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Showing posts from October, 2025

"शहादत पर मौन: राजनीतिक पाखंड और सामाजिक न्याय की विचलित डगर"!😢-प्रो प्रसिद्ध कुमार।

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   "दुलारचंद यादव की हत्या: क्या वोट के बदले नेताओं ने गिरवी रख दी है ज़मीर?" पार्टी की 'गुलामी की ज़ंजीरें' इतनी मज़बूत  क्यों हो गई  नित्यानंद राय व रामकृपाल यादव जी ! ​बीते दिनों बिहार में हुई दुलारचंद यादव की निर्मम हत्या और उसके तुरंत बाद आरा में कुशवाहा परिवार के बाप-बेटे की दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या, बिहार की ध्वस्त कानून-व्यवस्था की कहानी बयां करती है। लेकिन, इससे भी अधिक चिंताजनक है इस गंभीर घटना पर प्रमुख राजनीतिक खेमे के भीतर पसरा स्तब्धकारी सन्नाटा, विशेष रूप से उन नेताओं का जो स्वयं को यादव या बहुजन समाज का प्रतिनिधि बताते हैं।  भाजपा के भीतर मौजूद यादव नेताओं के मुख से इस निर्मम हत्याकांड पर एक 'उफ़' तक क्यों नहीं निकला? क्या सत्ता की अभिलाषा और पार्टी की 'गुलामी की ज़ंजीरें' इतनी मज़बूत हो गई हैं कि वे सार्वजनिक रूप से शोक व्यक्त करने और अपने समाज के लिए न्याय की आवाज़ उठाने का नैतिक साहस भी खो चुके हैं? यह मौन न केवल एक विशेष समुदाय के प्रति बल्कि पूरे बहुजन, पिछड़ा और अल्पसंख्यक समाज के प्रति घोर उपेक्षा और राजनीतिक पाखंड को दर्शाता है। ये वह...

अन्याय के विरुद्ध 'सेनापति' की तरह डटे: कॉम गोपाल रविदास की संघर्ष गाथा !-प्रो प्रसिद्ध कुमार।

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    (फरीदपुर में नीरज कुशवाहा मुखिया हत्याकांड में घटनास्थल पर गोपाल रविदास प्रतिरोध करते हुए) ​फुलवारी विधायक का रिपोर्ट कार्ड: संघर्ष, सादगी और जनता के प्रति समर्पण ​फुलवारी के विधायक कॉम गोपाल रविदास का नाम उन जुझारू नेताओं में शुमार है जो केवल चुनावी राजनीति तक सीमित नहीं रहते, बल्कि अन्याय और अत्याचार के खिलाफ सड़कों पर उतरकर सीधे संघर्ष करते हैं। उनका राजनीतिक जीवन सादगी, पारदर्शिता और पीड़ितों के लिए अथक लड़ाई का पर्याय है। ​🔥 जब-जब जनता पर संकट आया, गोपाल रविदास 'सेनापति' बने ​कॉम गोपाल रविदास ने अपने कार्यकाल में कई ऐसे संवेदनशील और ज्वलंत मुद्दों पर मुस्तैदी से लड़ाई लड़ी, जब पीड़ितों को सबसे ज्यादा सहारे की ज़रूरत थी: ​पीएफआई मामले में अल्पसंख्यक समुदाय का बचाव: फुलवारी शरीफ में सैंकड़ों अल्पसंख्यक युवाओं को पीएफआई (PFI) से जुड़े मामलों में फंसाने की कोशिश हुई, तब गोपाल रविदास उनकी ढाल बनकर खड़े रहे और उन्हें न्याय दिलाने के लिए संघर्ष किया। ​दंगों के खिलाफ मुखर आवाज़: गाय के नाम पर दंगे भड़काने की कोशिशों के खिलाफ उन्होंने दृढ़ता से विरोध किया और सामाजिक सौहार्द ब...

राजद के घोषणा पत्र में वित्तरहित शिक्षक-कर्मचारियों के लिए संकल्प: एक विस्तृत विश्लेषण !-प्रो प्रसिद्ध कुमार।

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   ​राष्ट्रीय जनता दल  ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में, विशेष रूप से बिहार विधानसभा चुनावों के दौरान, शिक्षा क्षेत्र और संविदा पर कार्यरत कर्मचारियों के मुद्दों को प्राथमिकता दी है। वित्तरहित शिक्षक (Non-funded teachers) और शिक्षकेतर कर्मचारी (Non-teaching staff), जो लंबे समय से वेतनमान, स्थायीकरण और सामाजिक सुरक्षा से वंचित रहे हैं, उनके लिए राजद के घोषणा पत्र में दो प्रमुख और निर्णायक वादे किए गए थे: ​1. समान काम के लिए समान वेतन (Equal Pay for Equal Work) ​यह घोषणा पत्र का सबसे महत्वपूर्ण वादा है। ​घोषणा: राजद ने स्पष्ट रूप से कहा कि वह सत्ता में आने पर समान काम के लिए समान वेतन के सिद्धांत को लागू करेगी। ​विश्लेषण: इसका सीधा अर्थ यह है कि वित्तरहित इंटर , डिग्री कॉलेजों, मदरसों और अन्य अनुदानित संस्थानों के शिक्षक, जो सरकारी स्कूलों के शिक्षकों के समान शैक्षणिक योग्यता रखते हैं और समान पाठ्यक्रम पढ़ाते हैं, उन्हें सरकारी शिक्षकों के समान ही वेतनमान (Pay Scale) और भत्ते प्राप्त होंगे। ​तथ्यात्मक आधार: यह वादा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 39(d) के तहत निहित "समान काम के लिए...

वीर योद्धा दुलारचंद यादव की शहादत: बहुजन राजनीति के 'यादव' विरोधी विमर्श पर एक तीखा प्रतिरोध !😢-प्रो प्रसिद्ध कुमार

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    सामंती हिंसा और सत्ता संरक्षित अपराधीकरण की वापसी! ​जन सुराज के एक नेता, दुलारचंद यादव की दुखद शहादत ने एक बार फिर बिहार की राजनीति के गहरे और भयावह विरोधाभासों को उजागर कर दिया है। बताया जाता है कि मोकामा में चुनाव प्रचार के दौरान हुई चुनावी हिंसा में दुलारचंद यादव कुर्बान हो गए, कथित तौर पर उन्होंने जन सुराज के प्रत्याशी पीयूष प्रियदर्शी की जान बचाने का प्रयास किया था। यह घटना बनारस में पहलवान बचाउ यादव द्वारा पंडित मदन मोहन मालवीय की जान बचाने के लिए खुद को कुर्बान करने की ऐतिहासिक वीरगाथा की याद दिलाती है, जो दलित-पिछड़ों के उस बलिदान को दर्शाती है जिसे अक्सर भुला दिया जाता है। ​🔥 बहुजन एकता का ढाल और विमर्श की विडम्बना ​दलितों, अल्पसंख्यकों और अति-पिछड़ों के हक की लड़ाई में यादव समुदाय की भूमिका ऐतिहासिक रही है। चाहे वह कर्पूरी ठाकुर को सामंती गालियों का मुखर जवाब देना हो या रणवीर सेना के आतंक के खिलाफ गरीबों के लिए खड़े होना हो, यादवों ने हमेशा सामाजिक न्याय की लड़ाई में अग्रिम पंक्ति में नेतृत्व किया है। जगदेव बाबू की निर्मम हत्या के बाद शेरे बिहार राम लखन सिंह याद...

मोकामा में दुलारचंद यादव की हत्या - सुशासन पर गहरा प्रश्नचिह्न 😔

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   (यह तस्वीर दुलारचंद जी के साथ मैं श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में 27 फरवरी को इसी साल राजद के कार्यक्रम में था ) मैं इस जघन्य हत्या से मर्माहत हूँ।इनके साथ बहुत निजी बातें हुईं थीं और करीब हमलोग 6 घण्टे तक साथ रहे थे। ​मोकामा विधानसभा क्षेत्र के चुनाव प्रचार के दौरान जन सुराज पार्टी के समर्थक, दुलारचंद यादव की गोली मारकर हत्या कर दिया जाना, बिहार के राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य पर एक गहरा और परेशान करने वाला प्रश्नचिह्न लगाता है। यह घटना न केवल एक व्यक्ति की दुखद मौत है, बल्कि उन सभी सिद्धांतों और दावों की विफलता है जिनके आधार पर राज्य में 'सुशासन' की बात की जाती है। ​गरीबों के दूत की हिंसक विदाई  उनकी पहचान – "गरीबों, पीड़ितों, असहायों के दूत" के रूप में – इस क्रूर घटना के दर्द को और बढ़ा देती है। राजनीतिक ध्रुवीकरण और वर्चस्व की इस खूनी लड़ाई में एक ऐसा व्यक्ति शिकार बन गया, जिसने शायद वंचितों और हाशिए पर खड़े लोगों के लिए आवाज़ उठाने का साहस किया था। यह हत्या लोकतंत्र में निर्भय होकर राजनीतिक भागीदारी के अधिकार पर एक सीधा हमला है। ​जनता का रोष और सुशासन की चुनौती ...

21वीं सदी में भी एक दलित आईपीएस अधिकारी को आत्महत्या करने पर मजबूर !-प्रो प्रसिद्ध कुमार।

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    ​हरियाणा कैडर के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी वाई. पूरन कुमार की आत्महत्या की दुखद घटना 21वीं सदी में भी भारतीय समाज और प्रशासन में व्याप्त गहरे जातिगत भेद-भाव और उत्पीड़न की ओर इशारा करती है। यह घटना सिर्फ एक अधिकारी की मौत नहीं है, बल्कि यह उस क्रूर सच्चाई को उजागर करती है, जहाँ उच्च शिक्षा और प्रतिष्ठित पद प्राप्त करने के बाद भी दलित समुदाय के लोग जातिवादी शोषण और मानसिक प्रताड़ना से मुक्त नहीं हो पाते। ​उच्च पद, फिर भी उत्पीड़न क्यों? ​वाई. पूरन कुमार, जो कि एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी (एडीजीपी) थे, ने कथित तौर पर अपने सुसाइड नोट में जाति-आधारित उत्पीड़न के लिए वरिष्ठ पुलिस और आईएएस अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया है। यह बेहद चिंताजनक है कि: ​सत्ता का दुरुपयोग: उच्च प्रशासनिक पदों पर बैठे प्रभावशाली व्यक्तियों द्वारा अपनी शक्ति का दुरुपयोग करके एक सहकर्मी को मानसिक रूप से इतना प्रताड़ित किया गया कि उन्हें आत्महत्या जैसा कदम उठाना पड़ा। ​आरक्षण की सफलता पर प्रश्न: यह घटना उन सभी दावों पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगाती है जो यह मानते हैं कि आरक्षण के माध्यम से उच्च पदों पर पहुँचने के बाद...

कुर्सी का खेल ! -प्रो प्रसिद्ध कुमार।

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    ​नीति कहाँ? अब कुर्सी ही सार है, न निष्ठा दल, बस राज की पुकार है। इसी का नाम अब 'राजनीति' हुआ, आदर्श बेचकर, हर 'टिकटार्थी' जुआ। ​जब नियत ही डगमग, नींव ही है कच्ची, तो अच्छी नीति भला क्या कर सकती सच्ची? सेवा नहीं, शासन की भूख है विकराल, छल, कपट, बल का खेल, हो रहा बेहाल। ​लोकतंत्र पर हावी अब लोकशाही ताना, मर्यादा, शालीनता से जैसे हो बेगाना। भाषणों में अश्लीलता, शब्दों का पतन, निर्लज्ज आरोप, खो गया है चिंतन। ​बाहर मचता शोर, भीतर चाय की प्याली, जनता ठगी-सी देखे, कैसी यह खुशहाली! वोट देते-देते उम्र गुज़री, जीवन फटा हाल, जिसे दिया वोट, वो मालामाल हर साल। ​ज़मीं छोड़ आकाश में उड़े वो महान, ठाठ राजा-महाराजा सा उनका अब सम्मान। सत्ता की चाह में, हर कुकर्म को तैयार, देश की नियति पर, ये कैसा सत्ता-भार!

सुख-दुःख: जीवन के दो पूरक पहलू !

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    ​जीवन का ताना-बाना सुख और दुःख से बुना गया है, और ये दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं। इनके बिना जीवन की पूर्णता की कल्पना करना असंभव है। ​हम अक्सर सोचते हैं कि जीवन में केवल सुख ही होना चाहिए, पर क्या हमने कभी महसूस किया है कि दुःख का अनुभव ही सुख की सच्ची कीमत समझाता है? ​गर्मी के बाद की ठंडक: जरा सोचिए, जब आप तेज चिलचिलाती धूप में काफी देर तक बाहर रहते हैं, तभी किसी ठंडे स्थान पर पहुँचने के बाद आपको उस ठंडक का वास्तविक सुकून महसूस होता है। यह गर्मी का अनुभव ही हमें बताता है कि उसके बाद मिलने वाली ठंडक कितनी राहत देती है। ​अंधेरी रात के बाद की सुबह: इसी तरह, जब हम सघन, अंधेरी और लंबी रात गुजारते हैं, तो सुबह की पहली आहट होते ही हमारा बेचैन मन कितनी तसल्ली और शांति महसूस करता है। रात के अंधेरे का गहरा अनुभव ही हमें सुबह के प्रकाश और नई शुरुआत के महत्व को समझाता है। ​यह प्रकृति का नियम है। अगर सुख है, तो दुःख भी होगा। दुःख की उपस्थिति ही हमें सुख को गहराई से अनुभव करने, उसकी कद्र करने और जीवन के उतार-चढ़ाव को सहजता से स्वीकार करने की शक्ति देती है। ​अतः, जीवन में सुख और दुःख ...

स्वच्छता, प्रकृति और विज्ञान का महासंगम: छठ पूजा !-प्रो प्रसिद्ध कुमार।

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    ​लोक आस्था का महापर्व 'छठ' केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति का वह जीवंत आलेख है, जहाँ स्वच्छता में देवत्व का दर्शन होता है और प्रकृति के प्रति आदिम समर्पण की भावना आधुनिक विज्ञान से हाथ मिलाती है। यह पर्व बिना किसी कर्मकांड, तामझाम या पुरोहित के, स्वयं अनुशासित पूजा का उत्कृष्ट उदाहरण है। ​चार दिनों तक चलने वाला यह पर्व शरीर की शुद्धता के साथ-साथ मन को भी पावन कर देता है। आदि काल से ही ऊर्जा व जीवन के वाहक सूर्य, जीवनदायिनी नदी/सरोवर और कृषि से उत्पन्न अन्न की पूजा-अर्चना होते चली आ रही है। जिससे यह जीवन मिला और चलता है, उसी के प्रति कृतज्ञता और समर्पण व्यक्त किया जाता है। ​पौराणिक महत्व: त्याग, तप और शक्ति की कथा ​छठ पूजा का उल्लेख वेदों से लेकर रामायण और महाभारत काल तक मिलता है, जो इसकी शाश्वत महत्ता को दर्शाता है: ​कर्ण की सूर्य उपासना: महाभारत के महान योद्धा सूर्यपुत्र कर्ण प्रतिदिन कमर तक जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। माना जाता है कि इसी तपस्या और सूर्य की कृपा से वह महान दानवीर और अद्वितीय योद्धा बने। छठ में अर्घ्य देने की यह विधि आज भ...

चुनावी हिंसा: क्या लोकतंत्र में 'बुलेट' का कोई स्थान है?

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   (प्रत्याशी मदन सिंह चंद्रवंशी की तस्वीर )  तरारी में भाकपा माले प्रत्याशी के वाहन पर फायरिंग, सवाल उठाती घटना !😢 ​बिहार के चुनावी माहौल के बीच तरारी विधानसभा क्षेत्र से महागठबंधन समर्थित भाकपा माले प्रत्याशी मदन सिंह चंद्रवंशी के जनसंपर्क अभियान के दौरान उन पर और उनके वाहन पर की गई फायरिंग की घटना न केवल चिंताजनक है, बल्कि भारतीय लोकतंत्र के मूल्यों पर सीधा हमला है। यह घटना दर्शाती है कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विश्वास रखने वाले नेताओं को आज भी 'बुलेट' के बल पर डराने और रोकने की कोशिशें जारी हैं। ​लोकतंत्र की आत्मा पर आघात ​लोकतंत्र का मूल सिद्धांत भयमुक्त और निष्पक्ष चुनाव है, जहाँ हर उम्मीदवार को जनता के बीच जाने और अपने विचारों को रखने का समान अवसर मिले। लेकिन जब किसी प्रत्याशी के वाहन पर जानलेवा हमला किया जाता है, जैसा कि बैसाडीह गांव में हुआ, तो यह सीधे तौर पर चुनावी प्रक्रिया की शुचिता को भंग करता है। यह घटना सिर्फ मदन सिंह चंद्रवंशी पर हमला नहीं है, बल्कि उन 'अंतिम पायदान' के नेताओं को चुप कराने की एक घिनौनी साजिश है, जो बदलाव की उम्मीद लेकर जनता के बीच आए ...

​मिथिला के सांस्कृतिक प्रतीक: उत्पादन, उपभोग और असमानता !

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    पाग , पान, मखाना व मछली उत्पादक हाशिये पर ! ​मिथिलांचल की पहचान उसके समृद्ध सांस्कृतिक प्रतीकों जैसे पाग (पगड़ी), पान (सुपारी), मखाना (फॉक्स नट), और माछ (मछली) से होती है। इन चारों उत्पादों के निर्माण और उत्पादन की प्रक्रिया में मुख्य रूप से समाज के हाशिए पर खड़ी और कमजोर जातियां पीढ़ी दर पीढ़ी अपने श्रम और विशेषज्ञता का योगदान दे रही हैं। यह श्रम मिथिला की सांस्कृतिक और आर्थिक रीढ़ है। ​श्रम और लाभ का विरोधाभास ​उत्पादन में शामिल सामाजिक समूह और उपभोग, ब्रांडिंग, व्यापार और संस्थागत प्रबंधन में शामिल समूहों के बीच के विरोधाभास को निम्नलिखित बिंदुओं में देखा जा सकता है: ​1. उत्पादन और उत्पादक ​मखाना: इसके कठिन जलीय उत्पादन और प्रसंस्करण में मुख्य रूप से अति पिछड़ी जातियों (जैसे मल्लाह या नोनिया) के लोग शामिल होते हैं, जो दलदली और जोखिम भरे वातावरण में काम करते हैं। ​पान: इसकी खेती और बीड़ा बनाने के काम में भी विशेष रूप से पिछड़ी जातियां (जैसे बारी, तमोली) शामिल हैं। ​पाग (वस्त्र): इसके निर्माण में बुनकर समुदाय (जैसे जुलाहा) का श्रम लगता है। ​माछ: मछली पकड़ने और मत्स्य पालन का...

​युवा शक्ति का उद्घोष, तेजस्वी में है बिहार का संतोष। -प्रो प्रसिद्ध कुमार का पंचलाइन अवश्य पढ़ें।

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  ​अब चलेगी जन-जन की वाणी, न चलेगी किसी की मनमानी।। ​भ्रष्टाचार की होगी शामत, जब चलेगा जनसेवा का तेजस्वी हलफ़नामा।  ​संकल्पों की मशाल जली है, बिहार को अब तेजस्वी राह मिली है।  ​न जुमलों का शोर, न पलटी का खेल; तेजस्वी का शासन, सच्चे विकास की रेल।  ​पलायन, महंगाई, बेकारी का बोझ, अब टूटेगा कुशासन का हर एक रोष।  ​गरीबों की आवाज बनकर, न्याय का सूर्य उगेगा; बिहार की मिट्टी पर, एक नया युग जगेगा।  ​सत्ता नहीं, सेवा का संकल्प है, यही बिहार के भविष्य का अटल विकल्प है।  तेजस्वी का राज अखंड, खुशहाल बनेगा बिहार का हर प्रखंड।

सच्ची खुशी: शब्दों की शक्ति और उपस्थिति का जादू!

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    ​सच्ची खुशी का अहसास तब होता है जब हमारे शब्द किसी के दिल को सुकून दें, और हमारी उपस्थिति किसी के दर्द को हल्का कर दे। यह खुशी किसी बड़ी उपलब्धि से नहीं, बल्कि छोटे-छोटे मानवीय स्पर्शों से जन्म लेती है। ​जीवन में हास्य और हंसी ज़रूरी है, पर यह ध्यान रखना चाहिए कि हमारी हंसी कभी दूसरों की तकलीफ़ों या कमियों का मज़ाक न बने। हंसी तब सार्थक होती है जब वह खुशी का बाँटवारा करे, न कि किसी को हीन महसूस कराए। ​दया और करुणा से सजे शब्द ​अपने शब्दों को दया और करुणा से सजाना चाहिए। हमारे बोले गए हर शब्द में इतनी शक्ति होती है कि वह या तो घाव भर सकता है या नया घाव दे सकता है। इसलिए, जब भी बोलें, इरादा हमेशा किसी को उठाना हो, न कि गिराना। ​किसी को खुशी का कारण बनाएं ​हमें जीवन में कभी किसी को हंसी का पात्र नहीं बनाना चाहिए, बल्कि हर किसी को खुशी का कारण बनाकर देखना चाहिए। इसका अर्थ है दूसरों के लिए सहारा बनना, उनके संघर्षों में साथ देना और उनकी सफलता में सच्ची खुशी महसूस करना। ​यही मानवीयता का सबसे सुंदर रूप है। जब हम दूसरों के जीवन में शांति और राहत लाते हैं, तभी हम अपने जीवन की सबसे ग...

ज्वलंत मुद्दों पर वोट: क्या सच में 'सुशासन' है या सिर्फ़ 'जुमला'?-प्रो प्रसिद्ध कुमार।

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​महंगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी का त्रिवेणी संकट। ​बिहार में आगामी चुनाव में महंगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी जैसे ज्वलंत मुद्दों पर वोट होने की मांग ज़ोर पकड़ रही है। आमजन से लेकर युवा, किसान और बुद्धिजीवी वर्ग तक इन समस्याओं से त्रस्त है। 20 साल के 'सुशासन' और 'डबल इंजन' की सरकार के दावों के बावजूद, ये मूलभूत मुद्दे आज भी राज्य की सबसे बड़ी चुनौती बने हुए हैं। ​बेरोजगारी: युवाओं का खत्म होता भविष्य ​बिहार में बेरोजगारी एक विकराल रूप ले चुकी है। युवा वर्ग नौकरियों के अभाव में कराह रहा है, जिससे उनमें गहरा आक्रोश है। ​निजीकरण का प्रहार: सरकारी क्षेत्रों में निजीकरण की बढ़ती प्रवृत्ति ने युवाओं के लिए सरकारी नौकरियों के अवसर लगभग समाप्त कर दिए हैं। ​पलायन की पीड़ा: रोजगार के अवसरों की कमी के कारण बिहारियों का पलायन आज भी एक गंभीर सामाजिक और आर्थिक त्रासदी है। लाखों युवा हर साल बेहतर भविष्य की तलाश में दूसरे राज्यों में जाने को मजबूर हैं। ​उद्योगों का अभाव: पिछले दो दशकों में, सरकारें राज्य में एक भी बड़ा उद्योग स्थापित करने में विफल रही हैं। निवेश और औद्योगिक विकास के दावे सिर...

"पकौड़ा पुराण और रील की माया" !-प्रो प्रसिद्ध कुमार।

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    ​अहो भाग्य! इस युग के 'अच्छे दिनों' के धूर्त दूत ने अब अपनी उपलब्धियों के महाकाव्य में एक नया अध्याय जोड़ा है। वह, जो कल तक 'भीख मांगने' को 'जीविका' और 'मजबूरी के पकौड़े तलने' को 'रोजगार' बताकर, अभाव की गाथा को आर्थिक क्रांति का शंखनाद घोषित कर रहा था, आज एक और 'उपलब्धि' का ढिंढोरा पीट रहा है—'टाइम पास रील बनाना' भी अब उसकी अनुकम्पा से प्राप्त 'कमाई का जरिया' बन गया है! ​यह कैसा 'अनपढ़ ज्ञानु' है, जिसकी दृष्टि में श्रम और स्वाभिमान का अंतर मिट चुका है? क्या कल यह ज्ञान-पुंज, जुए की लत, नशे के काले व्यापार, देह व्यापार की विवशता, या दंगे-हत्या के आपराधिक विक्षिप्तता से कमाए गए धन को भी 'अपना दिया हुआ रोजगार' बताकर, अपनी 'उपलब्धि' की सूची में गर्व से शामिल कर सकता है? यह ठग भाषा का विज़न, समाज के मूल्यों को किस गर्त में धकेल रहा है, यह प्रश्न आज हर विवेकवान मस्तिष्क में गूँज रहा है। ​वीआईपी (VIP) संतान और 'विकसित' भारत का सपना: ​यह ठग भाषा विज़न हमें बस इतना और बता दे कि गडकरी से लेकर दिवंग...

अजनबीपन की गहनता: आत्म-शुद्धि का सोपान ​पीड़ा का आईना और सच्चे संबंधों की परख !- प्रो प्रसिद्ध कुमार।

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   ​मानव जीवन के अनुभव-पथ पर 'अजनबीपन' (अलगाव) एक ऐसी गहन अनुभूति है, जो हृदय की कोमलता को विदीर्ण कर देती है। "अजनबीपन का दर्द गहरा होता है," और वास्तव में, इसकी वेदना मौन होती है, परंतु इसका प्रभाव जीवन की दिशा बदलने की क्षमता रखता है। यह एक ऐसा एकांत है जो बाहरी नहीं, बल्कि अंतर्मन की गहराइयों में महसूस होता है। ​अजनबीपन की पीड़ा: ​अजनबीपन का दर्द यह, अतिशय दारुण पीर। भीतर से जब टूटता, तब बहता नयनन नीर॥ ​परंतु, यह पीड़ा केवल कष्ट का पर्याय नहीं है। यह जीवन की कठोर पाठशाला है, जहाँ से ज्ञान का प्रकाश फूटता है। इसका सबसे बड़ा सकारात्मक पक्ष भी है—यह हमें आत्म-परीक्षण का अवसर देता है। यह हमारी आत्मा के सम्मुख एक ऐसा आईना दिखाता है जिसमें सामाजिक संबंधों की वास्तविक छवि स्पष्ट होती है। ​यह एकांत ही है जो हमें यह बोध कराता है कि "कौन हमारे लिए सही है और कौन केवल हमारी उपस्थिति का लाभ उठा रहा है।" जब हम स्वयं को भीड़ से हटाकर देखते हैं, तभी छद्म (झूठे) और सच्चे (निष्कपट) संबंधों का भेद सामने आता है। जो लोग केवल स्वार्थवश हमसे जुड़े हैं, वे इस अकेलेपन में छिटक जाते ह...

दीघा में नागरिक संवाद: तुषार गांधी और डॉ. सुनीलम ने इंडिया गठबंधन की जीत की अपील की !

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    ​"यह चुनाव भारत के भविष्य की राह तय करेगा": बुद्धिजीवियों ने दिव्या गौतम के समर्थन में उठाई आवाज़ ​पटना के डॉक्टर अंबेडकर भवन में दीघा विधानसभा क्षेत्र से महागठबंधन समर्थित उम्मीदवार दिव्या गौतम के समर्थन में एक महत्वपूर्ण नागरिक संवाद का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में महात्मा गांधी के प्रपौत्र और देश के जाने-माने बुद्धिजीवी तुषार गांधी तथा किसान आंदोलन के नेता डॉ. सुनीलम ने शिरकत की और इंडिया गठबंधन को जीत दिलाने की पुरजोर अपील की। उनके साथ शाहिद कमाल, एमएलसी शशि यादव और प्रत्याशी दिव्या गौतम ने भी अपने विचार साझा किए। AIPF की ओर से आयोजित इस संवाद का संचालन कमलेश शर्मा ने किया, जिसकी अध्यक्षता सरफराज और पंकज श्वेताभ ने की। इस मौके पर शहर के कई बुद्धिजीवी उपस्थित थे। ​तुषार गांधी ने विकास के दावों पर सवाल उठाए ​तुषार गांधी ने बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों के अपने अनुभव साझा करते हुए सत्ताधारी नेताओं पर निशाना साधा। उन्होंने कहा, "मैंने बिहार के गांवों में जो हालत देखी — विकास के पोस्टर चमकते हैं पर ज़मीनी हकीकत अलग है। बिजली नहीं, सड़क नहीं, जब कोसी की बाढ़ आती है तो ग...

'संख्या बल' का भ्रम: क्या कायस्थों की उपेक्षा भाजपा को पड़ेगी भारी?- डॉ. दीपेंद्र भूषण के वार्ता पर आधारित।

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 कुम्हरार सीट पर कायस्थ को बेटिकट करना - सिर्फ एक टिकट का सवाल नहीं, राजनीतिक अस्तित्व की चुनौती। ​पटना की कुम्हरार विधानसभा सीट पर निवर्तमान कायस्थ विधायक का टिकट काटकर वैश्य समाज के उम्मीदवार को देना भाजपा की एक ऐसी राजनीतिक चाल है, जिसे पूर्व अधिकारी डॉ. दीपेंद्र भूषण ने पार्टी के लिए 'महंगा' पड़ने वाली चेतावनी के रूप में पेश किया है। यह कदम केवल एक स्थानीय सीट के टिकट वितरण का मामला नहीं है, बल्कि यह उस कायस्थ समाज की उपेक्षा का प्रमाण है, जिसका भारतीय राजनीति और स्वतंत्रता संग्राम में एक गौरवशाली इतिहास रहा है। ​अतीत का गौरवशाली स्मरण और राजनीतिक गणित ​डॉ. भूषण अपने वक्तव्य में कायस्थ समाज की 'बुद्धि सम्पदा' और ऐतिहासिक भूमिका को रेखांकित करते हैं। उनका तर्क है कि जब तक यह समाज कांग्रेस के साथ रहा, कांग्रेस सत्ता में रही; और जब कायस्थों ने भाजपा का रुख किया, तो भाजपा सत्तासीन हुई। यह दावा राजनीतिक दलों के लिए एक गंभीर विचारणीय बिंदु है। ​कायस्थ समाज ने देश को डॉ. राजेंद्र प्रसाद (प्रथम राष्ट्रपति),  बिहार निर्माता सच्चिदानंद सिन्हा, 'तुम मुझे खून दो, मैं तुझे आ...

विज्ञापन जगत के महान हस्ती, पद्मश्री पीयूष पांडे का निधन भारतीय सिनेमा और उद्योग जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है। !-😢प्रो प्रसिद्ध कुमार।

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    वह भारतीय विज्ञापन की दुनिया के गुरु माने जाते थे, जिन्होंने अपनी रचनात्मकता, हास्य और गहरी मानवीय समझ से विज्ञापनों को एक नई दिशा दी। 'ओगिल्वी इंडिया' के साथ चार दशकों से अधिक के अपने सफर में, उन्होंने भारतीय विज्ञापन को अंग्रेजी केंद्रित दायरे से निकालकर आम आदमी की भाषा, भाव और संस्कृति से जोड़ा। पीयूष पांडे ने कई ऐसे सदाबहार और यादगार अभियान बनाए जो भारतीय लोक चेतना का हिस्सा बन गए हैं: 'फेविकोल का जोड़ है, टूटेगा नहीं' 'कुछ खास है' (कैडबरी) 'हर खुशी में रंग लाए' (एशियन पेंट्स) 'मिले सुर मेरा तुम्हारा' (राष्ट्रीय एकता गीत) 'दो बूंद जिंदगी की' (पोलियो अभियान) इनके अलावा, राजनीतिक स्लोगन जैसे 'अबकी बार मोदी सरकार' को भी उन्होंने ही तैयार किया था। उन्हें 2016 में पद्म श्री और 2024 में LIA लीजेंड अवार्ड से सम्मानित किया गया। उनका निधन सिर्फ एक विज्ञापन दिग्गज का जाना नहीं है, बल्कि उस रचनात्मक आत्मा का जाना है जिसने ब्रांडों को मानवीय भावनाएं दीं और विचारों को अमर बना दिया। उनके विज्ञापनों में भारत की मिट्टी की महक थी, जो दर्शक...

बिजली रानी: जिसके लिए शादियों की तारीखें बदल जाती थीं - एक श्रद्धांजलि !-😢प्रो प्रसिद्ध कुमार।

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    ​बिहार और भोजपुरी लोक संगीत जगत की वह सितारा, जिसकी खनकदार आवाज़ और शानदार नृत्य ने एक पूरे दौर को रौशन कर दिया, वह थीं बिजली रानी। उनके निधन से भोजपुरी कला जगत में एक ऐसा शून्य पैदा हो गया है जिसे भर पाना मुश्किल है। ​प्रतिष्ठा का पर्याय ​बिजली रानी केवल एक नर्तकी या गायिका नहीं थीं; वह एक युग थीं, एक संस्था थीं। 90 के दशक में, खासकर शाहाबाद, भोजपुर और मगध क्षेत्रों में, किसी भी शादी या शुभ आयोजन की सफलता की गारंटी उनके कार्यक्रम की उपस्थिति से मापी जाती थी। उनके नाच और गायन को सामाजिक प्रतिष्ठा से जोड़कर देखा जाता था। उनके कार्यक्रम को बुक करने के लिए किसी "पोथी-पत्रा" या लंबी लिखा-पढ़ी की ज़रूरत नहीं होती थी। लोग अपनी शादी की तारीख़ें उनके उपलब्ध कैलेंडर के हिसाब से तय करते थे। किसी समारोह में उनका "साटा" (करार/बुकिंग) हो जाना ही इस बात का प्रमाण था कि वह आयोजन कितना भव्य और महत्वपूर्ण होगा। उनका नाम ही एक ऐसी मुहर थी, जिसके बिना कोई भी स्टेज शो अधूरा माना जाता था। ​अद्वितीय कला और प्रभाव ​बिजली रानी की पहचान उनकी दमदार, खनकदार आवाज़ और उनके ऊर्जावान, शानदार नृत...

आत्म-मंथन का क्षण: बिहार की राजनीति में कायस्थ समाज को मिला 'संकेत' ! जितेंद्र कुमार सिन्हा के साथ प्रो प्रसिद्ध कुमार।

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    (डॉ दीपेंद्र भूषण ) कुम्हरार सीट पर टिकट कटने से जागा कायस्थ समाज; क्या एनडीए ने 'समर्पित बौद्धिक वर्ग' को नज़रअंदाज़ कर गलती की है? ​बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में कायस्थ समाज को टिकट बंटवारे में जो मिला है, वह महज़ संख्याओं का हिसाब-किताब नहीं है, बल्कि एक "संकेत" है। यह संकेत स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि राजनीतिक दल—विशेषकर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) जिससे कायस्थ समाज पारंपरिक रूप से जुड़ा रहा है—समाज की मौन स्वीकृति को उसकी राजनीतिक निष्क्रियता मान रहे हैं। ​आलोचनात्मक विश्लेषण: ​1. "संकेत" और राजनीतिक विस्मृति (Political Amnesia): कायस्थ समाज को मिला कम प्रतिनिधित्व, खासकर पटना के कुम्हरार जैसी कायस्थ-बहुल सीट पर निवर्तमान विधायक अरुण सिन्हा (कायस्थ) का टिकट काटकर वैश्य समाज के उम्मीदवार को देना, एक गहरी उपेक्षा का प्रमाण है। कुम्हरार में सवा लाख कायस्थ मतदाताओं की निर्णायक संख्या है। मोतिहारी, गया और भागलपुर जैसे जिलों में भी यह समाज निर्णायक भूमिका में है, फिर भी इनका प्रतिनिधित्व घटाया गया। यह राजनीति का सीधा संदेश है: अगर समाज अपनी आवाज़ खो दे...

युवाओं की चुनौतियाँ: रोज़गार, कौशल विकास और मानसिक स्वास्थ्य !

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    ​आज की युवा पीढ़ी कई महत्वपूर्ण समस्याओं का सामना कर रही है, जिनका समाधान करना अत्यंत आवश्यक है। युवाओं के लिए स्थिर और गुणवत्तापूर्ण रोज़गार, सुरक्षित आवास, बेहतर शिक्षा और सस्ती स्वास्थ्य सेवाओं को अधिक समृद्ध और किफायती बनाने की ज़रूरत है। यह न केवल उनके व्यक्तिगत विकास के लिए, बल्कि देश की आधुनिक अर्थव्यवस्था में उनके प्रभावी योगदान के लिए भी महत्वपूर्ण है। ​कौशल विकास पर ज़ोर: उद्योग की आवश्यकता इन चुनौतियों से निपटने के लिए व्यावसायिक और तकनीकी शिक्षा पर ज़ोर देना चाहिए। इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि युवा उद्योग और व्यवसाय की वर्तमान आवश्यकताओं के अनुरूप अपने कौशल का विकास कर सकें। जब युवा सही कौशल से लैस होंगे, तभी वे तेज़ी से बदलती वैश्विक और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में सफलतापूर्वक योगदान दे पाएंगे। ​बेरोज़गारी के आँकड़े: देश और बिहार की स्थिति ​बेरोज़गारी, विशेष रूप से युवा बेरोज़गारी, एक गंभीर राष्ट्रीय समस्या है। हाल के आँकड़ों (मई 2025 तक) के अनुसार, भारत की बेरोजगारी दर बढ़कर 5.6% हो गई, जो पिछले महीने (अप्रैल) की 5.1% दर से अधिक है। चिंता की बात ...

माँ: मानवता की आद्य-सृजक ! - प्रो प्रसिद्ध कुमार।

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    ​जीवन के इस विराट रंगमंच पर, जहाँ हर प्राणी एक भूमिका निभाता है, वहाँ मनुष्य होने का गौरव हमारी माताएँ ही प्रदान करती हैं। यह मात्र एक जैविक सत्य नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक नींव है कि हमें बुनियादी तौर पर 'मनुष्य' बनाने में हमारी जननियों का ही महत्तर योगदान रहा है। ​देखा जाए तो, केवल मनुष्य रूप में जन्म लेना मनुष्यता का प्रमाण नहीं है। यह तो प्रकृति का एक विधान है। असली चुनौती तो उस नश्वर देह में एक उदात्त, संवेदनशील और सुसंस्कृत आत्मा का संचार करना है। हमें मनुष्य होने के नाते, अपने व्यक्तित्व के अंतरंग में उन दिव्य गुणों को समाहित करना पड़ता है जो हमें पशुता से ऊपर उठाकर देवत्व के समीप ले जाते हैं। ​और इस गहन, अलौकिक प्रक्रिया की अधिष्ठात्री केवल माँ है। वह शिल्पकार है जो हमें कच्ची मिट्टी से तराशकर एक कलाकृति का रूप देती है। माँ ही वह प्रथम गुरु है जो अपने विचारों की शुद्धता से हमारे मानस को सींचती है; अपने संस्कारों की अनमोल धरोहर से हमारी आत्मा को समृद्ध करती है; और अपने मौन, किंतु दृढ़ अनुशासन की सीख से हमारे जीवन को एक सही दिशा और उद्देश्य देती है। ​माँ...

​संघर्ष की पगडंडियाँ: एक कार्यकर्ता की निस्पृह गाथा !- प्रो प्रसिद्ध कुमार।

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    ​'गांवों की पगडंडियों से चलकर मैं सत्ता परिवर्तन का साक्षी रहा हूँ' ! ​मेरी यह कथा मात्र एक व्यक्ति के जीवन का ब्यौरा नहीं, बल्कि भारतीय राजनीति के बदलते आयामों पर एक निस्पृह टिप्पणी है। मेरी यात्रा उन कच्ची पगडंडियों से शुरू हुई, जो गाँवों को मुख्यधारा से जोड़ती हैं, और मेरा गंतव्य सत्ता के उच्चतम शिखर तक होने वाले परिवर्तनों का साक्षी बनना रहा है। ​युवावस्था में, जब कॉलेज के गलियारों में स्वप्न पलते थे, मैंने स्वयं को राजनीति के एक साधारण, किंतु संकल्पबद्ध कार्यकर्ता के रूप में समर्पित किया। मैं उन मूक गवाहों में से हूँ, जिन्होंने संघर्ष की तपस्या से गुज़रकर मेरे साथियों को विधानसभा से लेकर लोकसभा तक की महती यात्रा तय करते देखा है। मेरे अनेक सहकर्मी उच्च सदन और निम्न सदन की शोभा बने, मंत्रिमंडल में सुशोभित हुए और दल के सांगठनिक ढाँचे में शीर्षस्थ पद पर पहुँचे। ​मेरी राजनीति की नींव विचारों की मुस्तैदी पर टिकी रही। मेरे लिए राजनीति सिद्धांत थी, सुविधा नहीं। यह मेरा अडिग स्वाभिमान था कि मैंने कभी किसी पद की लालसा में किसी के समक्ष सिफारिश का हाथ नहीं पसारा। मैंने न कभी बड़...

​विकास की दौड़ और भूख की चुनौती !-प्रो प्रसिद्ध कुमार।

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    ​प्रत्येक देश विकास के पथ पर अग्रसर होने का दावा करता है। अल्पविकसित देश विकासशील बनना चाहते हैं, वहीं विकासशील राष्ट्र विकसित देशों की श्रेणी में शामिल होने की होड़ में हैं। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सरकारें न केवल प्रयास करती हैं, बल्कि विकास के संदर्भ में अपनी उपलब्धियां और विकास दर के आंकड़े भी प्रस्तुत करती हैं, जिनके आधार पर देश की प्रगति का आकलन होता है। ​हालांकि, जब विकास के दावों के बीच कोई ऐसा आंकड़ा सामने आता है जो यह दर्शाता हो कि देश अभी भी 'भूख' (Hunger) जैसी मूलभूत समस्या का समाधान नहीं कर पाया है, तब विकास के सभी आंकड़े अधूरे और निरर्थक लगने लगते हैं। यह स्थिति विकास की वास्तविक परिभाषा और उसकी समावेशिता पर एक गंभीर प्रश्नचिह्न लगाती है।

शोषण के साये में 'विकास के दूत': बिहार के बैंक मित्रों की अनसुनी व्यथा !

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    ​बिहार की धरती पर, जहां हर कदम पर संघर्ष और आशा का दोहराव है, वहां विकास की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी – बैंक मित्र – आज गहरे शोषण के अंधेरे में जी रहे हैं। आपने जो व्यथा व्यक्त की है, प्रिय भाई प्रेम कुमार, वह केवल आपकी नहीं, बल्कि बिहार के लगभग पचास से साठ हज़ार उन कर्मठ लोगों की सामूहिक चीख है, जिन्हें केंद्र और राज्य सरकारों ने बड़ी-बड़ी बिचौलिया कंपनियों के हवाले कर दिया है। ​ये वे लोग हैं, जो प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी 'जन-धन योजना' को घर-घर तक ले गए। ये वे 'दूत' हैं, जिन्होंने गाँव-देहात में वित्तीय समावेशन (Financial Inclusion) का बीज बोया। बैंक की शाखा से मीलों दूर, तपती धूप या कड़कड़ाती ठंड में, ये हमारे बुजुर्गों को पेंशन, माताओं को सरकारी योजनाओं की राशि और किसानों को उनके खातों की सुविधा उपलब्ध कराते हैं। ये बैंक की 'रीढ़' हैं, पर इन्हें 'रीढ़हीन' बनाकर छोड़ दिया गया है। ​आलोचनात्मक अवलोकन: बिचौलियों का 'अंग्रेजी हुकूमत' ​आपकी यह बात शत-प्रतिशत सत्य है कि ये बिचौलिया कंपनियाँ 'अंग्रेजी हुकूमत से भी ज्यादा अत्याचार' करने को आ...

नमकहरामों की वोट की जरूरत नहीं ! - केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ।

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  खुद तो जाएगा सनम ,दूसरों को भी ले डूबेगा। यह केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह का बयान है, जो बीजेपी के नेता हैं। जदयू (जनता दल यूनाइटेड), लोजपा (लोक जनशक्ति पार्टी) और हम (हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा) एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) के घटक दल हैं, जिसमें बीजेपी भी शामिल है। इस वक्तव्य से जदयू, लोजपा, हम को नुकसान: अल्पसंख्यक वोटों का ध्रुवीकरण: गिरिराज सिंह का यह बयान अल्पसंख्यक समुदाय (मुख्यतः मुस्लिम) को सीधे तौर पर अपमानजनक लग सकता है। इससे इस समुदाय के वोटों का महागठबंधन (राजद, कांग्रेस आदि) के पक्ष में और मजबूत ध्रुवीकरण हो सकता है, जिससे एनडीए के घटक दलों (जदयू, लोजपा, हम) को इन क्षेत्रों में भारी नुकसान होने की आशंका है। जदयू की 'सेक्युलर' छवि को क्षति: जदयू प्रमुख नीतीश कुमार ने हमेशा एक 'सेक्युलर' और समावेशी नेता की छवि बनाए रखने की कोशिश की है और उनका अल्पसंख्यक समुदाय में भी कुछ हद तक जनाधार रहा है। इस तरह के बयानों से जदयू की उस छवि को गंभीर क्षति पहुँचती है और अल्पसंख्यक मतदाता जदयू से पूरी तरह विमुख हो सकते हैं। साझेदार दलों पर दबाव: जदयू, लोजपा और हम पर अपन...

देश में आय असमानता की विकट स्थिति ! -प्रो प्रसिद्ध कुमार ,अर्थशास्त्र विभाग।

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     देश में 1% के पास कुल संपत्ति का 40.1% हिस्सा है।   सबका साथ, सबका विकास का नमूना। भारत में आर्थिक असमानता गंभीर चिंता का विषय बनी हुई है। संपत्ति का संकेन्द्रण: वर्ल्ड इनइक्वलिटी लैब की एक रिपोर्ट (2022-23) के अनुसार, भारत की शीर्ष 1% आबादी के पास देश की कुल आय का 22.6% हिस्सा है, जो 1922 के बाद का उच्चतम स्तर है। इसी शीर्ष 1% के पास कुल संपत्ति का 40.1% हिस्सा है। गरीबी और अभाव: ऑक्सफैम की रिपोर्ट बताती है कि भारत की एक फीसदी आबादी के पास देश की 40 फीसदी संपत्ति है। यह बढ़ती असमानता दर्शाती है कि आर्थिक विकास का लाभ समान रूप से वितरित नहीं हो रहा है। इसके अलावा, स्वास्थ्य देखभाल लागत के कारण हर साल लाखों लोग गरीबी की ओर धकेल दिए जाते हैं। सकारात्मक संकेत (एसबीआई रिपोर्ट): एक अन्य दृष्टिकोण (एसबीआई रिपोर्ट) यह भी है कि ₹5 लाख तक की सालाना आमदनी वाले लोगों के लिए आय असमानता (कवरेज में) में वित्त वर्ष 2013-14 और 2022-23 के बीच 74.2% तक की कमी आई है। यह निम्न आय वर्ग तक सरकारी प्रयासों के पहुंचने का संकेत देता है। वैश्विक तुलना में कम प्रति व्यक्ति आय भारत दु...

अलविदा! एक जन-नेता का सफर हुआ पूरा: प्रोफेसर वसीमुल हक़ 'मुन्ना नेता' नहीं रहे !

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    सूत्रधार परिवार ने गहरी संवेदना व्यक्त की। ​आज खगौल, दानापुर, और पटना के राजनीतिक और सामाजिक गलियारों में एक गहरा शून्य छा गया है। हमारे बीच अब प्रोफेसर वसीमुल हक़, जिन्हें प्यार से लोग 'मुन्ना नेता' के नाम से जानते थे, नहीं रहे। उनका जाना सिर्फ उनके परिवार के लिए ही नहीं, बल्कि उन सभी लोगों के लिए एक अपूरणीय क्षति है, जिनकी आवाज़ वह बनकर उभरे थे। सूत्रधार के महासचिव नवाब आलम व कार्यक्रम आयोजक प्रो प्रसिद्ध कुमार ने गहरी संवेदना व्यक्त की है। ​प्रोफेसर वसीमुल हक़ का राजनीतिक सफर युवा कांग्रेस से शुरू हुआ था, जहां उन्होंने ज़मीनी स्तर पर काम करना सीखा। अपनी मेहनत, लगन और लोगों से सीधे जुड़ाव के कारण, वह जल्द ही पहचान बनाने में सफल रहे। हाल के दिनों में, वह लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल (RJD) की अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ में एक सक्रिय और प्रभावशाली नेता थे। उनका समर्पण अल्पसंख्यकों के हक़ और विकास के लिए हमेशा अटल रहा। ​ विरासत का मजबूत आधार ​मुन्ना नेता जी की जड़ें बहुत गहरी और प्रतिष्ठित थीं। ​उनके पिता, डॉ. हफ़ीज़ुल हक़, खगौल, फुलवारी शरीफ, पुनपुन, दानापुर, बिहटा, मनेर, नौबतपुर और पटना ...

जनसुराज सत्ता का साइलेंट किलर ! प्रो प्रसिद्ध कुमार।

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  दानापुर में जनसुराज को नॉमिनेशन से बलपूर्वक रोकना भाजपा का हताशा का परिचायक। ​राजनीति में 'तीसरा मोर्चा' (Third Front) अक्सर चुनावी नतीजे बदल देता है। यह खुद जीते या न जीते, लेकिन मुख्य पार्टियों के हार-जीत का फैसला जरूर करता है। बिहार विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज इसी भूमिका में है। ​जन सुराज को चुनावी पंडित भले ही 'वोट कटवा' कहें, लेकिन वह दोनों बड़े गठबंधनों के लिए बड़ा सिरदर्द बन चुका है। ​ कौन है जन सुराज का वोटर? ​जन सुराज की ताकत उन वोटरों में है जो NDA और INDIA गठबंधन, दोनों से नाराज हैं। ​असंतुष्ट वोटर: ऐसे वोटर जो मौजूदा सरकार (NDA) से और विपक्ष (INDIA गठबंधन) के पुराने राजनीतिक तरीके से खुश नहीं हैं, वे सीधे जन सुराज की ओर जा रहे हैं। ​बाग़ी नेताओं का विकल्प: दोनों मुख्य पार्टियों से टिकट न मिलने वाले बाग़ी नेता और कार्यकर्ता जन सुराज को एक मजबूत मंच मानकर चुनाव लड़ रहे हैं। ​शिक्षित वर्ग की पसंद: प्रशांत किशोर की 'सुशासन' और 'विकास' की बातें युवाओं और पढ़े-लिखे वर्ग को आकर्षित कर रही हैं। ​दानापुर का संकेत ​दानापुर में वैश्य...