Posts

Showing posts from October, 2025

अजनबीपन की गहनता: आत्म-शुद्धि का सोपान ​पीड़ा का आईना और सच्चे संबंधों की परख !- प्रो प्रसिद्ध कुमार।

Image
   ​मानव जीवन के अनुभव-पथ पर 'अजनबीपन' (अलगाव) एक ऐसी गहन अनुभूति है, जो हृदय की कोमलता को विदीर्ण कर देती है। "अजनबीपन का दर्द गहरा होता है," और वास्तव में, इसकी वेदना मौन होती है, परंतु इसका प्रभाव जीवन की दिशा बदलने की क्षमता रखता है। यह एक ऐसा एकांत है जो बाहरी नहीं, बल्कि अंतर्मन की गहराइयों में महसूस होता है। ​अजनबीपन की पीड़ा: ​अजनबीपन का दर्द यह, अतिशय दारुण पीर। भीतर से जब टूटता, तब बहता नयनन नीर॥ ​परंतु, यह पीड़ा केवल कष्ट का पर्याय नहीं है। यह जीवन की कठोर पाठशाला है, जहाँ से ज्ञान का प्रकाश फूटता है। इसका सबसे बड़ा सकारात्मक पक्ष भी है—यह हमें आत्म-परीक्षण का अवसर देता है। यह हमारी आत्मा के सम्मुख एक ऐसा आईना दिखाता है जिसमें सामाजिक संबंधों की वास्तविक छवि स्पष्ट होती है। ​यह एकांत ही है जो हमें यह बोध कराता है कि "कौन हमारे लिए सही है और कौन केवल हमारी उपस्थिति का लाभ उठा रहा है।" जब हम स्वयं को भीड़ से हटाकर देखते हैं, तभी छद्म (झूठे) और सच्चे (निष्कपट) संबंधों का भेद सामने आता है। जो लोग केवल स्वार्थवश हमसे जुड़े हैं, वे इस अकेलेपन में छिटक जाते ह...

दीघा में नागरिक संवाद: तुषार गांधी और डॉ. सुनीलम ने इंडिया गठबंधन की जीत की अपील की !

Image
    ​"यह चुनाव भारत के भविष्य की राह तय करेगा": बुद्धिजीवियों ने दिव्या गौतम के समर्थन में उठाई आवाज़ ​पटना के डॉक्टर अंबेडकर भवन में दीघा विधानसभा क्षेत्र से महागठबंधन समर्थित उम्मीदवार दिव्या गौतम के समर्थन में एक महत्वपूर्ण नागरिक संवाद का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में महात्मा गांधी के प्रपौत्र और देश के जाने-माने बुद्धिजीवी तुषार गांधी तथा किसान आंदोलन के नेता डॉ. सुनीलम ने शिरकत की और इंडिया गठबंधन को जीत दिलाने की पुरजोर अपील की। उनके साथ शाहिद कमाल, एमएलसी शशि यादव और प्रत्याशी दिव्या गौतम ने भी अपने विचार साझा किए। AIPF की ओर से आयोजित इस संवाद का संचालन कमलेश शर्मा ने किया, जिसकी अध्यक्षता सरफराज और पंकज श्वेताभ ने की। इस मौके पर शहर के कई बुद्धिजीवी उपस्थित थे। ​तुषार गांधी ने विकास के दावों पर सवाल उठाए ​तुषार गांधी ने बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों के अपने अनुभव साझा करते हुए सत्ताधारी नेताओं पर निशाना साधा। उन्होंने कहा, "मैंने बिहार के गांवों में जो हालत देखी — विकास के पोस्टर चमकते हैं पर ज़मीनी हकीकत अलग है। बिजली नहीं, सड़क नहीं, जब कोसी की बाढ़ आती है तो ग...

'संख्या बल' का भ्रम: क्या कायस्थों की उपेक्षा भाजपा को पड़ेगी भारी?- डॉ. दीपेंद्र भूषण के वार्ता पर आधारित।

Image
 कुम्हरार सीट पर कायस्थ को बेटिकट करना - सिर्फ एक टिकट का सवाल नहीं, राजनीतिक अस्तित्व की चुनौती। ​पटना की कुम्हरार विधानसभा सीट पर निवर्तमान कायस्थ विधायक का टिकट काटकर वैश्य समाज के उम्मीदवार को देना भाजपा की एक ऐसी राजनीतिक चाल है, जिसे पूर्व अधिकारी डॉ. दीपेंद्र भूषण ने पार्टी के लिए 'महंगा' पड़ने वाली चेतावनी के रूप में पेश किया है। यह कदम केवल एक स्थानीय सीट के टिकट वितरण का मामला नहीं है, बल्कि यह उस कायस्थ समाज की उपेक्षा का प्रमाण है, जिसका भारतीय राजनीति और स्वतंत्रता संग्राम में एक गौरवशाली इतिहास रहा है। ​अतीत का गौरवशाली स्मरण और राजनीतिक गणित ​डॉ. भूषण अपने वक्तव्य में कायस्थ समाज की 'बुद्धि सम्पदा' और ऐतिहासिक भूमिका को रेखांकित करते हैं। उनका तर्क है कि जब तक यह समाज कांग्रेस के साथ रहा, कांग्रेस सत्ता में रही; और जब कायस्थों ने भाजपा का रुख किया, तो भाजपा सत्तासीन हुई। यह दावा राजनीतिक दलों के लिए एक गंभीर विचारणीय बिंदु है। ​कायस्थ समाज ने देश को डॉ. राजेंद्र प्रसाद (प्रथम राष्ट्रपति),  बिहार निर्माता सच्चिदानंद सिन्हा, 'तुम मुझे खून दो, मैं तुझे आ...

विज्ञापन जगत के महान हस्ती, पद्मश्री पीयूष पांडे का निधन भारतीय सिनेमा और उद्योग जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है। !-😢प्रो प्रसिद्ध कुमार।

Image
    वह भारतीय विज्ञापन की दुनिया के गुरु माने जाते थे, जिन्होंने अपनी रचनात्मकता, हास्य और गहरी मानवीय समझ से विज्ञापनों को एक नई दिशा दी। 'ओगिल्वी इंडिया' के साथ चार दशकों से अधिक के अपने सफर में, उन्होंने भारतीय विज्ञापन को अंग्रेजी केंद्रित दायरे से निकालकर आम आदमी की भाषा, भाव और संस्कृति से जोड़ा। पीयूष पांडे ने कई ऐसे सदाबहार और यादगार अभियान बनाए जो भारतीय लोक चेतना का हिस्सा बन गए हैं: 'फेविकोल का जोड़ है, टूटेगा नहीं' 'कुछ खास है' (कैडबरी) 'हर खुशी में रंग लाए' (एशियन पेंट्स) 'मिले सुर मेरा तुम्हारा' (राष्ट्रीय एकता गीत) 'दो बूंद जिंदगी की' (पोलियो अभियान) इनके अलावा, राजनीतिक स्लोगन जैसे 'अबकी बार मोदी सरकार' को भी उन्होंने ही तैयार किया था। उन्हें 2016 में पद्म श्री और 2024 में LIA लीजेंड अवार्ड से सम्मानित किया गया। उनका निधन सिर्फ एक विज्ञापन दिग्गज का जाना नहीं है, बल्कि उस रचनात्मक आत्मा का जाना है जिसने ब्रांडों को मानवीय भावनाएं दीं और विचारों को अमर बना दिया। उनके विज्ञापनों में भारत की मिट्टी की महक थी, जो दर्शक...

बिजली रानी: जिसके लिए शादियों की तारीखें बदल जाती थीं - एक श्रद्धांजलि !-😢प्रो प्रसिद्ध कुमार।

Image
    ​बिहार और भोजपुरी लोक संगीत जगत की वह सितारा, जिसकी खनकदार आवाज़ और शानदार नृत्य ने एक पूरे दौर को रौशन कर दिया, वह थीं बिजली रानी। उनके निधन से भोजपुरी कला जगत में एक ऐसा शून्य पैदा हो गया है जिसे भर पाना मुश्किल है। ​प्रतिष्ठा का पर्याय ​बिजली रानी केवल एक नर्तकी या गायिका नहीं थीं; वह एक युग थीं, एक संस्था थीं। 90 के दशक में, खासकर शाहाबाद, भोजपुर और मगध क्षेत्रों में, किसी भी शादी या शुभ आयोजन की सफलता की गारंटी उनके कार्यक्रम की उपस्थिति से मापी जाती थी। उनके नाच और गायन को सामाजिक प्रतिष्ठा से जोड़कर देखा जाता था। उनके कार्यक्रम को बुक करने के लिए किसी "पोथी-पत्रा" या लंबी लिखा-पढ़ी की ज़रूरत नहीं होती थी। लोग अपनी शादी की तारीख़ें उनके उपलब्ध कैलेंडर के हिसाब से तय करते थे। किसी समारोह में उनका "साटा" (करार/बुकिंग) हो जाना ही इस बात का प्रमाण था कि वह आयोजन कितना भव्य और महत्वपूर्ण होगा। उनका नाम ही एक ऐसी मुहर थी, जिसके बिना कोई भी स्टेज शो अधूरा माना जाता था। ​अद्वितीय कला और प्रभाव ​बिजली रानी की पहचान उनकी दमदार, खनकदार आवाज़ और उनके ऊर्जावान, शानदार नृत...

आत्म-मंथन का क्षण: बिहार की राजनीति में कायस्थ समाज को मिला 'संकेत' ! जितेंद्र कुमार सिन्हा के साथ प्रो प्रसिद्ध कुमार।

Image
    (डॉ दीपेंद्र भूषण ) कुम्हरार सीट पर टिकट कटने से जागा कायस्थ समाज; क्या एनडीए ने 'समर्पित बौद्धिक वर्ग' को नज़रअंदाज़ कर गलती की है? ​बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में कायस्थ समाज को टिकट बंटवारे में जो मिला है, वह महज़ संख्याओं का हिसाब-किताब नहीं है, बल्कि एक "संकेत" है। यह संकेत स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि राजनीतिक दल—विशेषकर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) जिससे कायस्थ समाज पारंपरिक रूप से जुड़ा रहा है—समाज की मौन स्वीकृति को उसकी राजनीतिक निष्क्रियता मान रहे हैं। ​आलोचनात्मक विश्लेषण: ​1. "संकेत" और राजनीतिक विस्मृति (Political Amnesia): कायस्थ समाज को मिला कम प्रतिनिधित्व, खासकर पटना के कुम्हरार जैसी कायस्थ-बहुल सीट पर निवर्तमान विधायक अरुण सिन्हा (कायस्थ) का टिकट काटकर वैश्य समाज के उम्मीदवार को देना, एक गहरी उपेक्षा का प्रमाण है। कुम्हरार में सवा लाख कायस्थ मतदाताओं की निर्णायक संख्या है। मोतिहारी, गया और भागलपुर जैसे जिलों में भी यह समाज निर्णायक भूमिका में है, फिर भी इनका प्रतिनिधित्व घटाया गया। यह राजनीति का सीधा संदेश है: अगर समाज अपनी आवाज़ खो दे...

युवाओं की चुनौतियाँ: रोज़गार, कौशल विकास और मानसिक स्वास्थ्य !

Image
    ​आज की युवा पीढ़ी कई महत्वपूर्ण समस्याओं का सामना कर रही है, जिनका समाधान करना अत्यंत आवश्यक है। युवाओं के लिए स्थिर और गुणवत्तापूर्ण रोज़गार, सुरक्षित आवास, बेहतर शिक्षा और सस्ती स्वास्थ्य सेवाओं को अधिक समृद्ध और किफायती बनाने की ज़रूरत है। यह न केवल उनके व्यक्तिगत विकास के लिए, बल्कि देश की आधुनिक अर्थव्यवस्था में उनके प्रभावी योगदान के लिए भी महत्वपूर्ण है। ​कौशल विकास पर ज़ोर: उद्योग की आवश्यकता इन चुनौतियों से निपटने के लिए व्यावसायिक और तकनीकी शिक्षा पर ज़ोर देना चाहिए। इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि युवा उद्योग और व्यवसाय की वर्तमान आवश्यकताओं के अनुरूप अपने कौशल का विकास कर सकें। जब युवा सही कौशल से लैस होंगे, तभी वे तेज़ी से बदलती वैश्विक और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में सफलतापूर्वक योगदान दे पाएंगे। ​बेरोज़गारी के आँकड़े: देश और बिहार की स्थिति ​बेरोज़गारी, विशेष रूप से युवा बेरोज़गारी, एक गंभीर राष्ट्रीय समस्या है। हाल के आँकड़ों (मई 2025 तक) के अनुसार, भारत की बेरोजगारी दर बढ़कर 5.6% हो गई, जो पिछले महीने (अप्रैल) की 5.1% दर से अधिक है। चिंता की बात ...

माँ: मानवता की आद्य-सृजक ! - प्रो प्रसिद्ध कुमार।

Image
    ​जीवन के इस विराट रंगमंच पर, जहाँ हर प्राणी एक भूमिका निभाता है, वहाँ मनुष्य होने का गौरव हमारी माताएँ ही प्रदान करती हैं। यह मात्र एक जैविक सत्य नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक नींव है कि हमें बुनियादी तौर पर 'मनुष्य' बनाने में हमारी जननियों का ही महत्तर योगदान रहा है। ​देखा जाए तो, केवल मनुष्य रूप में जन्म लेना मनुष्यता का प्रमाण नहीं है। यह तो प्रकृति का एक विधान है। असली चुनौती तो उस नश्वर देह में एक उदात्त, संवेदनशील और सुसंस्कृत आत्मा का संचार करना है। हमें मनुष्य होने के नाते, अपने व्यक्तित्व के अंतरंग में उन दिव्य गुणों को समाहित करना पड़ता है जो हमें पशुता से ऊपर उठाकर देवत्व के समीप ले जाते हैं। ​और इस गहन, अलौकिक प्रक्रिया की अधिष्ठात्री केवल माँ है। वह शिल्पकार है जो हमें कच्ची मिट्टी से तराशकर एक कलाकृति का रूप देती है। माँ ही वह प्रथम गुरु है जो अपने विचारों की शुद्धता से हमारे मानस को सींचती है; अपने संस्कारों की अनमोल धरोहर से हमारी आत्मा को समृद्ध करती है; और अपने मौन, किंतु दृढ़ अनुशासन की सीख से हमारे जीवन को एक सही दिशा और उद्देश्य देती है। ​माँ...

​संघर्ष की पगडंडियाँ: एक कार्यकर्ता की निस्पृह गाथा !- प्रो प्रसिद्ध कुमार।

Image
    ​'गांवों की पगडंडियों से चलकर मैं सत्ता परिवर्तन का साक्षी रहा हूँ' ! ​मेरी यह कथा मात्र एक व्यक्ति के जीवन का ब्यौरा नहीं, बल्कि भारतीय राजनीति के बदलते आयामों पर एक निस्पृह टिप्पणी है। मेरी यात्रा उन कच्ची पगडंडियों से शुरू हुई, जो गाँवों को मुख्यधारा से जोड़ती हैं, और मेरा गंतव्य सत्ता के उच्चतम शिखर तक होने वाले परिवर्तनों का साक्षी बनना रहा है। ​युवावस्था में, जब कॉलेज के गलियारों में स्वप्न पलते थे, मैंने स्वयं को राजनीति के एक साधारण, किंतु संकल्पबद्ध कार्यकर्ता के रूप में समर्पित किया। मैं उन मूक गवाहों में से हूँ, जिन्होंने संघर्ष की तपस्या से गुज़रकर मेरे साथियों को विधानसभा से लेकर लोकसभा तक की महती यात्रा तय करते देखा है। मेरे अनेक सहकर्मी उच्च सदन और निम्न सदन की शोभा बने, मंत्रिमंडल में सुशोभित हुए और दल के सांगठनिक ढाँचे में शीर्षस्थ पद पर पहुँचे। ​मेरी राजनीति की नींव विचारों की मुस्तैदी पर टिकी रही। मेरे लिए राजनीति सिद्धांत थी, सुविधा नहीं। यह मेरा अडिग स्वाभिमान था कि मैंने कभी किसी पद की लालसा में किसी के समक्ष सिफारिश का हाथ नहीं पसारा। मैंने न कभी बड़...

​विकास की दौड़ और भूख की चुनौती !-प्रो प्रसिद्ध कुमार।

Image
    ​प्रत्येक देश विकास के पथ पर अग्रसर होने का दावा करता है। अल्पविकसित देश विकासशील बनना चाहते हैं, वहीं विकासशील राष्ट्र विकसित देशों की श्रेणी में शामिल होने की होड़ में हैं। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सरकारें न केवल प्रयास करती हैं, बल्कि विकास के संदर्भ में अपनी उपलब्धियां और विकास दर के आंकड़े भी प्रस्तुत करती हैं, जिनके आधार पर देश की प्रगति का आकलन होता है। ​हालांकि, जब विकास के दावों के बीच कोई ऐसा आंकड़ा सामने आता है जो यह दर्शाता हो कि देश अभी भी 'भूख' (Hunger) जैसी मूलभूत समस्या का समाधान नहीं कर पाया है, तब विकास के सभी आंकड़े अधूरे और निरर्थक लगने लगते हैं। यह स्थिति विकास की वास्तविक परिभाषा और उसकी समावेशिता पर एक गंभीर प्रश्नचिह्न लगाती है।

शोषण के साये में 'विकास के दूत': बिहार के बैंक मित्रों की अनसुनी व्यथा !

Image
    ​बिहार की धरती पर, जहां हर कदम पर संघर्ष और आशा का दोहराव है, वहां विकास की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी – बैंक मित्र – आज गहरे शोषण के अंधेरे में जी रहे हैं। आपने जो व्यथा व्यक्त की है, प्रिय भाई प्रेम कुमार, वह केवल आपकी नहीं, बल्कि बिहार के लगभग पचास से साठ हज़ार उन कर्मठ लोगों की सामूहिक चीख है, जिन्हें केंद्र और राज्य सरकारों ने बड़ी-बड़ी बिचौलिया कंपनियों के हवाले कर दिया है। ​ये वे लोग हैं, जो प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी 'जन-धन योजना' को घर-घर तक ले गए। ये वे 'दूत' हैं, जिन्होंने गाँव-देहात में वित्तीय समावेशन (Financial Inclusion) का बीज बोया। बैंक की शाखा से मीलों दूर, तपती धूप या कड़कड़ाती ठंड में, ये हमारे बुजुर्गों को पेंशन, माताओं को सरकारी योजनाओं की राशि और किसानों को उनके खातों की सुविधा उपलब्ध कराते हैं। ये बैंक की 'रीढ़' हैं, पर इन्हें 'रीढ़हीन' बनाकर छोड़ दिया गया है। ​आलोचनात्मक अवलोकन: बिचौलियों का 'अंग्रेजी हुकूमत' ​आपकी यह बात शत-प्रतिशत सत्य है कि ये बिचौलिया कंपनियाँ 'अंग्रेजी हुकूमत से भी ज्यादा अत्याचार' करने को आ...

नमकहरामों की वोट की जरूरत नहीं ! - केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ।

Image
  खुद तो जाएगा सनम ,दूसरों को भी ले डूबेगा। यह केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह का बयान है, जो बीजेपी के नेता हैं। जदयू (जनता दल यूनाइटेड), लोजपा (लोक जनशक्ति पार्टी) और हम (हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा) एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) के घटक दल हैं, जिसमें बीजेपी भी शामिल है। इस वक्तव्य से जदयू, लोजपा, हम को नुकसान: अल्पसंख्यक वोटों का ध्रुवीकरण: गिरिराज सिंह का यह बयान अल्पसंख्यक समुदाय (मुख्यतः मुस्लिम) को सीधे तौर पर अपमानजनक लग सकता है। इससे इस समुदाय के वोटों का महागठबंधन (राजद, कांग्रेस आदि) के पक्ष में और मजबूत ध्रुवीकरण हो सकता है, जिससे एनडीए के घटक दलों (जदयू, लोजपा, हम) को इन क्षेत्रों में भारी नुकसान होने की आशंका है। जदयू की 'सेक्युलर' छवि को क्षति: जदयू प्रमुख नीतीश कुमार ने हमेशा एक 'सेक्युलर' और समावेशी नेता की छवि बनाए रखने की कोशिश की है और उनका अल्पसंख्यक समुदाय में भी कुछ हद तक जनाधार रहा है। इस तरह के बयानों से जदयू की उस छवि को गंभीर क्षति पहुँचती है और अल्पसंख्यक मतदाता जदयू से पूरी तरह विमुख हो सकते हैं। साझेदार दलों पर दबाव: जदयू, लोजपा और हम पर अपन...

देश में आय असमानता की विकट स्थिति ! -प्रो प्रसिद्ध कुमार ,अर्थशास्त्र विभाग।

Image
     देश में 1% के पास कुल संपत्ति का 40.1% हिस्सा है।   सबका साथ, सबका विकास का नमूना। भारत में आर्थिक असमानता गंभीर चिंता का विषय बनी हुई है। संपत्ति का संकेन्द्रण: वर्ल्ड इनइक्वलिटी लैब की एक रिपोर्ट (2022-23) के अनुसार, भारत की शीर्ष 1% आबादी के पास देश की कुल आय का 22.6% हिस्सा है, जो 1922 के बाद का उच्चतम स्तर है। इसी शीर्ष 1% के पास कुल संपत्ति का 40.1% हिस्सा है। गरीबी और अभाव: ऑक्सफैम की रिपोर्ट बताती है कि भारत की एक फीसदी आबादी के पास देश की 40 फीसदी संपत्ति है। यह बढ़ती असमानता दर्शाती है कि आर्थिक विकास का लाभ समान रूप से वितरित नहीं हो रहा है। इसके अलावा, स्वास्थ्य देखभाल लागत के कारण हर साल लाखों लोग गरीबी की ओर धकेल दिए जाते हैं। सकारात्मक संकेत (एसबीआई रिपोर्ट): एक अन्य दृष्टिकोण (एसबीआई रिपोर्ट) यह भी है कि ₹5 लाख तक की सालाना आमदनी वाले लोगों के लिए आय असमानता (कवरेज में) में वित्त वर्ष 2013-14 और 2022-23 के बीच 74.2% तक की कमी आई है। यह निम्न आय वर्ग तक सरकारी प्रयासों के पहुंचने का संकेत देता है। वैश्विक तुलना में कम प्रति व्यक्ति आय भारत दु...

अलविदा! एक जन-नेता का सफर हुआ पूरा: प्रोफेसर वसीमुल हक़ 'मुन्ना नेता' नहीं रहे !

Image
    सूत्रधार परिवार ने गहरी संवेदना व्यक्त की। ​आज खगौल, दानापुर, और पटना के राजनीतिक और सामाजिक गलियारों में एक गहरा शून्य छा गया है। हमारे बीच अब प्रोफेसर वसीमुल हक़, जिन्हें प्यार से लोग 'मुन्ना नेता' के नाम से जानते थे, नहीं रहे। उनका जाना सिर्फ उनके परिवार के लिए ही नहीं, बल्कि उन सभी लोगों के लिए एक अपूरणीय क्षति है, जिनकी आवाज़ वह बनकर उभरे थे। सूत्रधार के महासचिव नवाब आलम व कार्यक्रम आयोजक प्रो प्रसिद्ध कुमार ने गहरी संवेदना व्यक्त की है। ​प्रोफेसर वसीमुल हक़ का राजनीतिक सफर युवा कांग्रेस से शुरू हुआ था, जहां उन्होंने ज़मीनी स्तर पर काम करना सीखा। अपनी मेहनत, लगन और लोगों से सीधे जुड़ाव के कारण, वह जल्द ही पहचान बनाने में सफल रहे। हाल के दिनों में, वह लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल (RJD) की अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ में एक सक्रिय और प्रभावशाली नेता थे। उनका समर्पण अल्पसंख्यकों के हक़ और विकास के लिए हमेशा अटल रहा। ​ विरासत का मजबूत आधार ​मुन्ना नेता जी की जड़ें बहुत गहरी और प्रतिष्ठित थीं। ​उनके पिता, डॉ. हफ़ीज़ुल हक़, खगौल, फुलवारी शरीफ, पुनपुन, दानापुर, बिहटा, मनेर, नौबतपुर और पटना ...

जनसुराज सत्ता का साइलेंट किलर ! प्रो प्रसिद्ध कुमार।

Image
  दानापुर में जनसुराज को नॉमिनेशन से बलपूर्वक रोकना भाजपा का हताशा का परिचायक। ​राजनीति में 'तीसरा मोर्चा' (Third Front) अक्सर चुनावी नतीजे बदल देता है। यह खुद जीते या न जीते, लेकिन मुख्य पार्टियों के हार-जीत का फैसला जरूर करता है। बिहार विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज इसी भूमिका में है। ​जन सुराज को चुनावी पंडित भले ही 'वोट कटवा' कहें, लेकिन वह दोनों बड़े गठबंधनों के लिए बड़ा सिरदर्द बन चुका है। ​ कौन है जन सुराज का वोटर? ​जन सुराज की ताकत उन वोटरों में है जो NDA और INDIA गठबंधन, दोनों से नाराज हैं। ​असंतुष्ट वोटर: ऐसे वोटर जो मौजूदा सरकार (NDA) से और विपक्ष (INDIA गठबंधन) के पुराने राजनीतिक तरीके से खुश नहीं हैं, वे सीधे जन सुराज की ओर जा रहे हैं। ​बाग़ी नेताओं का विकल्प: दोनों मुख्य पार्टियों से टिकट न मिलने वाले बाग़ी नेता और कार्यकर्ता जन सुराज को एक मजबूत मंच मानकर चुनाव लड़ रहे हैं। ​शिक्षित वर्ग की पसंद: प्रशांत किशोर की 'सुशासन' और 'विकास' की बातें युवाओं और पढ़े-लिखे वर्ग को आकर्षित कर रही हैं। ​दानापुर का संकेत ​दानापुर में वैश्य...

"करो या मरो" का संग्राम: स्वाभिमान ही सच्चा शस्त्र !-प्रो प्रसिद्ध कुमार।

Image
  ​जीवन एक महा-संग्राम है, और इस रणभूमि में, प्रत्येक संघर्ष - चाहे वह राजनीति की बिसात हो या जीवन का कोई अन्य मोर्चा - केवल एक ही सिद्धांत पर लड़ा जाता है: करो या मरो! यह केवल एक विकल्प नहीं, बल्कि एक ध्रुव सत्य है। कोई भी लड़ाई, चाहे उसका आयाम कुछ भी हो, पूरी ताक़त, संपूर्ण ऊर्जा और अखंड संकल्प के साथ लड़ी जानी चाहिए। ​युद्ध के मैदान में शत्रु की फुसफुसाहटें, उसके विचार, उसकी आलोचनाएँ - ये सब अर्थहीन हैं। उनका कोई मूल्य नहीं है। असली मूल्य है आपके अपने स्वाभिमान का। जो व्यक्ति अपने आत्म-गौरव को गिरवी रखकर जीता है, वह जीवित होते हुए भी मृत के समान है। इससे कहीं बेहतर है कि हम संघर्ष की ज्वाला में कूद पड़ें और लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हों। ​यही वह अदम्य भावना थी जिसने हमारे देशभक्तों के हृदय को प्रज्वलित किया। यदि यह अग्निशिखा उनमें न होती, तो स्वतंत्रता का सूर्योदय कभी न होता। यह एक कटु सत्य है कि सत्ता अपने आप नहीं बदलती। बदलाव एक सहज प्रक्रिया नहीं है; यह महान त्याग, बलिदान और अथक संघर्ष की माँग करता है। ​ भय और मोह का परित्याग ​एक योद्धा के मार्ग में डर और शर्म का कोई स्थान...

RJD के चुनावी गीतों के कुछ दमदार मुखड़े बजते सुना पूजा पंडालों में।

Image
    ​"लालू बिना चालू ई बिहार न होई..." आज कई गांवों में दीपावली के अवसर पर घूमते हुए गया जहां लोग स्वेच्छा से लालू तेजस्वी के गीत पूजा पंडालों में सुनने को मिला। इसी से अंदाजा लगा कि लालू जी को प्रचार प्रसार करने की ज्यादा जरूरत नहीं है, इनके वोटरों में खुद उत्साह है। ​RJD के गीत अक्सर भोजपुरी और ठेठ बिहारी अंदाज़ में होते हैं, जो सीधे जनता से जुड़ते हैं। यहां कुछ प्रमुख गीतों के मुखड़े दिए गए हैं: " मूंछ   ऐंठी करेला फुटनिया ,ये बबुआ लालू जी के देनिया .." ​"लालू बिना चालू ई बिहार न होई..." ​संदेश: यह गीत स्पष्ट रूप से लालू यादव को बिहार की राजनीति का अपरिहार्य हिस्सा बताता है और संदेश देता है कि उनके बिना बिहार की राजनीतिक गाड़ी आगे नहीं बढ़ सकती। ​"तेजस्वी के बिना सुधार न होई..." ​संदेश: यह लाइन तेजस्वी यादव को युवा नेता और बदलाव का चेहरा बताते हुए, उनके नेतृत्व में ही राज्य में विकास और सुधार संभव होने का दावा करती है। ​"तेजस्वी ही आएंगे, तेजस्वी अबकी रोशन सवेरा..." ​संदेश: यह RJD का एक प्रमुख थीम सॉन्ग है, जो तेजस्वी को केंद्र में रख...

निजी निवेश पर ग्रहण: विश्वास की कमी और अनिश्चितता का साया !-प्रो प्रसिद्ध कुमार।

Image
      ​उद्योग-सरकार के बीच 'भरोसे की खाई', निवेशकों का निराशाजनक व्यवहार: संकट में भारत की विकास गाथा  !    निजी पूँजी के भारत में निवेश करने से कतराने का सबसे बड़ा कारण सरकार और उद्योग जगत के बीच विश्वास की कमी है। नीतिगत अस्थिरता, अप्रत्याशित नियामक बदलाव, या उद्योग-अनुकूल माहौल की कमी के कारण निवेशक हिचकिचा रहे हैं।  वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए अपने "तरकश के हर तीर का इस्तेमाल" किया है।  सरकार ने कर कटौती, प्रोत्साहन पैकेज या अन्य नीतिगत उपायों के माध्यम से प्रयास किए हैं। वित्त मंत्री की "मिन्नतों और चेतावनियों" का कोई असर नहीं हुआ है, जिसका अर्थ है कि सरकारी प्रयास बाजार की वास्तविक आशंकाओं और संरचनात्मक कमियों को दूर करने में विफल रहे हैं। ​भारतीय निवेशकों का वर्तमान व्यवहार बाजार में मौजूदा जोखिम और अनिश्चितता को उजागर करता है। निवेशक अब निवेश के बजाय निम्न गतिविधियों को प्राथमिकता दे रहे हैं: ​नकदी जमा अनिश्चितता के कारण पूँजी को तरल रूप में रखना पसंद करना। बाजार में अनुकूलता आने तक सक्रिय निवेश को टालना...

अर्थव्यवस्था से पहले 'मानव' में निवेश": विकसित राष्ट्रों की असली सफलता का सूत्र!-प्रो प्रसिद्ध कुमार।

Image
    राजनेताओं का 'अर्थव्यवस्था' पर अत्यधिक ज़ोर बनाम 'मानव पूंजी' में निवेश की अनदेखी ! विकसित देशों में सरकारी स्कूल ऐसी उच्च गुणवत्ता के हैं कि वे भारत के निजी स्कूलों  से भी बेहतर हैं।  इसी तरह, विकसित देशों के सरकारी अस्पताल हमारी निजी अस्पतालों से बेहतर सुविधाएँ और सेवाएँ प्रदान करते हैं।  भारत ने, पता नहीं क्यों, इन बुनियादी सामाजिक क्षेत्रों—सार्वजनिक शिक्षा और सार्वजनिक स्वास्थ्य—पर वह अपेक्षित ध्यान नहीं दिया है, जितना देना चाहिए था।  भारत की विकास रणनीति में मानव पूंजी को विकसित करने में प्राथमिकता की गंभीर कमी रही है। यह निवेश न केवल सामाजिक न्याय के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह दीर्घकालिक आर्थिक विकास  का भी आधार है, क्योंकि स्वस्थ और शिक्षित नागरिक ही सशक्त अर्थव्यवस्था का निर्माण करते हैं। विकसित राष्ट्रों ने पहले अपने नागरिकों को सशक्त बनाया, और यह उनकी आर्थिक सफलता का मूल कारण बना।

एक लोक गायक की गाथा: रामेश्वर गोप, माटी के संगीत के मर्मज्ञ !-प्रो प्रसिद्ध कुमार।

Image
    ​बिहार की सारण जिले की माटी, जहाँ की हवा में गीतों की मिठास घुली है, वहीं से निकलकर आए हैं लोकगायक रामेश्वर गोप। उनकी कहानी केवल एक गायक की नहीं, बल्कि उस लोक संस्कृति की धड़कन है, जिसे उन्होंने अपनी आवाज़ से जीवंत कर दिया है। 4 जनवरी, 1982 को जन्में रामेश्वर गोप का जीवन संघर्ष, समर्पण और संगीत के प्रति अटूट प्रेम का एक अद्भुत संगम है। ​🛤️ कोयलरी की आंच से निकली लोकगीत की लौ ​रामेश्वर गोप के जीवन का आरंभिक अध्याय उनके पिता के परिश्रम की गाथा कहता है। उनके पिता ने पश्चिम बंगाल की कोयला खदानों (कोइलवरी) में लगभग 40 वर्षों तक कठोर श्रम किया और वहीं से सेवानिवृत्त हुए। यह वह संघर्ष है जो रामेश्वर की गायकी में एक गहरी संवेदनशीलता और यथार्थ का पुट जोड़ता है। दूर कोयलरी में बिताए पिता के वर्ष, शायद उन्हें माटी से और भी गहराई से जोड़ गए। यह अहसास कि जीवन की सच्ची धुनें और कहानियाँ गाँव, खेत और खदानों में ही बसती हैं—इसी ने उन्हें लोक संगीत का साधक बना दिया। ​🎤 भोजपुरी की सुगंध और प्रतिभा का सफर ​रामेश्वर गोप ने भोजपुरी और मगही लोकगीतों को जिया है। उनकी रग-रग में यह बोली बसती है, औ...

सिंहासन की हवस: जब 'सेवा' का जुनून 'टिकट' के लिए चीत्कार बन जाता है! -प्रो प्रसिद्ध कुमार।

Image
    चुनाव का मौसम नहीं, यह तो टिकट-मंथन का काल है! और इस मंथन से जो विष निकलता है, उसे 'जनसेवा' का नाम दिया जाता है। अहा! क्या दृश्य है! एक ओर सियासी संत हैं, जिनके मुखमंडल पर त्याग और तपस्या का दिव्य तेज है—लेकिन यह तेज तब तक ही है जब तक कि टिकट की पर्ची उनके हाथ में न आ जाए। पार्टी कार्यालय के बाहर का मंजर देखिए: यह कोई अखाड़ा नहीं, बल्कि विधवा विलाप का मंच है! जनसेवा का भूत जब मेवा खाने की तीव्र लालसा से टकराता है, तो ऐसे ही हृदय-विदारक नज़ारे जन्म लेते हैं। एक 'जनसेवक' टिकट न मिलने पर धरने पर क्या बैठा है, मानो उसके पुरखों की सात पुश्तों की विरासत छीन ली गई हो!  ढोंगियों के कुछ उद्धरण देखें - "मैंने इस दल के लिए अपनी बीवी के गहने बेच दिए!" "दस साल से दरी बिछाई है, अब क्या गधे को टिकट दोगे?" "बिना टिकट तो मैं कंगाल होकर सड़क पर आ जाऊँगा—ये तो मेरी अंतिम उम्मीद थी!" कोई गधे की तरह लोट-पोट हो रहा है, अपने ब्रांडेड कुर्ते को फाड़कर गरीबी और त्याग का कृत्रिम नाटक रच रहा है। कोई अनर्गल प्रलाप कर रहा है, "लूटने और लुटाने" की कसमें खा...

बस यही अपराध मैं हर बार करता हूँ आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ

Image
   1970 बनी 'पहचान ' फ़िल्म की यह गीत आज सबसे ज्यादा समसामयिक बन गया है। इसके गीतकार नीरज ,संगीत जयकिशन की ,कर्णप्रिय है। एक खिलौना बन गया दुनिया के मेले में कोई खेला भीड़ में कोई अकेले में मित्रता करना हर स्वीकारोक्ति है आदमी हूं आदमी से प्यार करता हूं... मैं बसाना चाहता हूँ स्वर्ग धरती पर आदमी जिस में रह रहा है बस आदमी बनकर उस नगर की हर गली तय करता हूँ आदमी हूं आदमी से प्यार करता हूं... मैं बहुत नादान करता हूं ये नादानी बेच कर खुशियाँ खरीदूँ आँख का पानी हाथ खाली हैं मगर व्यापार करता हूँ आदमी हूं आदमी से प्यार करता हूं...

सिंहासन का सौदागर ! ( कविता )- प्रो प्रसिद्ध कुमार।

Image
  ​क्यों बदलता तू बारंबार निज पाला? क्या ज़मीर तेरा ही शीत से गल गया? या राजसिंहासन को ही पाले ने मारा? सत्ता की तृष्णा में यह कैसा बदलाव मिला! ​बनने चला था नायक तू राष्ट्र की खातिर, समय ने पर, तमाशाई, जोकर बना छोड़ा। हमने देखे तेरे सुर बदलते पल-पल, देखा बदला चाल, बदला वाणी का पारा। कुर्सी के मोह में, तू बन गया घनचक्कर, गिरगिट से भी तेज़, रंग बदलते देखा! ​बस! अब और नहीं! जनता ने हक़ीक़त जानी, तेरी कपटी फ़ितरत का मर्म पहचान लिया। अब शेष है केवल मुख की हार तुम्हें, होना पड़ेगा अब जन-सैलाब के आगे पानी-पानी। बहुत हो चुका यह मसल और मनी का खेल, अब हर षड्यंत्र पर लगेगा कठोर ताला! ​क्यों बदलता तू बारंबार निज पाला? न कहीं निष्ठा बची, न कोई नीति है तेरी। न चित्त में सुंदरता, न चरित्र में बल, न कोई हित तेरा, न कोई मीत है सच्चा। केवल स्वार्थ है, सम्पदा के लिए यह अर्थ, बाकी सब जग में तेरे लिए है व्यर्थ!

लोकतंत्र के हाशिये पर आम आदमी: एक आलोचनात्मक विमर्श!- प्रो प्रसिद्ध कुमार।

Image
    यह विडंबना है कि जिस देश ने लोकतंत्र, समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता के महान आदर्शों को अपने संविधान की नींव बनाया, आज वह पूंजीवाद, परिवारवाद, और अपराधीकरण की गहरी खाई में धंसता जा रहा है। भारतीय राजनीति का वर्तमान परिदृश्य उस दर्पण के समान है, जिसमें हमें अपने लोकतांत्रिक स्वास्थ्य का गिरता हुआ प्रतिबिंब दिखाई देता है।  'जिताऊ उम्मीदवार' का मायाजाल और आदर्शों की तिलांजलि  आज अधिकांश राजनीतिक दल विचारधारा या चरित्र के बजाय केवल 'जिताऊ उम्मीदवार' की तलाश में हैं। चुनावी जीत ही एकमात्र पैमाना बन गई है, जिसके सामने उम्मीदवार का आपराधिक रिकॉर्ड, नैतिक आचरण या लोकहित के प्रति उसकी प्रतिबद्धता गौण हो जाती है। यह प्रवृत्ति सीधे तौर पर उन ईमानदार कार्यकर्ताओं और आम नागरिकों के मनोबल को तोड़ती है, जिन्होंने दशकों तक दल के लिए निःस्वार्थ भाव से काम किया है। कर्मठ कार्यकर्ताओं की उपेक्षा: जो लोग अपनी पूरी उम्र पार्टी को देते हैं, उन्हें केवल तंगहाली और बदहाली ही मिलती है, जबकि राजनीतिक विरासत वाले लोग या पैसे वाले बाहरी लोग आसानी से सत्ता के शिखर पर पहुँच जाते हैं। यह 'मेहनत...

🪔 दानापुर में साहित्य और कला का सम्मान: एक दीपोत्सव भेंट 🪔!

Image
    ​सत्यमेव ग्रुप रंगकर्मी नवाब आलम व साहित्यकार  ब्लॉगर प्रो प्रसिद्ध कुमार को किया सम्मानित! ​प्रकाश पर्व दीपावली के शुभ अवसर पर, दानापुर की व्यावसायिक भूमि पर एक ऐसा पल आया, जिसने व्यापार और कला के बीच के मधुर संबंध को और गहरा कर दिया। यह सम्मान सिर्फ उपहारों का आदान-प्रदान नहीं था, बल्कि साहित्य, कला और सामाजिक सेवा के प्रति गहरा आदर व्यक्त करने का एक सुंदर माध्यम था। ​सत्यमेव ग्रुप का सम्माननीय प्रयास ​सफल व्यवसायी, समर्पित सोशल वर्कर, और साहित्य व कला प्रेमी के रूप में जाने जाने वाले श्री रंजीत कुमार के नेतृत्व वाली कंपनी, सत्यमेव ग्रुप (Satyamay Group), ने यह प्रेरक पहल की। श्री रंजीत कुमार की दूरदर्शिता और कला के प्रति उनका स्नेह ही इस परंपरा का मूल है। उनके कार्यालय में, कंपनी के हेड और स्टाफ ने मिलकर, उन विभूतियों को दीपावली का उपहार भेंट किया, जिनकी रचनात्मकता बिहार को समृद्ध करती है। ​सम्मानित हस्तियां ​इस वर्ष भी, कार्यालय के शीर्ष और स्टाफ सदस्यों ने दो प्रतिष्ठित हस्तियों को आदरपूर्वक सम्मानित किया: ​जनाब नवाब आलम: बिहार के चर्चित रंगकर्मी और सुप्रसिद...

🤩 महाशक्तिशाली फ़ॉर्मूला: निर्मूला पेन रिलीफ ऑयल 🤩

Image
  क्या आप माँसपेशियों और जोड़ों के दर्द, गठिया, लकवा, सर्वाइकल, साइटिका या घुटनों के असहनीय दर्द से परेशान हैं? अब और नहीं! निर्मूला पेन रिलीफ ऑयल (NIRMULA Pain Relief Oil) के महाशक्तिशाली फ़ॉर्मूला के साथ दर्द को कहें अलविदा! निर्मूला क्यों चुनें? 🌿 12 देश की क़ीमती जड़ी-बूटियों से निर्मित: यह तेल प्रकृति के सर्वोत्तम तत्वों का एक अनूठा मिश्रण है, जिसमें कलौंजी भी शामिल है। 🎯 जड़ से मिटाए दर्द: यह न सिर्फ़ ऊपरी दर्द को शांत करता है, बल्कि गर्दन के दर्द, पीठ के दर्द, अंदरूनी सूजन और साइटिका जैसी समस्याओं की जड़ तक जाकर राहत देता है। ✨ असरदार और विश्वसनीय: एक ISO-9001:2015 प्रमाणित कंपनी ARBINDO HERBAL INDIA PVT. LTD. का भरोसेमंद उत्पाद। 💰 बचत का उपहार: ख़ास ऑफर! हर बोतल पर 20ml Extra Free! देर न करें! जब दर्द करे परेशान,  तब याद करें निर्मूला का नाम!  अपने और अपनों के लिए आज ही आर्डर करें और फिर से एक दर्द-मुक्त, सक्रिय जीवन जिएँ। ऑर्डर के लिए अभी कॉल करें: +91 9334110297 (बिहार एवं झारखंड में तहसील स्तर पर डिस्ट्रीब्यूटरशिप के लिए भी संपर्क करें।)

मन मंदिर: जहाँ आत्मा का वास है !-प्रो प्रसिद्ध कुमार।

Image
   आंतरिक स्वच्छता ही जीवन का सर्वोत्तम श्रृंगार है ​हम सभी अपने घर, अपने आस-पास की दुनिया को स्वच्छ और सुंदर रखना चाहते हैं, पर क्या कभी हमने अपने मन की ओर झाँका है? संत कबीर ने ठीक ही कहा था, "मन चंगा तो कठौती में गंगा।" यह सत्य है कि हमारा मन भी एक पवित्र मंदिर के समान होता है—एक ऐसा देवस्थान जहाँ स्वयं आत्मा निवास करती है। इस मंदिर को भी भौतिक मंदिरों की भांति ही साफ-सुथरा, निर्मल और सुवासित रखना परम आवश्यक है। ​एक भौतिक मंदिर में हम ईंट-पत्थर नहीं, बल्कि श्रद्धा और विश्वास की स्थापना करते हैं। उसी प्रकार, हमारे मन रूपी मंदिर में भी कुछ अमूल्य वस्तुएँ स्थापित करने योग्य होती हैं, जिनका मूल्य संसार के किसी भी खज़ाने से कहीं अधिक है। ​मन-मंदिर के दिव्य आभूषण ​मन रूपी इस अनमोल देवालय को सजाने के लिए हमें सद्गुणों के दिव्य आभूषणों की आवश्यकता होती है। ये आभूषण ही हमारे आंतरिक सौंदर्य और व्यक्तित्व की आभा को बढ़ाते हैं: ​अच्छाई और सच्चाई: ये मन की नींव हैं। जिस तरह एक मंदिर सत्य की बुनियाद पर टिका होता है, उसी तरह हमारे विचार और कर्म भी अच्छाई की रोशनी से जगमगाने चाहिए। ​ करुणा...

जनोपयोगी राजनीति का अभाव: लोकतंत्र के लिए एक गंभीर चुनौती !-प्रो प्रसिद्ध कुमार।

Image
    जो करे  बार -बार जनमत का अपमान , पुनःउसे जनादेश की क्यों दरकार  ? आज भारतीय राजनीति जिस चौराहे पर खड़ी है, वहाँ से जनसेवा का मार्ग धुँधला होता जा रहा है। एक समय था जब राजनीति को त्याग, सिद्धांत और लोक-कल्याण का पर्याय माना जाता था, लेकिन मौजूदा दौर में यह सत्ताभोग और सुविधाभोगी प्रवृत्तियों का शिकार हो चुकी है। सत्ता का आकर्षण और सिद्धांतहीनता  सत्य है कि नीतिविहीन राजनीति एक मृत शरीर के समान है। यह क्षणिक लाभ तो दे सकती है, परंतु इसे न तो लंबी पारी मिल सकती है और न ही जनता के बीच प्रतिष्ठा। राजनीति का मूल आधार जनता की सेवा होना चाहिए, न कि निजी स्वार्थों की पूर्ति। दल-बदल की प्रवृत्ति इसी सिद्धांतहीनता का सबसे बड़ा प्रमाण है। यदि एक या दो बार दल बदलना वैचारिक मतभेद या उपेक्षा का परिणाम हो सकता है, तो बार-बार और अवसर देखकर पाला बदलना स्पष्ट रूप से सत्ता और सुविधा का लालच दर्शाता है। यह प्रवृत्ति न केवल उस विशेष नेता की व्यक्तिगत साख को गिराती है, बल्कि जनमत का भी अपमान करती है, जिसने उसे किसी विशेष विचारधारा के आधार पर वोट दिया था। टिकट खरीद-बिक्री: लोकतंत्र ...

माटी का पुत्र: एक विधायक की सादगी और संघर्ष की गाथा ​फुलवारीशरीफ: जहाँ सपनों ने उड़ान भरी !- प्रो प्रसिद्ध कुमार ।

Image
    ​माले (भाकपा-माले) के गलियारों से उठकर, फुलवारीशरीफ विधानसभा क्षेत्र की माटी से जुड़े एक ऐसे व्यक्तित्व की कहानी, जो सत्ता के चमक-दमक से परे, साधारण जीवन की एक नई परिभाषा गढ़ता है—नाम है गोपाल रविदास। ये औरों की तरह सत्ता व कुर्सी के लिए नीतियों व सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया, दल बदल तो दूर की बात है और यही चरित्र की चर्चा पूरे क्षेत्र में है जो विश्वसनीयता को बरकरार रखा है। ​ संघर्ष की नींव पर खड़ा जीवन ​वर्ष 1987 में पटना विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त करने वाले गोपाल रविदास जी ने केवल किताबी ज्ञान अर्जित नहीं किया, बल्कि जीवन के कठोर अनुभवों से भी बहुत कुछ सीखा। वह आज भी उसी गैंरमजरुआ (सरकारी गैर-खेतिहर) जमीन पर बने मकान में निवास करते हैं, जो उनके सादे जीवन और जन-जुड़ाव का प्रतीक है। यह कोई साधारण निवास नहीं, बल्कि उस जन-प्रतिनिधि का विनम्र आश्रम है, जिसने सत्ता के वैभव को ठुकराकर सादगी को अपनाया है। ​"सच्चे नेता का घर ईंट-सीमेंट का नहीं, बल्कि जनता के दिलों में बना होता है।" ​उनकी संपत्ति का विवरण भी उनके नैतिक बल का प्रमाण है। उनकी धर्मपत्नी ममता जी,...

चुनावी रणभेदी: फुलवारी से 'लाल' प्रत्याशी का शंखनाद! प्रो प्रसिद्ध कुमार।

Image
    गोपाल रविदास ने भरा नामांकन; जनसैलाब के बीच विकास और परिवर्तन की हुंकार ! ​फुलवारी शरीफ की धरती पर आज एक नई चुनावी ऊर्जा का संचार हुआ। महागठबंधन समर्थित भाकपा (माले) के जुझारू प्रत्याशी, श्री गोपाल रविदास, ने फुलवारी (188-अ.जा.) विधानसभा क्षेत्र से अपना नामांकन पत्र दाखिल कर, चुनावी समर का विधिवत आग़ाज़ कर दिया है। यह महज़ एक कागज़ी प्रक्रिया नहीं, बल्कि विकास और जनसेवा के प्रति उनके अटूट समर्पण का एक और प्रमाण था। नामांकन के इस महत्वपूर्ण क्षण में, उनके साथ उनके प्रस्तावक, श्री विजय केवट एवं श्री गुरुदेव दास, कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहे। ​जनसभा में गूँजी परिवर्तन की ललकार ​नामांकन के उपरांत, एस.के. मैरेज पार्क, फुलवारी शरीफ में आयोजित विशाल जनसभा का दृश्य देखते ही बनता था। जनसैलाब उमड़ पड़ा था, जो न केवल गोपाल रविदास के प्रति जनता के भरोसे को दर्शाता है, बल्कि वर्तमान व्यवस्था से मुक्ति की सामूहिक इच्छा को भी अभिव्यक्त करता है। ​जनसभा को संबोधित करते हुए, विधायक श्री गोपाल रविदास ने आत्मविश्वास से भरी हुंकार भरी। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा, "इस बार हम पहले से कहीं अध...

दानापुर विधानसभा: सुजीत कुमार सिन्हा का संघर्ष और पार्टी की बदलती निष्ठा !

Image
    ​यह वृतांत आजीवन सेवा और त्याग करने वाले भाजपा कार्यकर्ताओं के प्रति पार्टी के व्यवहार पर गंभीर सवाल उठाता है। यह आरोप लगाया गया है कि पार्टी ने विचारधारा के लिए परम त्याग करने वाले कार्यकर्ता का अपमान किया है और कुछ व्यक्तियों को उनकी कथित बेईमानी और अपराधिक संपर्कों के बावजूद इनाम दिया है। ​राम कृपाल यादव पर गंभीर आरोप और दानापुर का 'जंगलराज' ​भय और टिकट वापसी (2002): दावा किया गया है कि राम कृपाल यादव के कथित 'जंगलराज' के डर से, तत्कालीन महामहिम राज्यपाल श्री गंगा प्रसाद जी ने दानापुर विधानसभा से प्राप्त टिकट को रातों-रात लौटा दिया था। इसके बाद, देर रात स्वर्गीय सत्यनारायण सिन्हा जी को टिकट दिया गया था। ​चुनाव में हिंसा: आरोप है कि जब तक यह व्यक्ति राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के साथ था, दानापुर में हर चुनाव में बमबाजी होती थी। ​2014 के बाद की स्थिति: राम कृपाल यादव के 2014 में पार्टी में आने के बाद बमबाजी रुकने का दावा किया गया है। हालांकि, साथ ही यह भी आरोप है कि उनके आते हीं, उनके पति के हत्यारे को एक व्यापारी को ठग कर रीतलाल को विधान परिषद का सदस्य बनाया गया। ​201...

जनसेवा का धर्म और एक-एक वोट का महात्म्य !प्रो प्रसिद्ध कुमार

Image
​जय तेजस्वी! तय तेजस्वी!  ​यह अकाट्य सत्य है कि लोकतंत्र के यज्ञ में एक-एक वोट और एक-एक सीट का अपना अलौकिक महत्व है। राजनीति केवल अंकगणित नहीं, यह राष्ट्र के भविष्य की आधारशिला है। किसी भी राजनीतिक दल के कार्यकर्ता और नेतृत्व का यह परम धर्म है कि वे अपने दल और गठबंधन के प्रति पूर्ण निष्ठा और वफ़ादारी रखें। ​व्यक्तिगत स्वार्थ की पूर्ति हेतु, 'आज यहाँ और कल वहाँ' की अस्थिर नीति राजनीति की मूल आत्मा का हनन करती है। बेशक, यह संभव है कि स्थानीय स्तर पर किसी कर्मठ कार्यकर्ता या नेता को उपेक्षा का दंश झेलना पड़ा हो; इन छोटी-मोटी कटुताओं को संवाद की मेज पर बैठकर दूर किया जा सकता है। वसीम बरेलवी ने ठीक ही कहा है: ​"वो झूठ बोल रहा था बड़े सलीक़े से, मैं ए'तिबार न करता तो और क्या करता।" ​किंतु, क्षणिक मनमुटाव या तल्खी से भला क्या हासिल होगा? याद रखें, एकता ही बल है। यह सिद्धांत जीवन के हर क्षेत्र में लागू होता है। आपसी फूट का अर्थ है – स्वयं को निर्बल करना। ​📜 सिद्धांतों की तपस्या और चरित्र की पूंजी ​कोई भी महान दल नीतियों और सिद्धांतों के रथ पर आरूढ़ होकर ही आगे बढ़ता है। ...