"शहादत पर मौन: राजनीतिक पाखंड और सामाजिक न्याय की विचलित डगर"!😢-प्रो प्रसिद्ध कुमार।
"दुलारचंद यादव की हत्या: क्या वोट के बदले नेताओं ने गिरवी रख दी है ज़मीर?" पार्टी की 'गुलामी की ज़ंजीरें' इतनी मज़बूत क्यों हो गई नित्यानंद राय व रामकृपाल यादव जी ! बीते दिनों बिहार में हुई दुलारचंद यादव की निर्मम हत्या और उसके तुरंत बाद आरा में कुशवाहा परिवार के बाप-बेटे की दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या, बिहार की ध्वस्त कानून-व्यवस्था की कहानी बयां करती है। लेकिन, इससे भी अधिक चिंताजनक है इस गंभीर घटना पर प्रमुख राजनीतिक खेमे के भीतर पसरा स्तब्धकारी सन्नाटा, विशेष रूप से उन नेताओं का जो स्वयं को यादव या बहुजन समाज का प्रतिनिधि बताते हैं। भाजपा के भीतर मौजूद यादव नेताओं के मुख से इस निर्मम हत्याकांड पर एक 'उफ़' तक क्यों नहीं निकला? क्या सत्ता की अभिलाषा और पार्टी की 'गुलामी की ज़ंजीरें' इतनी मज़बूत हो गई हैं कि वे सार्वजनिक रूप से शोक व्यक्त करने और अपने समाज के लिए न्याय की आवाज़ उठाने का नैतिक साहस भी खो चुके हैं? यह मौन न केवल एक विशेष समुदाय के प्रति बल्कि पूरे बहुजन, पिछड़ा और अल्पसंख्यक समाज के प्रति घोर उपेक्षा और राजनीतिक पाखंड को दर्शाता है। ये वह...