्षी एक साथ इकट्ठा होते हैं और अपने पंख फड़फड़ाते हैं, तो यह मौसम में बदलाव की उम्मीद का एक पारंपरिक संकेत माना जाता है। यह पारंपरिक ज्ञान हमारे पूर्वजों ने पूरा मान और सम्मान दिया था, हालांकि आज हममें से ज्यादातर लोग इस जुड़ाव को भूल चुके हैं। ​पंचतंत्र की कहानियाँ मुख्य रूप से पशु-पक्षियों के माध्यम से मनुष्य के व्यवहार और व्यावहारिक सच्चाइयों को उजागर करती हैं। इनमें से कुछ प्रसिद्ध कहानियाँ हैं: ​बंदर और लकड़ी का खूंटा ​सियार और ढोल ​मूर्ख साधू और ठग ​बगुला भगत और केकड़ा ​मेढक और साँप की मित्रता ​जब शेर जी उठा (मूर्ख वैज्ञानिक) ​प...

दुनिया मेरे आगे: स्वयं का निष्पक्ष मूल्यांकन !

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    ​जीवन में यह बहुत संभव होता है कि कोई व्यक्ति किसी एक के लिए अच्छे से अच्छा हो, और वहीं किसी दूसरे के लिए बुरे से बुरा हो। हमारा व्यवहार और व्यक्तित्व अलग-अलग लोगों के सामने अलग-अलग तरह से प्रस्तुत होता है, जिससे उनकी धारणाएं भी भिन्न बनती हैं। ​ऐसी स्थिति में, जब हम यह मूल्यांकन करना चाहते हैं कि हम वास्तव में क्या हैं, तो केवल दूसरों की राय पर निर्भर रहना पर्याप्त नहीं होता। किसी की निगाहों में, हमारे कृत्यों के प्रति बनी धारणा हमेशा सकारात्मक ही हो, यह ज़रूरी नहीं होता। ​जब बाहरी धारणाएं इतनी परिवर्तनशील हों, तब स्वयं की वास्तविकता को कैसे समझा जाए? ​इसका उत्तर हमारे भीतर छिपा है। स्वयं के बारे में निष्पक्ष तथा तटस्थ अवधारणा की पुष्टि हमारी अंतरात्मा (conscience) ही करती है। हमारी अंतरात्मा ही वह दर्पण है जो हमें हमारे कार्यों की सच्चाई दिखाता है, बिना किसी बाहरी पक्षपात या पूर्वाग्रह के। ​सच्चाई की कसौटी: हमारी अंतरात्मा ही हमें बताती है कि हमने जो किया, वह नैतिक रूप से सही था या नहीं, चाहे बाहरी दुनिया उसे कुछ भी समझे। ​स्वयं को जानना: यह हमें दूसरों की अपेक्षाओं या न...

फर्जी IAS: एमएससी स्टूडेंट से ₹5 करोड़ की ठगी तक—गौरव सिंह का 'AI और रौब' का साम्राज्य बेनकाब!

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    ​चार राज्यों में फैला जाल, असली SDM को जड़े थप्पड़, और सरकारी टेंडर के नाम पर करोड़ों का चूना; यह 'फर्जी अधिकारी' नहीं, पूरी 'ठगी की इंडस्ट्री' था। ​गोरखपुर पुलिस ने एक ऐसे जालसाज को गिरफ्तार किया है, जिसने फर्जी IAS अधिकारी बनकर देश के चार राज्यों—उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और झारखंड—में ठगी का एक विशाल और सनसनीखेज नेटवर्क खड़ा कर लिया था। बिहार के सीतामढ़ी के मूल निवासी गौरव कुमार सिंह उर्फ़ ललित किशोर का यह साम्राज्य, महज दिखावे और रौब के दम पर करोड़ों की वसूली कर रहा था। उसकी हकीकत जान कर बड़े-बड़े अधिकारी भी सकते में हैं। ​ टीचर से 'आईएएस साहब' तक: रौब और प्रोटोकॉल का खेल ​गौरव सिंह की कहानी एक साधारण एमएससी छात्र और कोचिंग टीचर से शुरू होती है। लेकिन कुछ ही सालों में उसने खुद को 'वीआईपी' बनाने का रास्ता चुना। ​नकली रुतबा: दिन में साधारण, लेकिन रात होते ही वह लाल-नीली बत्ती लगी इनोवा में 'IAS साहब' बनकर निकलता था। उसके पीछे 6-7 लड़कों का काफिला चलता था, जो बॉडीगार्ड जैसा प्रतीत होता था। ​दबंग एंट्री: सरकारी दफ्तरों में उसकी एंट्री ...

कृषि में होम्योपैथी: एक वरदान, उपज में बढ़ोतरी !

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    रासायनिक निर्भरता से मुक्ति और जल संरक्षण! ​ कृषि क्षेत्र में होम्योपैथी का सफल प्रयोग किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण वरदान साबित हो रहा है। यह एक ऐसा नवाचार है जो न केवल फसलों की गुणवत्ता और उपज को बढ़ा रहा है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी एक क्रांतिकारी कदम है। ​कृषि-होम्योपैथी की सफलता एक वरदान क्यों? ​होम्योपैथी का यह नया प्रयोग, जिसे पुटुवेरी में शोधकर्ताओं ने किसानों के साथ मिलकर किया है, पारंपरिक खेती की कई समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करता है: ​जल संरक्षण और प्रदूषण में कमी: ​खेती के लिए पानी की खपत घटी है। ​जल प्रदूषण कम हुआ है। ​भूजल स्तर में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई है। ​ जल संकट और प्रदूषण आज की बड़ी समस्याएँ हैं। इस पद्धति का यह पहलू इसे एक बड़ा पर्यावरणीय वरदान बनाता है। ​मिट्टी और फसल स्वास्थ्य में सुधार: ​फसलों की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ी है, जिससे वे रोगों से लड़ने में अधिक सक्षम हो जाते हैं। ​मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए रसायनों पर निर्भरता कम हुई है। ​ पद्धति मिट्टी के प्राकृतिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करती है, जो दीर्घकालिक टिकाऊ कृषि के लिए महत्...

स्वयं का सम्मान: जब दूसरों को खुश करने की चाह में हम खुद को खो देते हैं !

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    ​एक ऐसा दौर आता है जब हम महसूस करते हैं कि किसी दूसरे के कारण खुद को दुखी करने की जरूरत नहीं है। यह विचार एक गहन मनोवैज्ञानिक सत्य को दर्शाता है: हमारी भावनात्मक स्थिरता और आत्म-मूल्य किसी और के कार्यों या अपेक्षाओं पर निर्भर नहीं होना चाहिए। ​ सिद्धांतों का त्याग और आंतरिक पीड़ा ​मनोविज्ञान में, आत्म-सम्मान (Self-Esteem) और आंतरिक सद्भाव (Internal Harmony) का सीधा संबंध हमारे सिद्धांतों और मान्यताओं के साथ होता है। जब हम दूसरों को खुश करने, उनकी आलोचना से बचने, या समाज द्वारा स्वीकृत होने की लालसा में अपने मूल सिद्धांतों का त्याग करते हैं, तो यह आत्म-विश्वास पर सीधा प्रहार करता है।  जब हम अपने सिद्धांतों को छोड़ देते हैं, तो सबसे अधिक पीड़ा खुद को ही होती है। यह पीड़ा बाहरी नहीं होती; यह एक आंतरिक संघर्ष है जो अपराध बोध ,पछतावे और पहचान के संकट (Identity Crisis) के रूप में प्रकट होता है। हमारा अंतर्मन (Conscience) हमें बताता है कि हमने अपनी सत्यनिष्ठा (Integrity) के साथ समझौता किया है। ​आत्म-कटघरा: सबसे बड़ा अन्याय ​जीवन में एक निर्णायक मोड़ आता है,  'एक दिन ऐसा ...

पलायन से प्रसव तक – HIV की अनकही कहानी !

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    ​1. पलायन और असुरक्षित व्यवहार (मुख्य कारक): ​बिहार में एचआईवी संक्रमण की उच्च दर का प्रमुख कारण पलायन है। रोजी-रोटी के लिए अन्य शहरों/विदेशों में गए मजदूर असुरक्षित यौन संबंध के कारण संक्रमित होते हैं। वापसी पर, वे अनजाने में अपनी पत्नियों को संक्रमित कर देते हैं, जिससे महिलाओं में संक्रमण का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है। ​2. माता से बच्चे में संक्रमण (PMTCT की विफलता): ​सीतामढ़ी जैसे जिलों में 400 से अधिक बच्चों में संक्रमण मिलना बताता है कि गर्भावस्था और प्रसव के दौरान संक्रमण को रोकने वाले कार्यक्रम (PMTCT) का क्रियान्वयन या तो अपर्याप्त है या गर्भवती महिलाओं की जाँच में गंभीर चूक हो रही है। यदि समय पर पहचान हो, तो बच्चे को संक्रमण से बचाया जा सकता है। ​3. स्वास्थ्य व्यवस्था पर आलोचनात्मक प्रश्न: ​यह 'विस्फोट' बिहार के स्वास्थ्य विभाग पर कई गंभीर सवाल खड़े करता है: ​जाँच का दायरा: क्या पलायन से लौटे लोगों की व्यापक जाँच हो रही है? ​बच्चों पर ध्यान क्यों नहीं?: बच्चों में बढ़ते मामलों ने PMTCT कार्यक्रमों को मजबूत करने की तात्कालिक आवश्यकता को उजागर किया है। ​भेदभाव (Stigma...

पूर्व मध्य रेल के महाप्रबंधक द्वारा महत्वपूर्ण रेलखंड का 'विंडो ट्रेलिंग' निरीक्षण

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    ​उत्कृष्ट ट्रैक संरचना का प्रमाण: 150 किमी/घंटा की गति पर भी 'ग्लास में पानी स्थिर' ​हाजीपुर: 12 दिसंबर 2025 ​पूर्व मध्य रेल (ECR) के महाप्रबंधक (GM), श्री छत्रसाल सिंह, ने शुक्रवार को बख्तियारपुर-राजगीर-तिलैया-कोडरमा-धनबाद रेलखंड का व्यापक 'विंडो ट्रेलिंग' निरीक्षण किया। इस निरीक्षण का उद्देश्य संरक्षा, सुरक्षा और परिचालन दक्षता के विभिन्न पहलुओं का गहन मूल्यांकन करना था। ​ संरक्षा और गुणवत्ता का गहन मुआयना ​निरीक्षण के दौरान, महाप्रबंधक महोदय ने पूरे रेलखंड में स्थित स्टेशनों, पुल-पुलियों, ओएचई (ओवरहेड इक्विपमेंट) प्रणाली और रेलवे ट्रैक के रख-रखाव सहित संरक्षा एवं सुरक्षा के मानदंडों का बारीकी से निरीक्षण किया। ​वापसी यात्रा में, उन्होंने झाझा-किउल-राजेन्द्र पुल-बरौनी रेलखंड का भी विंडो ट्रेलिंग निरीक्षण किया। ​ धनबाद मंडल की उत्कृष्ट ट्रैक इंजीनियरिंग ​निरीक्षण का एक महत्वपूर्ण आकर्षण बंधुआ-कोडरमा-धनबाद रेलखंड पर देखने को मिला। ट्रेन की गति जब 150 किलोमीटर प्रति घंटा तक पहुँची, तब भी "ग्लास में पानी पूर्णतः स्थिर रहा"। ​यह उल्लेखनीय स्थिरता धनबाद मंडल क...

​राम लखन सिंह यादव कॉलेज अनीसाबाद ,पटना में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर सूर्यनारायण राय के निधन पर गहरा शोक !

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 राम लखन सिंह यादव कॉलेज, अनीसाबाद, में अर्थशास्त्र विभाग के  प्रोफेसर सूर्यनारायण राय के आकस्मिक निधन पर आज कॉलेज परिवार में शोक की लहर दौड़ गई। प्रोफेसर राय का कल रात बीमारी के कारण निधन हो गया। ​उनके निधन की दुखद खबर मिलते ही, कॉलेज परिसर में आज एक शोक सभा का आयोजन किया गया। इस दौरान, कॉलेज परिवार ने दिवंगत आत्मा की शांति के लिए  दो मिनट का मौन धारण कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। ​प्रोफेसर राय: एक अपूरणीय क्षति ​कॉलेज के प्राचार्य प्रो. सुरेंद्र प्रसाद ने प्रोफेसर सूर्यनारायण राय के निधन को कॉलेज के लिए एक अपूरणीय क्षति बताया। उन्होंने कहा कि उनका योगदान और मार्गदर्शन हमेशा याद रखा जाएगा। प्रो. राम बिनेश्वर सिंह ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि प्रोफेसर राय एक शांतिप्रिय और विद्वान व्यक्ति थे, जिनका सभी सम्मान करते थे। ​डॉ. प्रो. महेंद्र सिंह ने प्रोफेसर राय के व्यक्तित्व को याद करते हुए कहा कि वे बड़े ही मृदुभाषी और अनुशासन प्रिय व्यक्ति थे, जिन्होंने अनगिनत छात्रों को प्रेरित किया। प्रो प्रसिद्ध कुमार ने याद करते हुए कहा कि वे गम्भीर व विद्वान व्यक्ति थे। ​शोक...

कला और संस्कृति: नई शिक्षा नीति का अधूरा अध्याय !

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    ​भारत की नई शिक्षा नीति (NEP), 2020 को भारतीय ज्ञान परंपरा और दर्शन, विशेष रूप से सत्यम् शिवम् सुंदरम् के सिद्धांतों पर आधारित एक दूरदर्शी कदम माना गया है। 'सत्यम्' (ज्ञान और तथ्य), 'शिवम्' (नैतिकता और कल्याण), और 'सुंदरम्' (सौंदर्यशास्त्र और कला) के इस त्रय ने सदैव भारतीय चिंतन को निर्देशित किया है। ​NEP का मुख्य उद्देश्य भी शिक्षा को समग्र, बहु-विषयक  और भारतीय जड़ों से जुड़ा बनाना है। यह नीति निश्चित रूप से शिक्षा के मूलभूत सुधारों, जैसे कि लचीली पाठ्यक्रम संरचना और महत्वपूर्ण सोच के विकास की दिशा में एक बड़ा अवसर है। इस नीति का सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण अवसर यह था कि क्षेत्रीय और लोक कलाओं को शिक्षा की मुख्यधारा के पाठ्यक्रम का अभिन्न अंग बनाया जाए। ​गौरव और अपनापन विकसित करना: विद्यार्थियों में अपने समाज, अपनी संस्कृति और परंपरा के प्रति गर्व और अपनापन की भावना विकसित करना। ​समग्र विकास: कला को केवल एक अतिरिक्त गतिविधि के बजाय, रचनात्मकता, समस्या-समाधान और भावनात्मक बुद्धिमत्ता के विकास के लिए एक आवश्यक विषय के रूप में स्थापित करना। ​दुर्भाग्य से, ज़...

आम आदमी की व्यथा ! ( कविता ) -प्रो प्रसिद्ध कुमार।

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    ​मैं आम आदमी, मेरी विसात क्या है? न दो जून की रोटी, न न्याय, न सम्मान, अधिकार की बात तो बस दूर की कथा है। हाँ, जब खोज हो अपराधी की, तो नाम मेरा ही मिल जाता, जेल की दीवारों का शोभा बनकर, जीवन कट जाता। ​खेतों-खलिहानों में, सड़कों के किनारे, फुटपाथों पर, झोपड़ियों में, या खुले आसमान के नीचे, यही मेरा बसेरा, यही मेरी पहचान, यही मेरी हस्ती, यही है मेरी औकात! गृहस्थी के बोझ तले, कमर मेरी झुक गई, देह पर न मांस, बचा बस कंकालों का साया। ​नग्न बदन, या मैले-कुचैले, फटे-पुराने कपड़े, कोई पलट कर नहीं देखता मेरी ओर, अगर कोई देखे भी, तो घृणा, क्षोभ, तिरस्कार से, न कोई आकर्षण, न किसी की चाहत, बेवजह सहता हूँ डाँट, रौब और अपमान। ​सहज ही कोई ठग कर चला जाता, कभी खाता हूँ, कभी भूखे पेट सो जाता, ऊपरवाले का नाम लेकर, हृदय फिर भी मगन रहता, इसे विधाता का भाग्य समझकर, सब कुछ सह लेता हूँ। ​मगर मेरी पूछ एक दिन होती है, जब वोट का दिन आता है, बांछें खिल जाती हैं। नेता जब अपने धर्म, जाति, कुल-वंश से मिल जाते हैं, फिर गुण-अवगुण की क्या परवाह? दुर्दांत, अपराधी, चोर, झिलक्ट, कोई भी चलेगा, उसके सर पर ताज हो...

भारतीय खाद्य प्रणाली की चुनौतियाँ ! ​बढ़ती कीमतें और पोषण का संकट ! -प्रो प्रसिद्ध कुमार।

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    महंगाई सीधे भारतीय रसोई को प्रभावित करती है। दाल, खाद्य तेल, फल, सब्ज़ियाँ और दूध जैसी आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में लगातार वृद्धि ने संतुलित भोजन के बजट को बढ़ा दिया है। ​आय पर प्रभाव: एक औसत भारतीय परिवार की मासिक आय का बड़ा हिस्सा केवल कैलोरी-आधारित भोजन पूरा करने में खर्च हो रहा है, जबकि पौष्टिक भोजन उनकी पहुँच से दूर होता जा रहा है। ​कुपोषण के आयाम: भोजन केवल बाज़ार व्यवस्था का विषय नहीं है, बल्कि इसे एक सामाजिक सुरक्षा अधिकार के रूप में देखा जाना चाहिए। यह खाद्य सुरक्षा और कुपोषण की समस्या को और गहरा करता है। ​कृषि और जलवायु अनिश्चितता  ​प्राकृतिक आपदाएं: असमय बारिश, सूखा, बाढ़ और तापमान में बदलाव जैसी मौसमी घटनाएँ फसल उत्पादकता को प्रभावित करती हैं, जिससे बाज़ार में कीमतें बढ़ती हैं। ​बाज़ार अस्थिरता: यह अस्थिरता खाद्य सुरक्षा को प्रभावित करती है और गरीबों को पौष्टिक भोजन से और भी दूर ले जाती है। ​पोषण प्राथमिकताओं में कमी और आहार का असंतुलन   भारतीय खाद्य प्रणाली की संरचनात्मक कमियों को उजागर करता है: ​केंद्रित वितरण: वर्तमान प्रणाली मुख्य रूप से...

क्रांतिकारी शहीद बिरद मांझी: वह मशाल जो अँधेरे में जली❤️‍🔥

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   ​🔥अन्याय के विरुद्ध उठी पहली चिंगारी (1970-80 दशक) ​प्यारे दोस्तों, यह कहानी सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि एक आग की है—वह आग जो 1970-80 के दशक में, आज़ादी के 20 साल बाद भी, ज़मींदारी और सामंतशाही की काली छाया में जी रहे दलितों और पिछड़ों के हृदय में भड़की थी। कहने को तो देश में बाबा साहब डॉ. भीम राव आंबेडकर का संविधान लागू हो चुका था, लेकिन उसकी रौशनी गाँवों की संकरी गलियों और दलितों के डेरों तक नहीं पहुँची थी। ​वह समय ऐसा था जब निचले तबके के लोग सवर्ण जाति और ज़मींदारों के सामने अपने घर-आँगन में भी खटिया या कुर्सी पर बैठने का साहस नहीं कर सकते थे। शादी-विवाह या श्राद्ध में उन्हें पंगत में सड़क-गलियों के किनारे, या गोशालाओं के पास ज़मीन पर बिठाकर खाना खिलाया जाता था। वे उनके सामने चप्पल या जूता पहनने की हिमाकत नहीं कर सकते थे। खेत-खलिहान में कम मज़दूरी पर भी काम करने से इनकार करना मौत को दावत देने जैसा था, चाहे वे बीमार हों, कमज़ोर हों, या उनके घर में कोई ज़रूरी काम हो। आत्मसम्मान शब्द केवल किताबों तक सीमित था, और इसी अपमान की आग में एक नौजवान तपने लगा, जिसका नाम था बिरद...

उच्च शिक्षा में सामाजिक न्याय: भागीदारी और परिवर्तन !-प्रो प्रसिद्ध कुमार।

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    ​भारत के उच्च शिक्षण संस्थानों (जैसे IIT, IIM, NEET, मेडिकल साइंसेज) में दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों की बढ़ती भागीदारी सामाजिक न्याय की दिशा में एक ऐतिहासिक बदलाव है। 1990 से पहले की तुलना में, अब इन वर्गों की हिस्सेदारी 60 फ़ीसदी से ज्यादा हो गई है। ​प्रमुख कारण और ऐतिहासिक आधार ​इस परिवर्तन के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं: ​मंडल कमीशन का प्रभाव: ​1990 के दशक में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए 27% आरक्षण लागू होने से उच्च शिक्षा के द्वार OBC समुदाय के लिए व्यापक रूप से खुले। ​संविधान की शक्ति (डॉ. अम्बेडकर): ​संविधान द्वारा सुनिश्चित समानता और आरक्षण के प्रावधानों ने अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के उत्थान को मजबूत आधार दिया। ​जागरूकता और सामाजिक आंदोलन: ​लालू प्रसाद यादव जैसे नेताओं के नारों (जैसे "पढ़ना-लिखना सीखो...") ने हाशिये पर पड़े समुदायों में शिक्षा के प्रति आत्मविश्वास और चेतना को बढ़ाया। ​तथ्यात्मक डेटा: भागीदारी में वृद्धि ​अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वेक्षण (AISHE) के डेटा के अनुसार, उच्च शिक्षा में SC/ST/OBC छात्रों की हिस्सेदारी में महत्वप...

मन की सुलझन: बाहरी व्यवस्था नहीं, भीतरी अभिव्यक्ति !

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    ​अक्सर यह तर्क दिया जाता है कि जीवन की उलझनों और मन की अशांति को दूर करने के लिए व्यक्ति को बाहरी बदलावों की आवश्यकता होती है। यह एक स्वाभाविक प्रवृत्ति है—जब हम तनाव में होते हैं, तो हम अक्सर नई नौकरी, नए रिश्ते, एक नई जगह या कोई बाहरी शौक अपनाने का विचार करते हैं। समाज और मीडिया भी अक्सर 'मेकओवर' या जीवनशैली में तुरंत बदलाव को समाधान के रूप में प्रस्तुत करते हैं। यह दृष्टिकोण अधूरा है। वास्तविकता यह है कि: ​1. बाहरी बदलाव की सीमाएँ ​बाहरी व्यवस्थाएँ, जैसे कि भौतिक सुख-सुविधाएँ, आकर्षक करियर या यहाँ तक कि सामाजिक अनुमोदन एक अस्थायी राहत तो प्रदान कर सकते हैं, लेकिन ये भीतर की मौलिक समस्या का समाधान नहीं करते। ​अस्थायी प्रभाव: यदि मन के भीतर मूलभूत स्पष्टता  और स्थिरता नहीं है, तो कोई भी बाहरी बदलाव लंबे समय तक प्रभावी नहीं रह सकता। जैसे, एक व्यक्ति जगह बदलता है, लेकिन उसके मन के विचार और आदतें उसके साथ ही नई जगह पर भी पहुँच जाती हैं, और कुछ ही समय में, वह फिर से उन्हीं पुरानी उलझनों से घिर जाता है। यह एक मनोवैज्ञानिक सत्य है कि आप खुद से भाग नहीं सकते। ​2. भीतरी अभिव...

भारत में भेदभाव और जातिवाद का दंश: - प्रो प्रसिद्ध कुमार।

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   भारत, जो विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का दावा करता है, यहाँ पर उच्च और निम्न वर्ग, विशेषकर जाति और आर्थिक स्थिति के आधार पर होने वाला व्यवहार, आज भी उसके संवैधानिक आदर्शों के विपरीत एक कड़वी सच्चाई है। ​1. जातिवाद की गहरी जड़ें ​सदियों पुरानी जाति व्यवस्था भारत में सामाजिक असमानता का सबसे बड़ा कारण रही है। हालांकि संविधान ने जाति-आधारित भेदभाव को समाप्त कर दिया है और अस्पृश्यता को एक दंडनीय अपराध घोषित किया है, फिर भी व्यवहार में यह भेदभाव आज भी जीवित है: ​सामाजिक बहिष्कार: आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में, और कई बार शहरी क्षेत्रों में भी, दलितों (पिछड़े वर्ग) को सार्वजनिक कुओं, मंदिरों और सामुदायिक भोजों से अलग रखा जाता है। यह उनके मानवाधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है। ​व्यवसायिक/शैक्षणिक भेदभाव: भले ही आरक्षित सीटें उपलब्ध हों, निम्न जाति पृष्ठभूमि के लोगों को अक्सर शिक्षण संस्थानों और उच्च-पदस्थ नौकरियों में सामाजिक पूर्वाग्रह का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी प्रतिभा दब जाती है। ​2. आर्थिक विषमता और वर्ग भेद ​मंडेला का कथन केवल जाति पर ही नहीं, बल्कि आर्थिक वर्ग पर भी लागू...

पटना पुस्तक मेला 2025: ज्ञान, स्वास्थ्य और संस्कृति का अद्भुत संगम-प्रो प्रसिद्ध कुमार का रिपोर्ताज ।

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   ​दिनांक: दिसंबर 2025 (चालू) स्थान:  गांधी मैदान ,पटना, बिहार ​पटना का ऐतिहासिक पुस्तक मेला इस वर्ष साहित्य, स्वास्थ्य और संस्कृति के एक अनूठे संगम के रूप में अपनी अमिट छाप छोड़ रहा है। मेला प्रांगण में प्रवेश करते ही सबसे पहली नज़र वरिष्ठ कथाकार अवधेश प्रीत को समर्पित भव्य तोरण द्वार पर पड़ती है। मुख्य द्वार पर प्रीत की बड़ी तस्वीरें हर आगंतुक को बरबस अपनी ओर खींच लेती हैं, जो खगौल के चर्चित नाट्य संस्थान 'सूत्रधार' से उनके पुराने जुड़ाव की याद दिलाती हैं। ​ समर्पण और थीम: 'वेलनेस - ए वे ऑफ लाइफ' ​इस वर्ष का पटना पुस्तक मेला विशेष रूप से वरिष्ठ लेखक अवधेश प्रीत को समर्पित है। पूरे मेले का थीम "वेलनेस - ए वे ऑफ लाइफ" रखा गया है, जिसने पुस्तकों के साथ-साथ स्वास्थ्य और जीवनशैली पर भी ध्यान केंद्रित किया है। थीम के अनुरूप, मेले में राष्ट्रीय स्वास्थ्य संवाद जैसे महत्वपूर्ण आयोजन शामिल किए गए हैं, जहाँ डॉक्टर विभिन्न बीमारियों—हृदय रोग, त्वचा संबंधी समस्याएँ, पोषण—पर ज्ञानवर्धक चर्चा कर रहे हैं और लाइव ज़ुम्बा प्रशिक्षण भी आयोजित किया जा रहा है। ​ मुख्य आकर्षण: ...

नुक्कड़ नाटक समीक्षा: "भारत का इतिहास"-प्रो प्रसिद्ध कुमार।

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    ​यह नुक्कड़ नाटक "भारत का इतिहास," जिसका मंचन पटना पुस्तक मेला 2025 के अवसर पर गांधी मैदान में हुआ, एक अत्यंत सशक्त, मार्मिक, और शिक्षाप्रद प्रस्तुति थी। ​1. नाटक की विषय वस्तु और विस्तार ​नाटक ने भारत में ब्रिटिश शासन की स्थापना से लेकर स्वतंत्रता प्राप्ति तक के विस्तृत और पीड़ादायक इतिहास को सफलतापूर्वक समेटा। प्रस्तुति में इन मुख्य बिंदुओं पर ज़ोर दिया गया: ​दोहन और शोषण: किसानों और मजदूरों पर हुए असहनीय अत्याचार, साथ ही अकाल जैसी त्रासदियों में करोड़ों लोगों की मौत को कलाकारों ने प्रभावी ढंग से दर्शाया। ​राष्ट्रीय चेतना और आंदोलन: नाटक ने भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement) जैसे महत्वपूर्ण संघर्षों को भी मंचित किया, जिससे दर्शकों में राष्ट्रीय चेतना और प्रतिरोध की भावना जागी होगी। ​विभाजन का दंश: प्रस्तुति का सबसे मार्मिक और विचारोत्तेजक हिस्सा आज़ादी से ठीक पहले देश के विभाजन को दर्शाना रहा। इस विभाजन ने किस तरह दो टुकड़ों में बंटे भारत का दंश दिया, उसे भावनात्मक गहराई के साथ प्रस्तुत किया गया। ​2. प्रस्तुति की मुख्य विशेषताएँ और अभिनय ​विरोधाभासी चित्रण: बालिकाओ...

मुखौटे और मन: यह कैसा काल है? ( कविता )-प्रो प्रसिद्ध कुमार।

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      ​सब कुछ सहता जो मौन है, देव सदृश्य लगता, पर कौन है? होंठों पे कुटिल मुस्कान लिए, यह कैसा व्यक्तित्व अद्वितीय है? ​तन पर सफेद वस्त्र सुहाए, पर काजल की कोठरी कलेजे बसाए। जिह्वा पर असत्य का वास केवल, यह कैसी मायावी चाल है? ​नहीं बूझ पाते इसकी पहेली, ये कैसा जटिल त्रिकोण है? कल तक जो भागा छोड़ अपनों को, जिम्मेवारियों से मुँह मोड़कर। कामचोर, कर्महीन वो था जो, आज लोग भागे पीछे, सबको छोड़कर। ​ दीवारें और घाव ​किसका क्या भला हुआ, बताओ? हाँ, नफरत की दीवारें ज़रूर खड़ी हुईं। पूजा की, इबादत की, राम की, रहीम की, और साथ-साथ रहने की आदत की। ​परिवर्तन के नाम पर नाम बदले, विकास के नाम पर किसान, जवान लहूलुहान हुए। भ्रष्टाचार मिटा नहीं, पर भ्रष्टाचारी जरूर दूर भाग गए। ​पूँजीपतियों के कर्ज माफ होते रहे, गरीबों के सर से झोपड़ी उजड़ती रही। न किसानों की आय हुई दूनी, न भूमिहीनों को मिली ज़मीं की पर्ची। ​स्वप्न और यथार्थ ​बढ़ती महंगाई की मार, घटते रुपये के मूल्य का भार। विदेशों से वीज़ा हुआ महंगा, बढ़ती बेरोजगारी, भुखमरी, कुपोषण। ​क्या यही है रामराज्य की कल्पना? क्या यह वही नया सवेरा है, ज...

विदेशी ज़मीन पर घटता मान: क्या यही है 'विश्वगुरु' की विदेश नीति?

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    ​हाल के घटनाक्रम एक ऐसे विरोधाभास की ओर इशारा करते हैं जो भारत की वैश्विक साख और घरेलू यथार्थ के बीच की बढ़ती खाई को दर्शाता है। एक ओर जहाँ भारतीय नेतृत्व अक्सर 'विश्वगुरु' बनने और विश्व में भारत का 'डंका बजने' का दावा करता है, वहीं कनाडा, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया जैसे प्रमुख देशों में भारतीय छात्रों के लिए वीजा नियमों का लगातार सख्त होना और अमेरिका से भारतीय प्रवासियों को हथकड़ियों में जकड़कर वापस भेजे जाने की खबरें, इस दावे पर गंभीर सवाल खड़े करती  है । मित्र देशों की सख़्ती: "डंका" या "झटका"?  अमेरिका की देखा-देखी कनाडा ने छात्र वीजा पर सख़्ती की है, जहाँ वीजा रद्द होने की दर 32\% से बढ़कर 75\% तक पहुँच गई है और नए प्रवेश में 40\% की गिरावट आई है। इसी तरह, ब्रिटेन ने 2025 से वीजा नवीनीकरण में परिवार को साथ लाने पर प्रतिबंध लगा दिया है, जिससे कई भारतीयों को ब्रिटेन छोड़ने पर मज़बूर होना पड़ा है। ऑस्ट्रेलिया ने भी नई प्रवासन नीति लागू कर छात्र वीजा को कठिन बना दिया है। ​यह सख़्ती सिर्फ़ एक प्रशासनिक बदलाव नहीं है; यह एक गहन कूटनीतिक असफलता का सूचक है। ​...

गलतियाँ: शर्म या सीखने का अवसर? एक मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण !

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   ​हम सब एक ऐसे सामाजिक ताने-बाने में पले-बढ़े हैं जहाँ गलती को अक्सर एक नकारात्मक घटना के रूप में देखा जाता है। एक बच्चे द्वारा कुछ गिरा देना हो या किसी कर्मचारी द्वारा कोई मामूली भूल, तुरंत "ताना" या फटकार मिलने की संभावना अधिक होती है। ​मनोविज्ञान की दृष्टि से, यह दृष्टिकोण सीखने और विकास की प्रक्रिया को गंभीर रूप से बाधित करता है। ​दंड और शर्म का मनोवैज्ञानिक प्रभाव ​जब गलतियों को दंड या शर्म से जोड़ा जाता है, तो यह व्यक्ति के भीतर 'गलती करने का डर' पैदा करता है। ​रक्षात्मक व्यवहार - डर के कारण लोग अपनी गलतियों को छिपाना शुरू कर देते हैं। इससे वे समस्या की जड़ को पहचानने और उसे ठीक करने का अवसर खो देते हैं। ​आत्म-सम्मान पर चोट -लगातार शर्मिंदा महसूस करने से व्यक्ति की आत्म-क्षमता और आत्मविश्वास कम होता है। वे खुद को "अयोग्य" या "नाकाम" समझने लगते हैं। ​विकास अवरुद्ध - सीखने की प्रक्रिया रुक जाती है। जब ध्यान सुधारने पर नहीं, बल्कि सजा से बचने पर होता है, तो नई चुनौतियों को लेने की हिम्मत नहीं होती।  "अगर उस गलती को समझने का अवसर माना जाए,...

जल ही जीवन है: शुद्धता, प्रदूषण और स्वास्थ्य !

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    ​शुद्ध जल वह है जिसका pH मान 7.0 के करीब हो, जिसका घनत्व लगभग 1000 \, kg/m^3 हो, और जो रोगजनक जीवाणुओं से मुक्त हो। पीने योग्य जल का pH 6.5 से 8.5 के बीच होना चाहिए। ​गंगोत्री का जल शुरुआती बिंदु पर अत्यधिक शुद्ध माना जाता है क्योंकि इसमें ऑक्सीजन सोखने और बैक्टीरिया को नष्ट करने की विशेष क्षमता होती है। ​जल को "जीवन" इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह मानव शरीर का लगभग 60% से 70% हिस्सा बनाता है। ​शरीर में जल के मुख्य कार्य: ​तापमान नियंत्रण: पसीने के माध्यम से शरीर का तापमान नियंत्रित करना। ​परिवहन: पोषक तत्वों और ऑक्सीजन को रक्त के माध्यम से शरीर में पहुँचाना। ​उत्सर्जन: मूत्र और पसीने द्वारा शरीर से विषाक्त (Toxins) पदार्थों को बाहर निकालना। ​भारत में, खासकर बिहार राज्य में, भूजल प्रदूषण एक बड़ी समस्या है। बिहार के 38 में से 31 जिले आर्सेनिक, फ्लोराइड और लौह तत्वों से प्रभावित हैं। ​प्रदूषण के कारण: औद्योगिक अपशिष्ट, अनुपचारित सीवेज, और प्राकृतिक रूप से भूजल में खनिजों की अधिकता।

संचार साथी ऐप: सुविधा या निजता का हनन?

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    ​भारत सरकार ने ऑनलाइन धोखाधड़ी (फ़र्जीवाड़ा) को रोकने के उद्देश्य से 'संचार साथी' नामक एक नई पहल लाने की घोषणा की है। सरकार का दावा है कि यह कदम जनहित में है, जिसका प्राथमिक लक्ष्य नागरिकों को डिजिटल फ्रॉड से बचाना है। ​हालाँकि, इस पहल ने तुरंत ही एक गंभीर बहस को जन्म दे दिया है, खासकर 'निजता के हनन'  के मुद्दे को लेकर। ​संचार साथी ऐप की अवधारणा, जो ऑनलाइन धोखाधड़ी रोकने पर केंद्रित है, स्वागत योग्य है। डिजिटल युग में, जहाँ साइबर अपराध तेज़ी से बढ़ रहे हैं, सरकार की तरफ से एक सक्रिय कदम उठाना ज़रूरी है। ​परंतु, इसकी आलोचना के मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं: ​निजता का हनन: किसी भी सरकारी ऐप या प्लेटफॉर्म के लिए यह सबसे बड़ी चिंता होती है। यह ऐप किस तरह के डेटा को एक्सेस या ट्रैक करेगा? डेटा सुरक्षा (Data Security) और उसके भंडारण (Storage) की नीति क्या है? नागरिकों का डर जायज है कि यह ऐप निगरानी (Surveillance) का एक और माध्यम बन सकता है। ​सरकारी आश्वासन की सीमा: विपक्ष द्वारा 'निजता के हनन' पर आपत्ति उठाने पर, मंत्री ने यह कहकर बचाव किया कि "आप चाहें, तो ...

शिक्षा का सिंदूर: मंडप से परीक्षा हॉल तक एक नवविवाहिता का प्रण!-प्रो प्रसिद्ध कुमार।

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     @Rlsy college, Anisabad​ कर्तव्य की वेदी पर नवजीवन का संकल्प ! ​दिनांक 1 दिसंबर, वह दिन जब विवाह की पवित्र अग्नि शांत होती है और जीवन के नए अध्याय का श्रीगणेश होता है। परंतु राम लखन सिंह यादव कॉलेज, अनीसाबाद, पटना के प्रांगण में, एक अद्भुत दृश्य ने सबके हृदय को छू लिया। यह किसी कथा का अंश नहीं, बल्कि शिक्षा के प्रति अटूट समर्पण की साक्षात झाँकी थी। ​सुबह के 9.30 बजे। स्नातक सेमेस्टर-5 की परीक्षा के संचालन हेतु, मैंने और अंग्रेजी की प्रोफेसर कुमारी निधि ने हॉल संख्या 1 में प्रवेश किया। वातावरण में परीक्षा की चिरपरिचित गंभीरता छाई हुई थी, किंतु एक कोना ऐसा था जो अपनी आभा से पूरे कक्ष को एक क्षण के लिए अचंभित कर गया। ​ लाल जोड़ा और ज्ञान की ज्योत ​सामने की पंक्ति में एक छात्रा बैठी थी—वह मात्र परीक्षार्थी नहीं, साक्षात् नव-वधू का प्रतिरूप थी। उसकी मांग में सिंदूर की लालिमा, मानो सौभाग्य का सूर्य उदय हुआ हो; गले में पड़ी पीली पट्टी (दुपट्टा), नव-परिणय का पावन बंधन दर्शा रही थी। हाथों में कंगन और चूड़ियाँ, विवाह की झनकार अभी भी समेटे हुए थीं। वह 'लाल जोड़े' में ऐसे सुशोभि...

कड़ाके की ठंड में बुलडोजर चलाना घोर निर्दयता !

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    क्या सरकार का धर्म सिर्फ अतिक्रमण हटाना है, बेघर को आश्रय देना नहीं? ​यह कैसा न्याय है, जो गरीबों को कड़ाके की शीतलहर में बेघर कर खुले आसमान के नीचे छोड़ देता है? यह सवाल आज बिहार सहित देश के कई हिस्सों में उस व्यवस्था से पूछा जा रहा है, जिसने न्यायालय के आदेश का पालन करते हुए अतिक्रमण पर बुलडोजर तो चलाया, लेकिन उन बेघर हुए परिवारों के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की। यह कार्रवाई न केवल मानवीय संवेदनशीलता के विरुद्ध है, बल्कि एक कल्याणकारी लोकतांत्रिक राष्ट्र के मूल सिद्धांतों पर भी सीधा प्रहार है। ​ सरकारी वादे बनाम जमीनी हकीकत ​प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने 2022 तक 'सभी को आवास' देने का बड़ा लक्ष्य रखा था। आज 2025 आ चुका है, लेकिन गरीबों के पास पक्के घर तो दूर, सिर छुपाने का अस्थायी ठिकाना भी छीना जा रहा है। यह घोषणा और जमीनी हकीकत के बीच की विशाल खाई को दर्शाता है। ​यदि गरीब भूमिहीन लोगों ने किसी तरह अपने लिए आशियाना बनाने की कोशिश की, तो उन्हें 'निर्दयी' सरकार और 'तुगलकी फरमान' का शिकार होना पड़ा। क्या सरकार की यह जिम्मेदारी ...

विचारों की सामूहिक शक्ति: विभिन्नताओं में एकता !

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    ​समाज में हर व्यक्ति की अपनी एक अलग सोच है, जो किसी भी समस्या का अलग-अलग निदान ढूंढ सकती है। यह व्यक्तिगत भिन्नता हमारी मानव चेतना की सबसे बड़ी शक्ति है। यदि हम एक ही साँचे में ढले होते, तो शायद हम इतनी समस्याओं का समाधान कभी नहीं खोज पाते। हर मस्तिष्क एक नए दृष्टिकोण, एक नए विचार को जन्म देता है। ​लेकिन, इस दुनिया को केवल अलग-अलग विचारों की आवश्यकता नहीं है; इसे विचारों की सामूहिक शक्ति  की सख्त जरूरत है। क्योंकि जब तक हम अपने व्यक्तिगत समाधानों को एक साझा मंच पर नहीं लाते, तब तक हम किसी भी बड़ी चुनौती का स्थायी और व्यापक हल नहीं खोज सकते। ​अब प्रश्न उठता है कि जब विचार ही अलग हों, और हम विभिन्नताओं से भरी इस दुनिया में जी रहे हों, तो उनकी सामूहिकता कैसे हो सकती है? ​इसका उत्तर हमारे विचारों को 'टकराव' की बजाय 'सहयोग' की दिशा में मोड़ने में निहित है: ​1. सम्मान और स्वीकृति: हमें सबसे पहले यह स्वीकार करना होगा कि किसी भी समस्या के कई वैध दृष्टिकोण हो सकते हैं। अपने से भिन्न विचार का सम्मान करना और उसे सुनना ही सामूहिकता की पहली सीढ़ी है। ​2. समन्वय : विभिन्न विचारों...

भाषा: धरोहर, संकट और साहित्य का स्पंदन !

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    ​प्रकृति और मानव का संबंध भाषा के माध्यम से गहराता आया है। एक ओर जहाँ आधुनिक तकनीक कृत्रिम मेधा (AI) के सहारे जानवरों की भाषाओं को समझने का प्रयास कर रही है, वहीं दूसरी ओर, विश्व भर में पारंपरिक भाषाएँ—मानव सभ्यता की सदियों पुरानी धरोहर—विलुप्ति के गंभीर संकट का सामना कर रही हैं। यह एक विडंबना है कि जिस समय हम भाषा की सीमाओं को तोड़कर पशु-पक्षियों के अत्यंत संवेदनशील संकेतों को जानने की ओर बढ़ रहे हैं, उसी समय हमारी अपनी सांस्कृतिक अभिव्यक्ति के माध्यम सिमटते जा रहे हैं। राजस्थानी भाषा में मौसम के लिए प्रयुक्त शब्द इसकी गहराई को दर्शाते हैं। चैत्र, वैशाख, और जेठ माह की गरजने वाली बारिश को वहाँ 'चड़पड़वाट', 'हलौतियाँ', या 'जेठ माह की बारिश' जैसे विशिष्ट नामों से पुकारा जाता है। वहीं, आषाढ़ से फाल्गुन तक की बारिश के अलग-अलग संबोधनों में सरवात (आषाढ़), लेर (सावन), झड़ी (भाद्रपद), मोती (कार्तिक), कटक (कार्तिक), फाँरसरौ (मार्गशीर्ष), पावट (पोष), मावट (माघ), और फटकार (फाल्गुन की बारिश) जैसे नाम शामिल हैं।यहाँ ऊँट के लिए ही 270 से अधिक पर्यायवाची शब्द हैं, जो राजस्...