Posts

Showing posts from November, 2025

'पड़ोसी धर्म' और बदलता जीवन। 'पड़ोसी धर्म': कल और आज।

Image
    ​एक समय था जब 'पड़ोसी' हमारे जीवन का अभिन्न अंग हुआ करता था।  'पड़ोसियों से सगा दूसरा कोई और नहीं'?"। यह भावना दर्शाती थी कि पड़ोसी केवल भौगोलिक दूरी पर रहने वाले लोग नहीं थे, बल्कि सुख-दुख और जीवन की हर खुशी-गम में साझेदार थे। ​पहले का जीवन: पड़ोस की महिलाएँ काम में हाथ बँटाती थीं, दुख-सुख में भागीदारी करती थीं, और दिवाली के पटाखों से लेकर तीज-त्योहारों तक, सब मिलकर मनाते थे। किसी के बीमार होने पर 'पड़ोसी डॉक्टर' के पास जाना भी एक मानवीय बंधन का प्रतीक था। ​आज का जीवन: आज की 'फ्लैट संस्कृति' और 'एकाकी जीवन' ने इस रिश्ते को बदल दिया है। आज हमें यही नहीं पता होता कि हमारे पड़ोस में कौन रह रहा है। मोबाइल और इंटरनेट के इस युग में, हम पड़ोस की भावना को 'तुच्छ' और अनावश्यक समझने लगे हैं। ​ सांस्कृतिक उथल-पुथल और अकेलापन रिश्ते केवल 'काम-काज' तक सीमित हो गए हैं, और शादियाँ जो पहले पंद्रह-बीस दिन तक चलती थीं, वे अब दो दिन में 'निपटा दी जाती हैं'। ​"आज का दौर सांस्कृतिक उथल-पुथल को और लेता जा रहा है और इसके लिए हम ही...

'बाड़ ही खेत को खाने लगे': बिहार में 'नशाखोरी' का नया गोरखधंधा, सूखा नशा और दवा माफिया!

Image
     ​- शराबबंदी के बावजूद युवा 'नशे' के जाल में, सरकार और प्रशासन पर गंभीर सवाल। ​बिहार में शराबबंदी को एक क्रांतिकारी कदम के रूप में लागू किया गया था, जिसका उद्देश्य राज्य को 'नशामुक्त' बनाना था। लेकिन, इस जनहितकारी पहल के बावजूद, आज राज्य की युवा पीढ़ी एक नए और खतरनाक नशे के गोरखधंधे की गिरफ्त में है। जहाँ दवा विक्रेता (ड्रग पेडलर्स) और अवैध कारोबारी मिलकर युवा वर्ग को 'सूखे नशे' और नशीली दवाओं की लत लगा रहे हैं। यह स्थिति शराबबंदी की सफलता पर ही नहीं, बल्कि प्रशासन की नीयत और कार्यशैली पर भी गंभीर सवाल खड़े करती है। ​ 'नया गोरखधंधा': दवा विक्रेता बने नशे के सौदागर यह स्पष्ट है कि नशीली दवाओं की आपूर्ति का एक खतरनाक चक्र चल रहा है: ​षड्यंत्र में संलिप्तता: कई दवा विक्रेता इस अवैध कारोबार में सीधे तौर पर संलिप्त हैं। ​सांठगांठ और खरीद: युवा इन्हीं विक्रेताओं से सांठगांठ करके नशे वाली दवाइयाँ खरीदते हैं। ​दस गुना मुनाफा: इन दवाओं को 10 गुना ज़्यादा दाम पर नशे के आदी लोगों को बेचा जाता है, जिससे यह एक उच्च मुनाफे वाला संगठित अपराध बन चुका है। ​निशाने पर ...

बिहार की '10 हजारी' योजना: चुनावी दान या वित्तीय बोझ?

Image
   भारत के  इतिहास में पहली बार सरकार द्वारा  10-10 हजार रुपये में वोट खरीदी गई है-पी के। वर्तमान में भी बिहार सरकार प्रतिदिन ₹63 करोड़ से अधिक का ब्याज चुका रही है। ​जन सुराज पार्टी के नेता प्रशांत किशोर ने बिहार के हालिया विधानसभा चुनाव परिणामों के संदर्भ में एक तीखा बयान दिया है, जिसमें उन्होंने सीधे तौर पर सत्ताधारी दल पर '10-10 हजार रुपये में वोट खरीदने' का आरोप लगाया है। उनका इशारा स्पष्ट रूप से मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना की ओर है, जिसके तहत पात्र महिलाओं के खाते में ₹10,000 की पहली किस्त भेजी गई है और बाद में ₹2 लाख तक की अतिरिक्त सहायता का वादा किया गया है। ​प्रशांत किशोर ने अगले 18-20 महीनों का प्लान बनाते हुए घोषणा की है कि उनकी पार्टी उन महिलाओं को ₹2 लाख की शेष राशि दिलाने के लिए अभियान चलाएगी, जिन्हें पहली किस्त मिल चुकी है। यह कदम एक राजनीतिक दबाव बनाने की रणनीति है, लेकिन इसका सीधा असर बिहार की नाजुक वित्तीय स्थिति पर पड़ सकता है। ​ योजना का वित्तीय बोझ: 10,000 रुपये और 2 लाख रुपये का समीकरण ​मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत, लगभग 1 करोड़ महि...

प्रोफेसर जोसेफ़ की सेवानिवृत्ति: ज्ञान की तपस्या का विराम!-प्रो प्रसिद्ध कुमार।

Image
    ​राम लखन सिंह यादव कॉलेज में चार दशक की गौरवशाली सेवा का समापन! ​चार दशकों तक राम लखन सिंह यादव कॉलेज, अनीसाबाद, पटना के प्रांगण को अपने ज्ञान के आलोक से आलोकित करने वाले प्रोफेसर एस. एस. जोसेफ़ ने सेवाकाल से अवकाश ग्रहण कर लिया है। उनका यह विराम मात्र एक प्रोफेसर की सेवानिवृत्ति नहीं, अपितु कॉलेज के शैक्षणिक गगन में एक तेजस्वी नक्षत्र के ओझल हो जाने जैसा है। ​ 'वटवृक्ष' सा व्यक्तित्व और 'गंगा' सी वाणी ​वनस्पति विज्ञान (Botany) के इस प्रखर विद्वान का व्यक्तित्व किसी सुदृढ़ वटवृक्ष के समान था—गहराई और स्थिरता से परिपूर्ण। उनकी वाणी में धाराप्रवाह अंग्रेजी की सरिता बहती थी, जो श्रोताओं को सहज ही अपने साथ बहा ले जाती थी। वे केवल पाठ्यक्रम के ज्ञाता नहीं थे; देश-दुनिया की खबरों को वे तर्क की कसौटी पर कसते थे और उनकी व्याख्या की कला अद्भुत थी। लंबे, सुगठित कद-काठी और सदाचारी रखरखाव (Well-maintained) में रहने वाले प्रोफ़ेसर साहब जब किसी विषय पर बोलते थे, तो वह बात सीधे हृदय के द्वार तक पहुँचती थी। ​उनके जाने से आज कॉलेज का गलियारा सूना-सूना प्रतीत होता है, मानो वीणा का कोई ...

'सूत्रधार' की नाट्य कार्यशाला का भव्य समापन: सृजन और अभिव्यक्ति की नई उड़ान !

Image
    ​दस दिवसीय कला-साधना से छात्र-छात्राओं में हुआ नवजागरण! ​आरा: प्रकृति के स्पंदन के साथ ही, सांस्कृतिक चेतना का एक नया आलोक आरा की धरती पर उतर आया है। जहां वातावरण अभी तक सोया हुआ था, अब वह अंगड़ाई लेकर जागृत हो उठा है। इन दिनों आरा का परिवेश एक अप्रतिम ऊर्जा से ओत-प्रोत है। विगत 12 नवंबर से यहाँ का वातावरण सैकड़ों बच्चों के मधुर संगीत और जीवंत नृत्य की थाप से गुंजायमान रहा। जो बाल-हृदय कल तक कला की विविध विधाओं से अनभिज्ञ थे, आज उन्होंने अपने जीवन में आशा और अभिव्यक्ति के असंख्य रंगों को पहचानना सीख लिया है। ​यह नवजागरण बिहार, पटना की सुविख्यात नाट्य संस्था 'सूत्रधार' द्वारा आयोजित दस दिवसीय निःशुल्क प्रस्तुतिपरक नाट्य कार्यशाला का प्रतिफल है। लगभग 35-40 उत्साही छात्र-छात्राएँ प्रतिदिन यादव विद्यापीठ मध्य विद्यालय, मौलाबाग में कला की इस यज्ञशाला में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे थे। इन बच्चों के स्वर, उनकी वाणी, उनका उल्लास और उनकी आकांक्षाएँ—सब एक लय, एक ताल में समाहित हो चुके हैं। यह अद्वितीय प्रयास 'सूत्रधार' के कर्मठ और वरिष्ठ प्रशिक्षक कलाकारों की अथक साधना का परि...

न्याय की पुकार: क्या नेपाल भागेंगे अपराधी, या गया में होगा पिंडदान? 😢-प्रो प्रसिद्ध कुमार।

Image
   ​–तस्वीर में मृतक के परिजनों को ढांढस बंधाते मा सम्राट जी और मैं। बिहार के गृहमंत्री को एक खुला पत्र: नीरज मुखिया की शहादत और त्रस्त जनता की उम्मीद – ​माननीय गृहमंत्री, श्री सम्राट चौधरी जी, ​यह पत्र सिर्फ़ एक नागरिक का आक्रोश नहीं है, बल्कि उस अंतिम पायदान के त्रस्त लोगों की आवाज़ है, जो आज भी न्याय की बाट जोह रहे हैं। ​आज मुझे वह दिन स्पष्ट रूप से याद है: 14 दिसंबर 2023। हमने एक साथ शहीद नीरज कुशवाहा मुखिया की आदमकद प्रतिमा का अनावरण किया था। उस सभा की अध्यक्षता करने का अवसर मुझे मिला था, और मैंने वहाँ की सामाजिक, राजनीतिक और भौगोलिक सच्चाइयों को बड़ी बारीकी से आपके सामने रखा था। ​ठीक एक साल पहले, 14 दिसंबर 2022 को, सुशासन के दावे वाली सरकार के बीच, फुलवारी प्रखंड के फरीदपुर गाँव में, नीरज मुखिया को उनके आवास पर, दिनदहाड़े सुबह 9 बजे, दर्जनों लोगों के बीच सामंती शक्तियों ने गोलियों से छलनी कर दिया था। ​उस दिन, मेरे उद्गार थे कि "कैसे अंतिम पायदान के लोगों को ख़शी, बकरी की तरह काटा जा रहा है।" यह उक्ति, लोगों के दिलों को झकझोर गई थी। ​आपके प्रत्युत्तर में आपने जो आशा भरी ...

'हास' की ओट में 'ह्रास': मानवीय परिपक्वता का मूल्यांकन। सार्वजनिक उपहास: एक सामाजिक व्याधि।

Image
    विजय का भ्रम और आत्मिक पराजय। ​"कई बार यह प्रवृत्ति समूहों में, कार्यस्थलों पर, या मित्र मंडली के सहज वातावरण में भी परिलक्षित होती है कि किसी व्यक्ति की निजी कमी को सबके सामने उजागर कर उसे हास्य का विषय बना दिया जाता है। यह कृत्य क्षणिक मनोरंजन की आपूर्ति अवश्य करता है, किंतु इसके गहरे मानवीय निहितार्थ हैं। यह एक ऐसी सामाजिक व्याधि है, जो संवेदनशीलता के मर्म को क्षीण करती है।" ​यह क्षणिक हास्य उत्पन्न करने वाला कृत्य, वास्तव में, संवेदना का अनादर है। जिस क्षण कोई व्यक्ति दूसरे की निजी त्रुटि या दुर्बलता को 'मंच' प्रदान कर उसे हंसी का पात्र बनाता है, वह अहंकार के तुष्टीकरण में संलग्न होता है। यह एक ऐसा नैतिक दरार है, जो समूह के भीतर विश्वास और सम्मान की नींव को कमजोर करता है। उपहास की यह कला, केवल उस व्यक्ति को ही नहीं आहत करती, जिसे निशाना बनाया गया है, बल्कि यह दर्शकों में भी सहानुभूति के बीजों को सुखा देती है। यह एक छिपा हुआ विषाणु है, जो सौहार्दपूर्ण संबंधों को भीतर से खोखला करता चला जाता है।  उपहास करने वाला व्यक्ति उस क्षण खुद को विजेता समझता है— मानो उसने ...

मैला ढोने की अमानवीय प्रथा: कानून बना, मगर दिल क्यों नहीं बदला?

Image
    ​तकनीक और सम्मानजनक रोज़गार ही एकमात्र रास्ता। ​कानून का जन्म और उसका अधूरा वादा। ​वर्ष 2013 में, केंद्र सरकार ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण कदम उठाया था। उन्होंने 'हाथ से मैला ढोने वाले कर्मचारियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम' लागू किया था। ​उद्देश्य: ​हाथ से मैला ढोने की प्रथा को पूरी तरह समाप्त करना। ​इस काम से जुड़े लोगों को वैकल्पिक रोज़गार, शिक्षा, और एक सम्मानजनक जीवन प्रदान करना। ​यह अधिनियम न केवल एक कानूनी दस्तावेज़ था, बल्कि मानवीय गरिमा सुनिश्चित करने का एक वादा था। मगर, जैसा कि यह लेख दुख के साथ बताता है, इस कानून के बनने के बावजूद यह अमानवीय और खतरनाक प्रथा आज भी जारी है। ​ समस्या सिर्फ प्रशासनिक नहीं, मानसिकता की है! ​हम अक्सर इस विफलता का ठीकरा केवल प्रशासनिक लापरवाही पर फोड़ देते हैं, लेकिन यह समस्या उससे कहीं ज़्यादा गहरी है। लेख में इस बात को सही ढंग से उजागर किया गया है कि इसके पीछे सामाजिक मानसिकता की गहरी जड़ें हैं। ​यह मानसिकता सफाई के काम को किसी खास वर्ग से जोड़कर देखती है, जिससे यह कार्य न केवल एक मजबूरी बन जाता है, बल्कि इससे जुड़े ...

डगर-डगर के रिश्ते: 'यार' और 'पति' की पाँच धुर ज़मीन! ! ( कहानी )- प्रो प्रसिद्ध कुमार।

Image
    ​ ऑटो की सीट पर एक अनसुलझा सवाल ! ​कॉलेज से लौटते वक्त, जब मैं ऑटो की सीट पर बैठा, तो पास बैठी एक महिला ने अचानक एक ऐसा सवाल दागा जिसने मेरे दिमाग़ के तार उलझा दिए। "कोई व्यक्ति दो महीने के लिए 5 धुर ज़मीन मेरे नाम पर एग्रीमेंट कर देगा, तो इसके बाद उस ज़मीन की रजिस्ट्री मेरे नाम पर हो जायेगी न!" ​पहली बार में, मैं उसकी बात का मर्म समझ ही नहीं पाया। मैंने उसका परिचय पूछा। उसने बताया कि उसका मायका और ससुराल, दोनों ही जहानाबाद के किसी गाँव में हैं। मैंने कुछ और जानने की इच्छा जताई, तो उसने एक अजीबो-ग़रीब उदाहरण से बात समझानी शुरू की। ​ऑटो चालक की ओर इशारा करते हुए वह बोली, "ये मेरे पति हैं, और आप मेरे यार हैं।" ​यह सुनते ही मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गई! ​उसने अपनी बात जारी रखी, "पति से तीन बच्चे हैं, वे उनके साथ रहते हैं। और मैं आपके साथ पटना के डेरा पर काम करते हुए, आपके साथ रहने लगी, तो रिश्ते बन गए..." ​ विस्मय, क्रोध और 'पागल' का लेबल ​मैंने बीच में ही उसे सख़्ती से टोका। "तुम पागल हो क्या? तुम अपने पति के सामने मुझे क्या कही जा रही हो, और इस ऑ...

निराशा के कोहरे में छिपी आशा की किरण!

Image
   ​चारों तरफ निराशा की धुंध दिखती है, लेकिन इसी अंधकार के बीच कुछ रोशनी भी है। यह रोशनी कहीं दूर क्षितिज पर नहीं, बल्कि हमारे रोज़मर्रा के जीवन की छोटी-छोटी सफलताओं और बदलावों में मौजूद है। अक्सर हम बड़े-बड़े चमत्कारों या रातों-रात होने वाली क्रांतियों की उम्मीद करते हैं, जबकि असली और स्थायी परिवर्तन की नींव इन्हीं सूक्ष्म पलों में रखी जाती है। ​एक बच्चा जब पहली बार स्कूल में दाखिला पाता है, तो यह केवल एक बच्चे का प्रवेश नहीं होता; यह ज्ञान, अवसर और बेहतर भविष्य की एक पूरी पीढ़ी के लिए एक नए अध्याय की शुरुआत होती है। यह उस परिवार के सपनों का पहला कदम होता है, जिसने गरीबी और अशिक्षा की जंजीरों को तोड़ने का साहस किया है। ​जब एक लड़की जब बिना डर के साइकिल चला पाती है, तो यह सिर्फ़ यातायात का साधन नहीं होता; यह उसकी आज़ादी, आत्मविश्वास और सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ने की शक्ति का प्रतीक बन जाता है। उसके पैडल की हर घुमावट समाज को यह संदेश देती है कि महिलाएँ अब अपनी राहें खुद बनाएंगी, बिना किसी डर या रोक-टोक के। ​और जब एक किसान अपने खेत से उपज लेकर लौटता है, तो यह महज़ अनाज या सब्ज़िय...

प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY): हक़ीक़त और ख़ोखले दावों की दास्तान

Image
    ​सबको घर का नारा: कहाँ है "पक्का घर"? ​वर्ष 2015 में "सबको घर" के महत्त्वाकांक्षी नारे के साथ शुरू की गई प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) का मूल उद्देश्य देश के हर बेघर नागरिक को 2022 तक पक्का घर उपलब्ध कराना था। लेकिन, जैसा कि समय गवाह है, यह लक्ष्य एक कागज़ी वादा बनकर रह गया है। आज जब हम 2025 में प्रवेश कर चुके हैं, तब भी देश में बेघर लोगों की मुश्किलों में कमी आने के बजाय, वे जमीनी हकीकत पर खोखली साबित हो रही हैं। ​विस्तार पर सवाल: PMAY-अर्बन 2.0 की ज़रूरत क्यों? ​2022 की समय सीमा बीत जाने के बाद, सरकार ने लक्ष्य की प्राप्ति के बजाय, योजना का विस्तार करते हुए PMAY-अर्बन 2.0 ला दिया है। यह कदम अपने आप में योजना की असफलता को इंगित करता है। यदि योजना अपने निर्धारित समय में अपने वादों को पूरा करने में सफल होती, तो इस तरह के विस्तार की आवश्यकता ही क्यों पड़ती? यह दर्शाता है कि पहले चरण के लक्ष्य पूरे नहीं हुए हैं, और केवल योजना का नाम और समय सीमा बदलकर जनता के सामने एक नया दावा पेश किया जा रहा है। ​दावे और दस्तावेज़: बेघरों तक पहुँच का अभाव ​सरकार द्वारा अक्सर यह दावा ...

नीतीश कुमार: दसवी बार बिहार के मुख्यमंत्री - एक समीक्षा !

Image
    ​बिहार की राजनीति के 'चाणक्य' कहे जाने वाले नीतीश कुमार ने एक बार फिर दसवीं बार राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली है।  यह शपथ ग्रहण समारोह उन्हें भारतीय राजनीतिक इतिहास के उन चुनिंदा नेताओं की श्रेणी में खड़ा करता है, जिन्होंने लगातार इतने लंबे समय तक और इतनी बार शीर्ष पद संभाला है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन  के बैनर तले उनकी सत्ता में वापसी, उनकी राजनीतिक कुशलता और गठबंधन की राजनीति में उनकी अपरिहार्यता को दर्शाती है। हालांकि, 20 वर्षों के शासन के बावजूद, उनके सामने चुनौतियों का एक अंबार है, जिसका निदान करना उनकी अगली पारी की दिशा तय करेगा। ​ प्रशंसनीय पहलें और उपलब्धियां  ​नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार ने कई मोर्चों पर सराहनीय प्रगति की है, जिसने उन्हें 'सुशासन बाबू' की उपाधि दी है: ​सड़क और बिजली के क्षेत्र में सुधार: बुनियादी ढांचे (Infrastructure) में उन्होंने अभूतपूर्व सुधार किया है। ग्रामीण सड़कों का जाल बिछाया गया और 'हर घर बिजली' योजना ने राज्य के कोने-कोने तक बिजली पहुंचाई, जो पहले एक बड़ी चुनौती थी। ​महिलाओं का सशक्तिकरण: पंचायती राज और ...

भारतीय समाजवाद के भीष्म पितामह: डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा का निधन !

Image
    ​एक युग का अंत! ​भारतीय राजनीतिक और वैचारिक जगत के एक देदीप्यमान सितारे, डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा का 97 वर्ष की आयु में 19 नवंबर 2025 को निधन हो गया। बिहार के मुजफ्फरपुर स्थित उनके पैतृक आवास पर ली गई यह अंतिम सांस, भारतीय समाजवाद के एक महत्वपूर्ण अध्याय के समापन का प्रतीक है। उनके जाने से देश के वैचारिक परिदृश्य में एक ऐसा शून्य उत्पन्न हो गया है, जिसे भर पाना असंभव है। ​ समाजवाद का सबसे पुराना और प्रमुख स्तंभ ​डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा सिर्फ एक चिंतक नहीं थे; वह भारतीय समाजवाद के जीवित इतिहास थे। उन्हें इस विचारधारा के सबसे पुराने और प्रमुख स्तंभों में से एक माना जाता था। उनका लेखन, उनके विचार और उनका सादा जीवन – ये सब भारतीय समाजवाद की मूल आत्मा को दर्शाते थे। ​विरासत और योगदान: उन्होंने अपने दशकों के वैचारिक सफर में समाजवाद के सिद्धांतों को न केवल मजबूती दी, बल्कि उन्हें भारतीय संदर्भ में प्रासंगिक बनाए रखने के लिए लगातार काम किया। ​अंतिम यात्रा: यह एक विडंबना ही है कि जिस मुजफ्फरपुर (मुसहरी) को उन्होंने अपनी कर्मभूमि और चिंतन का केंद्र बनाया, उसी पैतृक घर में उन्होंने दुनिया...

कला: जीवन का परिष्कार! (Art: The Refinement of Life!)

Image
     कला हमारे जीवन को बेहतर, सुंदर और अधिक उत्कृष्ट बनाती है। आंतरिक उद्गम और जीवन की समृद्धि ! ​संभव है कि कला के माध्यम से हर इंसान के जीवन की आर्थिक स्थिति मज़बूत न हो सके, पर यह भी निश्चित है कि कलात्मक सोच हमारे जीवन को हर परिस्थिति में निखार देती है। ​यह सत्य है कि कला केवल मनोरंजन या बाज़ार की वस्तु नहीं है, बल्कि यह मानव जीवन के आंतरिक परिष्कार का एक सशक्त माध्यम है। कला की शक्ति किसी व्यक्ति को भौतिक लाभ पहुँचाने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका प्रभाव मनुष्य की चेतना और उसकी जीवन-दृष्टि पर पड़ता है। ​कला का उद्गम कैनवास, मंच, अथवा कागज़ पर उकेरने से कहीं पहले हमारे मन और विचारों में होता है। यह भीतर से जन्म लेती है और फिर विभिन्न रूपों में अभिव्यक्त होती है। यह कलात्मक दृष्टि ही है जो हमें चुनौतियों के बीच भी सौंदर्य और संतुलन खोजने में सक्षम बनाती है, हमारे जीवन को एक नई आभा और अर्थ प्रदान करती है। यह केवल एक क्रिया नहीं, अपितु जीवन जीने की एक सभ्य और अलंकृत शैली है।

फसल बीमा योजना: सुधार की आवश्यकता और किसानों की अपेक्षाएँ !

Image
    यह योजना, जिसका मूल उद्देश्य किसानों को प्राकृतिक आपदाओं से उत्पन्न संकट से उबारना है, अपने वर्तमान स्वरूप में करोड़ों रुपये का प्रीमियम लेने के बावजूद किसानों के लिए राहत और विश्वास का स्रोत नहीं बन पा रही है, जिससे इसमें व्यापक नीतिगत सुधारों की मांग उठती है। ​1. क्षति आकलन की त्रुटिपूर्ण प्रक्रिया ​लेख का सबसे महत्वपूर्ण आलोचनात्मक बिंदु फसल नुकसान के वास्तविक आकलन की प्रक्रिया से संबंधित है। ​वर्तमान समस्या: फसल नुकसान का निर्धारण केवल उपग्रह (Satellite) से ली गई तस्वीरों पर आधारित होता है। यह एक दूरस्थ और सामान्यीकृत दृष्टिकोण है जो व्यक्तिगत खेत स्तर पर होने वाले वास्तविक नुकसान और उसकी तीव्रता को सटीक रूप से मापने में विफल रहता है। ​आवश्यक सुधार: क्षति निर्धारण की प्रक्रिया में उपग्रह तस्वीरों के साथ-साथ भौतिक सत्यापन (Physical Verification) और उपज परीक्षण (Crop Cutting Experiments) को अनिवार्य रूप से शामिल किया जाना चाहिए। यह सुनिश्चित करेगा कि मूल्यांकन जमीनी हकीकत पर आधारित हो, जिससे प्रभावित किसान को न्यायसंगत मुआवजा मिल सके। ​2. बीमा कंपनियों की जवाबदेही का अभा...

'क्षमा' - तन और मन के लिए वरदान!

Image
  ​ माफ करने की शक्ति: कैसे क्षमा आपको स्वस्थ और खुश रखती है ​जो लोग दूसरों को माफ़ करते हैं, वे न केवल अपने रिश्तों को मजबूत करते हैं, बल्कि मानसिक रूप से भी अधिक स्वस्थ रहते हैं। यह बात विज्ञान और अध्यात्म, दोनों मानते हैं। ​गुस्सा और तनाव: सेहत के दुश्मन ​गुस्सा और नाराजगी, जिन्हें हम अक्सर अनजाने में अपने मन में दबाकर रखते हैं, वे किसी ज़हर से कम नहीं हैं। ये दबी हुई भावनाएं शरीर पर गंभीर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं। ​तनाव (Stress): मन में द्वेष रखने से तनाव का स्तर हमेशा बढ़ा रहता है। ​रक्तचाप (Blood Pressure): यह उच्च रक्तचाप (High BP) का एक बड़ा कारण बन सकता है। ​हृदय रोग (Heart Diseases): लगातार तनाव और उच्च रक्तचाप से हृदय रोगों का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। ​ क्षमा का जादू: एक हल्का मन ​इसके विपरीत, जब आप किसी को दिल से माफ़ कर देते हैं, तो आपका मन एक बड़े बोझ से मुक्त हो जाता है। क्षमा करने का कार्य आपके संपूर्ण स्वास्थ्य को एक नई दिशा देता है: ​मन की शांति: यह मन को हल्का करता है और एक गहरी शांति प्रदान करता है। ​बेहतर नींद: तनाव कम होने से आपकी नींद की गुणवत्ता में सुधार होता ह...

लघु उद्योगों की चुनौतियाँ: वित्त, तकनीक और बाजार तक सीमित पहुँच!

Image
    ​लघु  कंपनियों को अपने परिचालन में कई समस्याओं और चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इनमें सबसे प्रमुख है वित्त की कमी। इन कंपनियों को बैंकों से ऋण प्राप्त करने में भी कठिनाई आती है, और कार्यशील पूंजी की कमी से इनके संचालन में बाधाएँ उत्पन्न होती हैं। ​वित्त के अलावा, अन्य महत्वपूर्ण चुनौतियाँ इस प्रकार हैं: ​तकनीकी अपर्याप्तता: नई तकनीक को अपनाने में समस्या आती है, क्योंकि वे अक्सर महंगी होती हैं, जो उनके सीमित बजट के बाहर होती है। ​कुशल कर्मचारियों का अभाव: योग्य और प्रशिक्षित कर्मचारियों को बनाए रखना इन कंपनियों के लिए मुश्किल होता है। ​प्रतिस्पर्धा: बड़ी कंपनियों से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है। ​बाजार तक सीमित पहुँच: इन कंपनियों की बाजार तक पहुँच अक्सर सीमित होती है। ​बुनियादी ढांचे की कमी: अपर्याप्त बुनियादी ढांचा उनके विकास को बाधित करता है। ​नियामक और कर संबंधी बाधाएँ: विभिन्न सरकारी नियमों और करों का पालन करना एक जटिल कार्य होता है। ​विपणन  की कठिनाइयाँ: अपने उत्पादों या सेवाओं का प्रभावी ढंग से विपणन करना भी एक बड़ी चुनौती है। ​इन चुनौतियों क...

संवेदनशीलता: सच्चे मानव होने का मूलमंत्र!

Image
   ​मनुष्यता की लड़ाई और उसे बचाए रखने वाली शक्ति! ​मनुष्यता को बचाए रखने की लड़ाई हर सभ्यता में दर्ज है। यह संघर्ष सभ्यता के उदय से ही चला आ रहा है। यह हमारे अस्तित्व और मूल्यों की रक्षा का निरंतर प्रयास है। लेकिन, सवाल यह उठता है कि वह कौन-सी अद्वितीय शक्ति है जो हमें इस लड़ाई में सफल बनाती है, जो हमें 'मानव' बनाए रखती है? वह शक्ति है—संवेदनशीलता (Sensitivity)। व्यक्तित्व और व्यवहार में संवेदनशीलता की व्याप्ति ​संवेदनशीलता वह कीमती चीज है जो मनुष्यता को बचाती है और उसे अंत तक बचाए रखती है। यह न केवल एक विचार है, बल्कि हमारे व्यक्तित्व और व्यवहार में कितनी गहराई से समाई हुई है, यह विचारणीय विषय है। ​क्या हम समझते हैं? क्या हम दूसरों के दर्द, उनकी खुशी, और उनकी जरूरतों को महसूस कर पाते हैं? ​क्या हम प्रतिक्रिया करते हैं? क्या हम अपनी संवेदनशीलता को केवल मन में रखते हैं, या हमारे कार्य और व्यवहार उसे दर्शाते हैं? ​यह आकलन करना महत्वपूर्ण है कि हमारी संवेदनशीलता सिर्फ सिद्धांत में है या वह हमारे रोजमर्रा के जीवन को भी प्रभावित करती है। रोजमर्रा की जिंदगी में आत्म-निरीक्षण ​हम अप...

सच्ची उपलब्धि और सत्पात्रता !

Image
    ​हम अपने जीवन में कितना श्रम करते हैं और कितना अर्जन (कमाई) करते हैं, यह चीज़ कोई ख़ास मायने नहीं रखती। ​दरअसल, हमारी सच्ची उपलब्धि यह कहलाती है कि हमने समाज को क्या दिया, परिवार के लिए क्या किया, या फिर देश, संस्कृति, और मानवता के नाम पर कितना योगदान दिया। ​सच्चा व्यक्ति वह है जो केवल अपने लिए नहीं जीता। उसकी सफलता का आकलन इस बात से होता है कि उसने अपने संसाधनों का उपयोग दूसरों के उत्थान और व्यापक भलाई के लिए कैसे किया। ​"हमने समाज को क्या दिया, परिवार के लिए क्या किया या देश, संस्कृति, मानवता के नाम कितना किया, यही उपलब्धि कहलाती है।" ​हम धन, ज्ञान और चरित्र से अच्छे व्यक्ति तब कहे जाएँगे, जब हम इन अमूल्य संसाधनों को पात्र देखकर खर्च करेंगे। ​धन - इसका सही उपयोग स्वयं की ज़रूरतों के बाद, समाज के ज़रूरतमंदों और अच्छे कार्यों में दान करने में है। ​ज्ञान : इसे केवल अपने तक सीमित न रखकर, दूसरों को शिक्षित और सशक्त बनाने में लगाना ही ज्ञान की सार्थकता है। ​चरित्र -अपने उच्च नैतिक मूल्यों को बनाए रखना और दूसरों के लिए एक प्रेरणा स्रोत बनना ही चरित्र की सबसे बड़ी पूंजी है। जीव...

​"जीविका दीदी" सहायता: सशक्तीकरण या बढ़ता वित्तीय बोझ?

Image
          वित्तीय बोझ का विश्लेषण ​योजना का वित्तीय आकार काफी बड़ा है। यदि 1.40 करोड़ जीविका दीदियों को {₹}10,000 की शुरुआती सहायता दी गई है, तो राज्य पर कुल ₹ 14,000 करोड़ का वित्तीय बोझ (अनुदान के रूप में) आया है (लगभग {1.21} करोड़ महिलाओं को {₹}12,100 करोड़ दिए जाने की जानकारी है)। ​सबसे बड़ा वित्तीय जोखिम ₹ 2 लाख की अतिरिक्त सहायता (लोन) में निहित है। ​कुल संभावित कर्ज: यदि भविष्य में सभी 1.40 करोड़ जीविका दीदियों में से आधे को भी {₹}2 लाख का कर्ज दिया जाता है, तो यह राशि ₹ 1,40,000 करोड़ (1.4 करोड़ 0.5 {₹}2 लाख) होगी। यह राशि बिहार के वार्षिक बजट के एक बड़े हिस्से के बराबर हो सकती है और राज्य के पहले से ही बढ़ते कर्ज को अत्यधिक बढ़ा देगी। यह {₹}2 लाख की राशि लोन के रूप में दी जाएगी, जिसे ब्याज सहित लौटाना होगा। यदि ये सूक्ष्म-उद्यम सफल नहीं होते हैं, तो कर्ज की वसूली एक बड़ी चुनौती बन जाएगी, जिससे राज्य के नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स (NPA) बढ़ सकते हैं और अंततः राज्य की वित्तीय स्थिरता प्रभावित हो सकती है। ​राजनीतिक दबाव में, भविष्य में इस कर्ज को माफ़ करने ...

विकास की दौड़ में पिछड़ता बिहार: एक विश्लेषण!-प्रो प्रसिद्ध कुमार।

Image
     राज्य के विकास के बुनियादी मुद्दे तत्काल लाभ में पीछे छूट गए, जिसका खामियाजा बिहार को भुगतना पड़ेगा। ​बिहार, जिसकी ऐतिहासिक जड़ें मगध और पाटलिपुत्र के गौरवशाली अतीत में गहरी हैं, वर्तमान में विकास सूचकांकों पर देश के सबसे पिछड़े राज्यों में से एक है।  प्रति व्यक्ति आय और गरीबी: निम्नतम पायदान पर ​बिहार की अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी विडंबना इसकी निम्न प्रति व्यक्ति आय और उच्च गरीबी दर है, जो इसे राष्ट्रीय परिदृश्य में सबसे निचले स्थान पर रखती है। ​प्रति व्यक्ति आय - वित्तीय वर्ष 2023-24 में बिहार की प्रति व्यक्ति आय (वर्तमान मूल्य पर) लगभग ₹66,828 रुपये दर्ज की गई है। यह राष्ट्रीय औसत ₹1,14,710 रुपये (2023-24) से काफी कम है। स्थिर मूल्य के आधार पर यह आय और भी कम होकर लगभग ₹36,333 रुपये है। ​बहुआयामी गरीबी -आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के अनुसार, देश की 16% से 25% गरीब आबादी बिहार में रहती है। पटना (₹1,21,396) और शिवहर (₹19,561) जैसे जिलों में आय की खाई राज्य के भीतर की बड़ी असमानता को भी दर्शाती है। ​रोजगार और पलायन की विकट समस्या ​कम औद्योगिक विकास और कृषि पर अत्यधिक ...

वर्तमान पत्रकारिता और निष्पक्षता की आवश्यकता !-प्रो प्रसिद्ध कुमार।

Image
  आज, राष्ट्रीय प्रेस दिवस के अवसर पर, भारतीय पत्रकारिता के वर्तमान परिदृश्य का आकलन करना आवश्यक है। यह एक ऐसा समय है जब लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की भूमिका और उसकी स्वतंत्रता पर गहन चिंतन की आवश्यकता है। हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय की यह टिप्पणी कि "सरकार की आलोचना करना पत्रकारों का अधिकार है" पत्रकारिता जगत के लिए एक महत्वपूर्ण संबल है। यह टिप्पणी अभिव्यक्ति की आजादी के संवैधानिक मूल्यों को रेखांकित करती है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है। जनसरोकार और मुद्दे वाली पत्रकारिता का विलोपन पत्रकारिता का मूल उद्देश्य लोकहित में कार्य करना और जनसरोकार से जुड़े मुद्दों को सामने लाना है। एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए यह जरूरी है कि प्रेस सत्ता को आईना दिखाए। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में, पत्रकारिता का यह मौलिक चरित्र कमजोर होता दिख रहा है: सत्ता का दबाव: सरकारों द्वारा आलोचना को स्वीकार न करना और पत्रकारों को प्रताड़ित करने की घटनाएँ बढ़ी हैं। गैरकानूनी गतिविधि निवारण अधिनियम जैसे कठोर कानूनों का उपयोग आलोचनात्मक आवाजों को दबाने के लिए किया जा रहा है, जो पत्रकारों को सलाखों के पी...

अवधेश प्रीत: सूत्रधार की धड़कन, साहित्य का ओज!-प्रो प्रसिद्ध कुमार।😢😢

Image
    ​खगौल के रंगकर्मी हुए ग़मगीन; एक मार्गदर्शक, एक आत्मीय दोस्त का बिछुड़ना! ​खगौल। साहित्य और रंगमंच के मर्मज्ञ, चर्चित कथाकार और पत्रकार अवधेश प्रीत के अचानक निधन से बृहस्पतिवार को खगौल की नाट्य संस्था 'सूत्रधार' से जुड़े रंगकर्मियों और साहित्य जगत में गहरा शोक व्याप्त हो गया। गुरुवार को सूत्रधार ने अपने सबसे प्रिय साथी को नम आँखों से याद किया, जिसकी भौतिक अनुपस्थिति ने एक गहरे शून्य को जन्म दिया है। ​सूत्रधार के महासचिव नवाब आलम उन्हें याद करते हुए अत्यंत ग़मगीन हो उठे। उन्होंने कहा कि अवधेश जी का निधन हृदय विदारक है। "उनके जाने से जो रिक्तता उत्पन्न हुई है, वह केवल साहित्य के पन्नों तक सीमित नहीं है। खगौल और सूत्रधार नाट्य संस्था से उनका संबंध इतना गहरा और आत्मीय रहा है कि उनकी अनुपस्थिति वहाँ के हर कलाकार और कला प्रेमी को कचोटेगी।" ​सूत्रधार' की जान और धड़कन ​नवाब आलम ने अपने दशकों पुराने साथ को याद करते हुए कहा कि अवधेश प्रीत शुरुआती दिनों में 'सूत्रधार' नाट्य संस्था की जान थे, उसकी धड़कन थे। ​"उनके साथ काम करना, उनके व्यक्तित्व को करीब से जानना ब...

चुनाव परिणाम: संयम की कसौटी और लोकतांत्रिक मर्यादा!प्रो प्रसिद्ध कुमार।

Image
    ​चुनाव—यह केवल अंकों का खेल या सत्ता का हस्तांतरण मात्र नहीं है। यह एक महापर्व है, लोकतंत्र के प्राणों का स्पंदन, जहाँ करोड़ों आशाएँ, विचार और संकल्प मतदान पेटिकाओं में सिमट कर एक नए भविष्य की नींव रखते हैं। जब परिणाम सामने आते हैं, तो यह वह क्षण होता है जब हमारे संयम और लोकतांत्रिक भावना की वास्तविक परीक्षा होती है। ​ जय और पराजय के क्षण ​जीवन की भांति, राजनीति भी एक अविरल नदी के समान है जिसमें ज्वार-भाटा आना निश्चित है। ​जीत का उल्लास: विजय का क्षण निःसंदेह मन को पुलकित करता है। परंतु, इस उल्लास की सीमाएँ संयम के धागे से बंधी होनी चाहिए। यह स्मरण रहे कि मिली हुई सफलता जनता के विश्वास का प्रतिफल है, न कि व्यक्तिगत superiority का प्रमाण। अति-उत्साह अक्सर अहंकार का रूप ले लेता है, और राजनीति के मैदान में अहंकार पतन की पहली सीढ़ी है। इस समय, विनम्रता ही सबसे बड़ा आभूषण है। ​पराजय का संताप: पराजय हृदय को विचलित कर सकती है, परंतु इसे अंतिम विराम नहीं समझना चाहिए। यह केवल एक अध्याय का अंत है, सम्पूर्ण गाथा का नहीं। खेल में हार-जीत निश्चित है। हार हमें अपनी नीतियों, रणनीति और सं...

बुढ़ापा: बढ़ती एकाकीपन और निष्क्रियता की चुनौती!

Image
     एकल परिवार की बहुलता के कारण आज बहुत से घरों में बुजुर्ग अकेले भी हैं, जिन्हें समय बिताना कठिन हो जाता है। ​बुजुर्ग दंपत्ति तो आपस में कुछ बोल-बतिया कर समय काट भी लेते हैं, लेकिन जिस घर में बुजुर्ग सिर्फ अकेले हो गए हैं, उन्हें एकाकीपन और निष्क्रियता घेर लेती है। परिवारों के टूटने और बुजुर्गों के अकेलेपन की बढ़ती प्रवृत्ति।  संयुक्त परिवारों का टूटना और एकल परिवारों की ओर झुकाव। बच्चे काम या अन्य कारणों से दूर चले जाते हैं, जिससे बुजुर्ग पीछे छूट जाते हैं। जहाँ बुजुर्ग दंपत्ति होते हैं, वे एक-दूसरे का सहारा बनकर बातचीत और छोटी-मोटी गतिविधियों के माध्यम से समय गुजार लेते हैं, जिससे एकाकीपन कुछ हद तक कम होता है।  लेकिन जहाँ केवल एक ही बुजुर्ग अकेले रह गए हैं (जीवनसाथी के न रहने पर), वहाँ स्थिति अत्यंत कठिन हो जाती है। वे न केवल एकाकीपन महसूस करते हैं, बल्कि जीवन में किसी गतिविधि या उद्देश्य की कमी के कारण निष्क्रियता  भी उन्हें घेर लेती है। ​यह निष्क्रियता और एकाकीपन उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डालती है, जिससे अवसाद और अन्य स्वास्थ्य समस...

सेवा निर्यात बना भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य स्तंभ!

Image
     ​सेवा क्षेत्र का महत्व ! ​इसमें कोई संदेह नहीं है कि सेवा निर्यात भारतीय अर्थव्यवस्था का एक अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है। यह न केवल विदेशी व्यापार घाटे को नियंत्रित रखने में सहायता कर रहा है, बल्कि रोजगार निर्माण में भी इसका महत्वपूर्ण योगदान है। ​सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में योगदान: नीति आयोग की नई रिपोर्ट के अनुसार, देश की जीडीपी में सेवा क्षेत्र का योगदान 55% से अधिक है। ​रोजगार सृजन: यह क्षेत्र लगभग 18.8 करोड़ लोगों को रोजगार प्रदान करता है। ​रोजगार में वृद्धि: पिछले छह वर्षों में, सेवा क्षेत्र ने चार करोड़ अतिरिक्त रोजगार पैदा किए हैं। ​विकास दर: देश का सेवा निर्यात 14.8% की चक्रवृद्धि वार्षिक दर (CAGR) से बढ़ रहा है, जो वस्तु निर्यात (9.8%) की वृद्धि दर से काफी अधिक है।

सजगता का संदेश: लोकतंत्र में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी !

Image
     ​चुनावी रण में महिला शक्ति का अभूतपूर्व प्रदर्शन !  ​इस विधानसभा चुनाव में अब तक का सर्वाधिक मतदान हुआ है, और इसकी सबसे सुखद तस्वीर महिलाओं की है। लोकतंत्र के इस महत्वपूर्ण पर्व में महिला मतदाताओं की बढ़-चढ़कर भागीदारी केवल उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति को ही नहीं दर्शाती, बल्कि यह समाज में जागरूकता का एक सशक्त संदेश भी है। ​राज्य की महिलाओं ने यह साबित कर दिया है कि वे तमाम व्यस्तताओं के बावजूद, लोकतांत्रिक व्यवस्था में अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति पूरी तरह से सजग हैं। ​मतदान के आँकड़े दे रहे गवाही ​यह सजगता चुनावी इतिहास में अब तक के महिला मतदान के आँकड़ों में स्पष्ट दिखाई देती है। चुनाव आयोग के अनुसार: ​पहले चरण में 61.56 प्रतिशत पुरुषों के मुकाबले 69.04 प्रतिशत महिलाओं ने मतदान किया। ​दूसरे चरण में 64.01 प्रतिशत पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का मतदान 74.03 प्रतिशत रहा। ​यह प्रदर्शन राज्य और राष्ट्र निर्माण में महिलाओं की सशक्त होती भूमिका को रेखांकित करता है। ​दायरा अब घर की दहलीज तक सीमित नहीं ​बिहार में महिलाएं कई स्तरों पर जागरूक हो रही हैं। उनका दायरा अब केवल...

बिहार एग्जिट पोल 2025: महागठबंधन 135 सीटों के साथ बहुमत की ओर!प्रो प्रसिद्ध कुमार।

Image
    ​क्या उच्च मतदान और एंटी-इनकम्बेंसी ने एनडीए के शहरी कोर वोट बैंक को हिला दिया है? ​बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए मतदान संपन्न हो चुका है, और अब सभी की निगाहें 14 नवंबर को आने वाले अंतिम नतीजों पर टिकी हैं।  मैंने अपने एग्जिट पोल विश्लेषण में महागठबंधन (MGB) को स्पष्ट बहुमत (130-135 सीटें) देते हुए दावा किया है कि इस बार सत्ता परिवर्तन निश्चित है। ​ सीटों का अनुमान: बहुमत की ओर महागठबंधन मेरा एग्जिट पोल के अनुसार, 243 सदस्यीय विधानसभा में सीटों का अनुमान कुछ इस प्रकार है: ​महागठबंधन (MGB): 130-135 सीटें (पूर्ण बहुमत: 122) ​एनडीए (NDA): 105-110 सीटें ​अन्य (Others): 8-10 सीटें ​ शहरी क्षेत्रों में एनडीए की जमीन खिसकी ​विश्लेषण के अनुसार, एनडीए (भाजपा) का कोर वोट बैंक माने जाने वाले शहरी क्षेत्रों में जबरदस्त खिसकाव आया है। राजधानी पटना जिले की 14 विधानसभा सीटों में से कम से कम 10 सीटें महागठबंधन के खाते में जाती दिख रही हैं। यही रुझान गया, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, और भागलपुर जैसे प्रमुख शहरी केंद्रों में भी देखने को मिल रहा है। ​ उच्च मतदान प्रतिशत: एंटी-इनकम्बेंसी का सं...

बिहार चुनाव में एग्जिट पोल की विफलता और विश्वसनीयता पर सवाल ! प्रो प्रसिद्ध कुमार।

Image
    ​2020 बिहार विधानसभा चुनाव: एग्जिट पोल ऑफ पोल्स और ऐतिहासिक विफलता! ​2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में, विभिन्न एजेंसियों द्वारा जारी एग्जिट पोल ऑफ पोल्स (Exit Poll of Polls) ने महागठबंधन (MGB) को स्पष्ट बहुमत का अनुमान लगाया था। औसतन, महागठबंधन  को लगभग 133 सीटें मिलने की भविष्यवाणी की गई थी, जबकि एनडीए (NDA) को लगभग 100 सीटें मिल रही थीं। ​वास्तविक परिणाम (2020): एग्जिट पोल पूरी तरह से असत्य साबित हुए। एनडीए ने 125 सीटें जीतकर सरकार बनाई, जबकि MGB 110 सीटों पर रुक गया। यह एग्जिट पोल की सटीकता के लिए एक गंभीर झटका था, क्योंकि अधिकांश प्रमुख एजेंसियों (जैसे इंडिया टुडे-एक्सिस माय इंडिया) ने भारी अंतर से MGB की जीत का अनुमान लगाया था। 2020 का परिणाम एग्जिट पोल की सटीकता पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगाता है, यह दर्शाता है कि अनुमान और वास्तविक चुनावी गणित में जमीन-आसमान का अंतर हो सकता है। ​2025 बिहार विधानसभा चुनाव: एग्जिट पोल ऑफ पोल्स और विश्वसनीयता का दांव ​बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के मतदान के बाद, एग्जिट पोल ऑफ पोल्स एनडीए (NDA) के पक्ष में झुका हुआ है। ​एग्जिट पोल ऑफ पो...

राम लखन सिंह यादव कॉलेज ,अनीसाबाद में राष्ट्रीय शिक्षा दिवस पर विशेष सेमिनार आयोजित: AI के युग में मानवीय शिक्षा की महत्ता पर बल!

Image
        देश के प्रथम शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद को किया गया याद ! ​देश के प्रथम शिक्षा मंत्री और भारत रत्न मौलाना अबुल कलाम आजाद के जन्मदिन को आज राम  लखन सिंह यादव कॉलेज ,अनीसाबाद  में राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में बड़े उत्साह के साथ मनाया गया। ​इस अवसर पर एक विशेष सेमिनार का आयोजन किया गया, जिसका थीम था: "एआई और शिक्षा: स्वचालन की दुनिया में मानवीय एजेंसी (नियंत्रण/क्षमता) को संरक्षित करना"। ​मुख्य वक्ताओं के विचार: ​सेमिनार की अध्यक्षता करते हुए प्रो. डॉ. महेंद्र सिंह ने शिक्षा के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि "शिक्षा किसी भी राष्ट्र की रीढ़ है। हमारा लक्ष्य है कि शिक्षा का यह द्वीप हर घर में रोशन हो।" ​प्रो. प्रसिद्ध कुमार ने अपने संबोधन में कहा कि "शिक्षा के क्षेत्र में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का सदुपयोग निश्चित रूप से होना चाहिए, लेकिन हमें अपने मौलिक ज्ञान और मानवीय सिद्धांतों को कभी नहीं भूलना चाहिए।" उन्होंने मौलाना आजाद के दूरदर्शी नेतृत्व की सराहना करते हुए बताया कि उनके विजन के कारण ही देश में आईआईटी (IIT) और यूजीसी (UGC) जैस...

2025 के बढ़े हुए मतदान का संभावित प्रभाव !-प्रो प्रसिद्ध कुमार।

Image
       ​पहले चरण में 31 लाख से अधिक वोटों की वृद्धि (और संभवतः दोनों चरणों में 63 लाख अधिक वोट पड़ने का आसार) यह दर्शाता है कि लगभग 13-15% अतिरिक्त मतदाता पोलिंग बूथ तक पहुँचे हैं। ​1. सीटों पर प्रभाव: जीत का अंतर कम होना ​बिहार में कई विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहाँ जीत का अंतर 1,000 से 5,000 वोटों के बीच होता है। ​बढ़े हुए वोट (63 लाख), जब सीटों पर समान रूप से वितरित होते हैं, तो वे मौजूदा जीत के अंतर को बदलने की क्षमता रखते हैं। ​यह वृद्धि उन सीटों पर निर्णायक हो सकती है जहाँ 2020 में जीत का अंतर बहुत कम था, जो किसी भी गठबंधन के पक्ष में एक बड़ा बदलाव ला सकती है। ​अधिक मतदान का अर्थ है कि पार्टियों के कोर वोटर के अलावा निर्णायक मतदाता (Floating Voters) या नए/युवा मतदाता भी बड़ी संख्या में बाहर आए हैं। ​2. राजनीतिक दलों पर संभावित प्रभाव ​परंपरागत रूप से, बिहार में उच्च मतदान को सत्ता विरोधी लहर (Anti-Incumbency) से जोड़ा जाता रहा है, लेकिन यह हमेशा सत्य नहीं होता। ​A.  राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन पर प्रभाव: ​लाभ की संभावना: यदि यह बढ़ा हुआ मतदान महिला मतदाताओं (नी...

​🎂 हरदिल अजीज का उदय: तेजस्वी! तुम आशा का नया अध्याय हो 🌟!-प्रो प्रसिद्ध कुमार।

Image
    ​✨ चुनावी समर में जन्मदिन की सौगात: जनहित के मुद्दों का शंखनाद ✨ ​आज, 9 नवंबर, बिहार के चुनावी रणभूमि में एक युवा नायक, श्री तेजस्वी प्रसाद यादव का जन्मदिन है। यह दिवस मात्र एक तिथि नहीं, बल्कि बिहार की आशा और देश के भविष्य के रूप में देखे जा रहे एक नेता के सकारात्मक संकल्प का प्रतीक है। जब चुनाव प्रचार अपने चरम पर है और अंतिम चरण का अंतिम दिन है, तब उनका रण में अडिग रहना, उनकी जनहित के प्रति अटूट निष्ठा को दर्शाता है। ​🏹 रणभेरी में युवा योद्धा की ललकार ​वे अकेले ही, देश के सत्ता पक्ष के प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्रियों और दर्जन भर मुख्यमंत्रियों के 'कुरुक्षेत्र' का सामना कर रहे हैं। यह एक ऐसा युद्ध है, जहाँ एक ओर सकारात्मकता का 'धर्म' है, तो दूसरी ओर नकारात्मकता का 'अधर्म'। तेजस्वी का व्यक्तित्व विपरीत परिस्थितियों में अडिग, हिमालय की तरह है, जिसने 'फजूल की बातों' के तूफ़ानों को अपने पास फटकने भी नहीं दिया। उनका संवाद, गोदावरी के शांत जल के समान है, जो सीधा जनमानस की प्यास बुझाता है, जबकि विरोधी दलों की बातें, जंगल की आग की तरह केवल धुआँ और प्रलाप ...